November 11, 2024
 बरसीम की हरे चारे के लिए उन्नति खेती का वर्णन कीजिए By Era of Infology

 बरसीम की हरे चारे के लिए उन्नति खेती का वर्णन कीजिए

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 बरसीम की हरे चारे के लिए उन्नति खेती का वर्णन कीजिए

भारत के उत्तरी क्षेत्रों में बरसीम की खेती पशुओं के चारे के लिए की जाती है। उन्नति के लिए निम्न प्रक्रिया को अपनाते हैं।

1.आर्थिक महत्त्व:- बरसीम रबी की फसल में उगा सकते हैं। दुधारू पशुओं के लिए यह उत्तम फसल है। इसमें प्रोटीन लगभग 247 रेशे, 30, 80% कैल्शियम 3% व फास्फोरस 0.5% पाया जाता है। इसको उगाने ¨से मृदा के भौतिक रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है। इसकी खेती से एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 45 Kg नाइट्रोजन 20 Kg फास्फोरस होता है।

2.भौगोलिक वितरण:- बरसीम ऐशिया व अफ्रीका महाद्वीपों के अनेक देशों में चारे की एक प्रमुख फसल है। इसकी खेती करने वाले प्रमुख देशों में मिस्र, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश व इटली आदि हैं। भारत में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार व गुजरात आदि राज्यों में होती है।

3.वानस्पतिक विवरण:- बरसीम का वानस्पतिक नाम Trifoluim alexanarinum है। यह leguminacee परिवार से सम्बन्धित होता है। इसका प्रत्येक डण्डल पर तीन पत्तियाँ पायी जाती है। अतः इसे तिपत्तिया घास भी कहा जाता है। इसके फूल सफेद व बैंगनी रंग के होते हैं।

4.जलवायु:- बरसीम के खेती उष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसकी फसल की उपयुक्त वृद्धि एवं बढ़वार के लिए ठण्डा एवं शुष्क तापमान (मौसम) अनुकूल रहता है। इसके बीज के अंकुरण के लिए 24°- 28°C तथा पौधों की अच्छी होती है। 4°C से कम तापमान तथा 40°C तापमान सहन नहीं कर सकते हैं।

5.भूमि की तैयारी:– प्रायः धान के खेतों में बरसीम की बुवाई करते हैं। सबसे पहले एक गहरी जुताई करते हैं इसके पश्चात 2 या 3 बार हैरो चलाकर खेत को समतल कर लेते हैं। छोटी-छोटी क्यारियों की लम्बाई चौडाई 4 से 5 मी से अधिक नहीं होना चाहिए।

6.उपयुक्त जाति का चुनाव:- बरसीम के पौधों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या 2n 24 होते हैं जिसके आधार पर दो वर्गों में होते हैं। टेट्राप्लायड, डेप्लायड जिसमें BL- 1, BL-2, BL-10, IGFRI- 99-1 व मेस्कावी आदि ।

7.फसल चक्र:-

बरसीम का फसल चक्र
धान – बरसीम एकवर्षीय
 मक्का – बरसीम एकवर्षीय
धान – बरसीम – उड़द एकवर्षीय
मक्का – बरसीम – लोबिया एकवर्षीय

8. बुवाई का समय:- बरसीम की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 1 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक है। इससे पूर्व बुवाई करने बरसीम की फसल में वर्षा से जलभराव के कारण हानि होती है। 

9.बीजोपचार:- इसके लिए अशुद्ध बीज को 5 से 10% नमक के घोल में डालने पर तथा राइबोजोवियम कल्वर से उपचारित करते हैं। तथा 1 लीटर में 100 ग्राम गुड़ का घोल बनाकर उस पर कल्वर का छिड़काव करते हैं। कल्चर न होने पर 20 किग्रा. मिट्टी को 25 किग्रा. बीज में मिलाकर बो देते हैं।

10.खाद तथा उर्वरक:- बरसीम की एक हेक्टेयर फसल के लिए 20 Kg. N. 60Kg. P. की आवश्यकता होती है। तथा उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए।

11.सिंचाई:- बरसीम की फसल में अक्टूबर माह में 8-10 दिन अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए। इस फसल से जनवरी तक लगभग 15 दिन के अन्तराल पर तथा फरवरी व उसके बाद प्रतिमाह सिंचाई करनी चाहिए।

12. फसल:- बरसीम की डेण्लायड जातियों की एक हेक्टेयर फसल से 700 से 800 कु. हरा चारा तथा ट्रेटाप्लायड जातियों से 900 से 1100 कुन्तल तक हरा चारा प्राप्त होता है। 4-6 कुन्तल प्रति हे. के लगभग बीज की प्राप्ति होती है।

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