सांसदों के विशेषाधिकारों के संबंध में विवाद
संविधान में (अनुच्छेद-105) यह उल्लिखित था कि सांसदों को बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त होगी तथा सदन में उनके द्वारा कही गई किसी भी बात के लिए उन्हें न्यायपालिका के समक्ष नहीं बुलाया जाएगा। इसके अतिरिक्त संविधान में यह उल्लिखित था कि सांसदों को वे विशेष अधिकार प्राप्त होंगे, जो ब्रिटेन के कॉमन सभा
(House of Commons) के सदस्यों को प्राप्त थे । लोक सभा में इस बात पर आपत्ति व्यक्त की गई कि भारतीय संविधान में किसी विदेशी संसद का नाम उल्लिखित किया गया है, जिसे हटाने की आवश्यकता है। इसलिए 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा अनुच्छेद- 105 से ‘कॉमन सभा’ शब्द को हटा दिया गया और यह उल्लिखित किया गया कि भारत में सांसदों को वे सभी विशेषाधिकार प्राप्त होंगे, जो वर्ष – 1950 के पहले सांसदों को प्राप्त थे। इसलिए संविधान में अभी भी संसदीय विशेषाधिकारों को पूर्ण रूप में परिभाषित नहीं किया गया है और न ही इन्हें संसदीय विधि के द्वारा पूर्ण रूप में संहिताबद्ध किया गया है। अतः संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में निरंतर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं, जो निम्नलिखित हैं –
उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2007 में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि जिन 11 सांसदों को पैसा देकर प्रश्न पूछने के आरोप में संसद की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया था और उसे उच्चतम न्यायालय ने संसद की प्रक्रिया का भाग माना और सदस्यों के बर्खास्तगी को संवैधानिक कहा। परंतु आलोचकों के अनुसार संविधान में सदस्यों के बर्खास्तगी का कोई प्रावधान नहीं है, बल्कि सदस्यों की सदस्यता समाप्त करने का प्रावधान है। आलोचकों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आधार पर बहुमत के द्वारा कभी भी अल्पमत के सांसदों को बर्खास्त किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह भी कहा कि संसद के विशेषाधिकार केवल संसद के सदस्यों को प्राप्त हैं, किसी गैर- निर्वाचित मंत्री को प्राप्त नहीं हो सकते। आलोचकों ने कहा कि भारतीय संविधान में मनोनीत सदस्यों को भी मंत्री बनने का अधिकार है। जबकि वे भी गैर- निर्वाचित हैं, परंतु उन्हें सदन में मत देने का भी अधिकार है।
संसद के विशेषाधिकार में किसी भी न्यायाधीश के आचरण पर टिप्पणी करना शामिल नहीं है, यह टिप्पणी न्यायाधीश के द्वारा अपने न्यायाधीश के कर्त्तव्य निर्वहन से संबंधित होना चाहिए। न्यायाधीश के व्यक्तिगत व्यवहार के संबंध में टिप्पणी की जा सकती है।
संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन तभी माना जाएगा, जब किसी व्यक्ति अथवा सदस्य के द्वारा संसद के कार्यों एवं दायित्वों के संपादन में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष बाधा उत्पन्न की जाए। इसलिए सदन की गरिमा को कम करने वाले कथन संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
संसदीय विशेषाधिकार संसद सदस्यों के अलावा संसद के पदाधिकारियों को भी प्राप्त होंगे। पदाधिकारियों में केवल पीठासीन अधिकारी ही शामिल नहीं हैं, बल्कि सदन की कार्यवाही को संचालित करने में शामिल सभी पदाधिकारियों को यह विशेषाधिकार प्राप्त होगा।