बौद्ध धर्म की महायान और हीनयान विचारधाराएं एवं इनमे अंतर
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में अनेक धर्मों का उदय हुआ, जिसमें बौद्ध धर्म सबसे प्रमुख था। यह धर्म सर्वाधिक प्रचलित हुआ। महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों में टकराव उत्पन्न हुआ एवं अंततः चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म का हीनयान तथा महायान में विभाजन हो गया।
हीनयान विचारधारा:- इस विचारधारा के अंतर्गत बुद्ध के मूलशिक्षा को केंद्र बिंदु माना जाता है तथा इसी के अनुसार बौद्ध धर्म का प्रसार प्रचार किया जाता है। इस संप्रदाय द्वारा आत्म अनुशासन एवं मध्यस्था के माध्यम से व्यक्ति के मुक्ति पर बल दिया जाता है।
महायान विचाराधारा:- इस विचारधारा के अंतर्गत बुद्ध को भगवान माना जाता है तथा इस शाखा के लोग बुद्ध की दिव्यता में विश्वास करते हैं। इसमें बोधिसत्व की अवधारणा प्रचलित है जिसके माध्यम से ही निर्वाण की प्राप्ति होगी।
हीनयान तथा महायान में अंतर:-
हीनयान के अंतर्गत महात्मा बुद्ध को शिक्षक माना जाता है जबकि महायान के अंतर्गत बुद्ध को देवता माना जाता है।
हीनयान की मूर्तिकला और चित्रकला में महात्मा बुद्ध को संकेतों एवं प्रतीकों के रूप में दिखाया गया है जबकि महायान की मूर्तिकला एवं चित्रकला में बुद्ध को मानव रूप में दिखाया गया है।
बौद्ध धर्म के हीनयान शाखा के अनुसार व्यक्ति को स्वयं ही सदाचार के रास्ते अपने कर्मफल का अंत कर निर्वाण की प्राप्ति करनी चाहिए। जबकि महायान शाखा के अनुसार बोधिसत्व में आस्था रखना चाहिए, उनकी कृपा से ही व्यक्ति को निर्वाण की प्राप्ति होगी। सबको निर्वाण दिलाकर ही बोधिसत्व स्वयं निर्वाण प्राप्त करेंगे।
बौद्ध धर्म के हीनयान शाखा का विकास श्रीलंका, कंबोडिया, लाओस तथा म्यांमार आदि देशों में हुआ जबकि महायान शाखा का विकास चीन, कोरिया, जापान आदि देशों में हुआ।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तमाम भिन्नताओं के बावजूद तत्कालीन परिस्थितियों में बौद्ध धर्म ने समानता पर आधारित समाज के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई। बौद्ध धर्म के विदेशों में प्रचार ने भारत की सौम्य शक्ति (सॉफ्ट पॉवर) को मजबूती मिली है।