तोरिया एवं सरसों की फसल का आर्थिक महत्त्व, भौगोलिक वातावरण, वानस्पतिक वर्णन कीजिए
तोरिया एवं सरसो भारतवर्ष में मूंगफली के बाद तेल प्राप्ति हेतु तोरिया एवं सरसों का दूसरा स्थान हैं रबी के मौस में । उगायी जाने वाली तिलहनी फसलों में तोरिया एवं सरसों का प्रथम स्थान है। सरसों वर्गों की इन फसलों के बीजों में 35 से 45% तक तेल की मात्रा पायी जाती है।
आर्थिक महत्त्व
तोरियां और सरसो की हरी ! पत्तियाँ को हरे चारे के रूप में बरसीम व भूसे के साथ मिलाकर खिलायी जाती है। सब्जी बनाने तथा आचार बनाने में सरसों के तेल का प्रयोग होता है। सरसों के बीजों से तेल निकालने के पश्चात् शेष बचा पदार्थ खली कहलाता है। जिसमें 5% N, 2%. P तथा 1%K होता है।
भौगोलिक विवरण
विश्व में तोरिया एवं सरसो उत्पादक प्रमुख देशों में भारत, चीन, पाकिस्तान, कनाडा व फ्रांस आदि में होते हैं। भारत में इसकी खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश हरियाणा, पंजाब व गुजरात आदि हैं। भारत में इसकी औसत उत्पादकता लगभग 10 है. / कु. है।
वानस्पतिक विवरण
सरसो वर्ग के सभी पौधे Cruifeare परिवार के अन्तर्गत आते हैं। इन सभी फसलों का वंश ब्रेसिका है तथा इनमें जातियाँ Compestris तथा Juneea है। इनके पौधे एक वर्षीय होते हैं। इनकी ऊँचाई 15-20 सेमी. होती है। राई की ऊँचाई 50-200 सेमी तक होती है। इनकी पत्तियाँ शाखाओं पर लगती है। इनके बीज गहरे भूरे रंग के होते, हैं।