महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
- भारत में लवणीय एवं क्षारीय भूमि का क्षेत्रफल लगभग 7.0 मिलियन हेक्टेयर हैं |
- अम्लीय मृदा में लोहे तथा एल्युमिनियम की विषाक्ता पायी जाती हैं |
- गेहूँ की बुआई के लिये अनुकूलतम गहराई 5.0 से० मी० रखते हैं |
- उत्तरी-पूर्वी उत्तर प्रदेश में गण्डक तथा घाघरा नदियों द्वारा छोड़ी गई जलोढ़क मिट्टी अत्यधिक कैल्शियम युक्त होती हैं |
- हाइड्रोपोनिक्स: मृदा विहीन कृषि को कहते हैं |
- यूरिया एक कार्बनधारी उर्वरक हैं | इसकी प्रकृति अम्लीय होती हैं |
- मिट्टी की डिफलाकुलेशन सोडियम की अधिकता से होता हैं |
- पायराइट में लोहा और गन्धक तत्व की अधिकता पायी जाती हैं |
- उत्तर प्रदेश में उसर भूमि का सर्वाधिक क्षेत्रफल बुन्देलखण्ड में पाया जाता हैं |
- तेन्सियोंमीटर मिट्टी में नमी के पृष्ट तनाव को 0.85 एटमोस्फियर तक सही माप सकता हैं |
- वी०एल०-401 गेहूँ की किस्म उत्तर प्रदेश की पहाड़ियों के लिये उपयुक्त हैं |
- स्थायी विल्टिंग बिन्दु मृदा नमी तनाव 15 वायुमण्डलीय दाब पर उत्पन्न होता हैं |
- क्षेत्र क्षमता (Field Capacity) पर आद्रातातनाव लगभग 1/3 अथवा 0.33 वायुमण्डलीय दाब होता हैं |
- म्लानि बिन्दु (Wilting Point) की न्यूनतम सीमा और क्षेत्र क्षमता (Field Capacity) की उच्चतम सीमा के परिसर (Range) को उपलब्ध जल (Available Water) कहते हैं |
- स्प्रिंकलर का प्रयोग ऊपर से सिचाई के लिए किया जाता हैं |
- फसलो की जल आवश्यकता को लाइसोमीटर द्वारा मापते हैं |
- क्षारीय भूमि के लिये सबसे उपयुक्त फसल चक्र धान-बरसीम हैं |
- एक हेक्टेयर तम्बाकू की रोपाई हेतु नर्सरी का क्षेत्रफल 1/100 हेक्टेयर अथवा 0.01 हेक्टेयर अथवा 100 वर्गमीटर होना चाहिए |
- एक हेक्टेयर क्षेत्र में तम्बाकू की रोपाई के लिये 50-60 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती हैं |
- नीली-हरी काई (Blue Green Algae) का प्रयोग धान की फसल में करते हैं |
- यूरिया में बाइयुरेट उत्पादक कारखाने में यूरिया के अणुओं के संघनन से बनता हैं |
- मिट्टी की नमी में पृष्ट तनाव के लागेरिथ्म को पानी के कालम की से०मी० ऊंचाई के रूप में बताने को पी-एफ० (PE) कहते हैं |
- गन्ने की बुआई के लिये उसका ऊपरी एक तिहाई भाग प्रयोग करना चाहिए |
- एक हेक्टेयर धान की रोपाई हेतु 0.05 हेक्टेयर अथवा 1/20 हेक्टेयर अथवा 500 मीटर क्षेत्रफल की नर्सरी की आवश्यकता होती हैं |
- इजराइल मेंब ड्रिप सिंचाई सर्वाधिक प्रचलित हैं |
- तेन्सियोमीटर मृदा में नमी मापने का यंत्र हैं |
- नेओवासिया इण्डिका (Neovassia Indica) के कारण गेंहूँ में करनाल बंट रोग होता हैं |
- एस्टीलागे नुडा ट्रीटीसी (Ustilago Nuda Tritici) के कारण गेहूँ में लूज स्मट रोग उत्पन्न होता हैं |
- गेहूँ में रतुआ (Rust) रोग निम्न कारणों से होता हैं |
- ब्राउन रस्ट: पक्सीनिया रिकांडीटा ट्रीटीसी (Puccinia Recondita Tritici) |
- यलो रस्ट: पक्सीनिया स्ट्रीफोर्मिस (Puccinia Striformis) |
- ब्लैक रस्ट: पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रीटीसी (Puccinia Recondita Tritici) |
- गेहूँ में सभी प्रकार के रस्ट की रोकथाम के लिये जिनेब (0.2%) अथवा डाइथेन एम-45 (0.2%) घोल का प्रयोग करना चाहिए |
- तम्बाकू का बीज बहुत छोटा व अण्डाकार होता हैं | यह बीज लगभग 0.75 मि० मि० लम्बा, 0.53 मि० मी० चौड़ा तथा 0.47 मि० मी० मोटा होता हैं |
- निकोतटियाना टोबैकम तम्बाकू के बीज का औसत भार 0.08-0.09 मि० ग्रा० होता हैं | इसके प्रति एक ग्राम बीज में 11,000-12,000 बे होते हैं |
- निकोटिना रस्टीका तम्बाकू के बीज निकोटियाना टोबैकम की अपेक्षा आकार में बड़े तथा लगभग तिन गुना भाडी होता हैं |
- तम्बाकू की नर्सरी के लिये बलुई अथवा बलुई दोमट मृदा सर्वोतम हैं |
- आन्ध्र प्रदेश में सिगरेट तम्बाकू की नर्सरी बलुई से कंकरीली दोमट (Sandy To Gravely Loam) मृदा में उगाई जाती हैं |
- तम्बाकू के लिये इष्टतम बीजदर 3-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (0.5 ग्राम वर्ग मीटर) रखना चाहिए |
- निकोटियाना टोबैकम: 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- निकोटियाना रस्टीका: 6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- अच्छी एवं गुणवत्ता युक्त उपज के लिए बरसीम की बुआई अक्तूबर माह में करनी चाहिए |
- रिजका (लुसर्न) के हरे चारे से 15% ‘हे’ तैयार होता हैं |
- एच०सी० एन० (HCN) की समस्या सिरका अथवा मीठी चरी में नहीं पाया जाता हैं |
- चुकन्दर में 18% तक शकरकंद पायी जाती हैं |
- गंटूर (आन्ध्र प्रदेश) सिगरेट तम्बाकू उत्पादन का मुख्य क्षेत्र हैं |
- तम्बाकू की पौध पेन्सिल मोटाई की और 10-15 सेंटी मीटर लम्बी रोपाई हेतु उपयुक्त होती हैं |
- ओरोबैंकी नामक खरपतवार तम्बाकू की फसल में पाया जाता हैं |
- कुफरी चंद्र्मुकी आलू की शीघ्र तैयार होने वाली किस्म हैं |
- ‘सत्य आलू बीज’ (True Potato Seed TPS) द्वारा आलू उत्पादन में निम्न लाभ हैं
- टी० पी० एस० (TPS) द्वारा उगाई जाने वाली आलू की फसल विषाणु रोग एवं अन्य रोग का प्रकोप कम होता हैं |
- इससे फसल उत्पादन में लागत कम आती हैं तथा बीजदार भी कम लगता हैं |
- टी० पी० एस० (TPS) द्वारा आलू उत्पादन में 150 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और 75 वर्गमीटर नर्सरी की आवश्यकता पड़ती हैं |
- टी० पी० एस० (TPS) की सुसुप्तावस्था को तोड़ने के लिए इसके बीज का 1500-2000 पी० पी० एम० जिब्रैलिक एसिड के घोल में 48 घंटे तक डुबोकर रखा जाता हैं |
- टी० पी० एस० (TPS) के बीज का कमरे के तापक्रम पर 2-3 वर्ष तक भण्डारण कर सकते हैं |
- टी० पी० एस० (TPS) द्वारा तैयार 30 दिन आयु की नर्सरी (3-4 पत्ती अवस्था) की रोपाई 50CM X 10CM अन्तराल पर करना चाहिए |
- नर्सरी में 10CM X 10CM अन्तराल पर आलू की पौध तुयूबर्स अथवा TPS (2बीज/छेद) द्वारा तैयार की जाती हैं | इससे उत्पन्न टीयूबर्स अथवा कन्द अगले मौसम में बुआई के लिये प्रयग किये जाते हैं | ईस विधि में 40 ग्राम TPS अथवा 300 वर्गमीटर नर्सरी क्षेत्र एक हेक्टेयर रोपाई के लिये पर्याप्त होती हैं |
- आलू की बुआई के लिये 25-40 ग्राम वजन का कन्द प्रयोग करना चाहिए |
- बहुत अधिक आकार का कन्द (75 ग्राम अथवा अधिक) बुआई हेतु प्रयोग करने पर छोटे कन्दों एवं बेर समान कन्दों का उत्पादन अधिक होता हैं | आलू के इन कंदों का प्रयोग बीज के लिये तथा TPS उत्पादन के लिये किया जाता हैं |
- आलू में अन्तराल (Spacing) कन्द के आकार पर निर्भर करता हैं जो ईस प्रकार हैं |
- 10 ग्राम आकार का कन्द : 60CM X 15CM
- 30 ग्राम आकार का कन्द : 60CM X 20CM
- 50 ग्राम आकार का कन्द : 60CM X 25CM
- आलू की फसल में जिंक की कमी को दूर करने के लिये 15-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्येरय प्रयोग करना चाहिए |
- पहाड़ो पर आलू की खेती बारानी (Rainfed) दशा में की जाती हैं जबकि मैदानों में इसे सिंचिंत दशा में उगाया जाता हैं |
- आलू किफसल में साधारण खरपतवार नियंत्रण के लिये एट्राजिन अथवा एंट्राजिन + एलाक्लोर/नाइट्रोफेन का प्रयोग करते हैं |
- ‘शताब्दी’ (के० 307) गेहूँ की प्रजाति सन 2006 में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोधोगिकी विश्वविधालय, कानपूर द्वारा विकसित की गई हैं | यह प्रजाति समय से एवं सिंचित दशा के लिये उपयुक्त हैं | इसकी उपज क्षमता 55-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हैं |
- ‘नैना’ (सिंचित विलम्ब), ‘मंदाकिनी’ (असिचिंत समय) एवं ‘सोना’ (सिमित सीचाई व बुन्देलखण्ड) गेहूँ की प्रजातियाँ सन 2006 में चंध्राशेखर आजाद कृषि विश्वविधालय, कानपूर द्वारा विकसित की गई हैं |
- खेत में फसलों के अवशेष जलाने से फोस्फोरस तत्व की मात्रा बढ़ जाती हैं |
- अच्छे जमाव के लिये गन्ने को एगलाल के घोल में डुबोकर बोना चाहिए |
- गन्ने में 9-10% तक चीनी पायी जाती हैं |
- गन्ने में 12-15% तक सुक्रोज पाया जाता हैं |
- एजोला एक प्रकार का फर्न हैं |
- सल्फर कोटिड यूरिया धीरे-धीरे नाइट्रोजन मुक्त करने वाला उर्वरक हैं |
- एक मीट्रिकटन गन्ना पैदा करने के लिये 1.2 किलोग्राम नत्रजन फसल द्वारा ग्रहण किया जाता हैं |
- भूमि में उपस्थित कुल नत्रजन का 95-99 प्रतिशत नत्रजन कार्बनिक रूप में पायी जाती हैं |
- जीवांश पदार्थो में 58% तक कार्बन पाया जाता हैं |
- नाइट्रोफोस्फेट सम्पूर्ण उर्वरक का उदहारण हैं |
- क्लोरोफिल की वृद्धि के लिये मैगनीशियम (Mg)तत्व अनिवार्य हैं |
- जड़ो की वृद्धि में फोस्फोरस तत्व सहायक हैं |
- ट्रिपील सुपर फोस्फेट एवं डाई कैल्शियम फोस्फेट का भूमि पर अम्लीय प्रभाव पड़ता हैं |
- भारत के कुल भोगोलिक क्षेत्रफल का 77.2% भाग कृषि क्षेत्र हैं |
- भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (IIPR) कानपूर, उत्तर प्रदेश में स्थित हैं |
- केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (CRRI) कटक, उड़ीसा में स्थित हैं |
- भारतवर्ष में जलोढ़ (एल्यूवियल) मृदा का क्षेत्रफल सर्वाधिक हैं |
- क्ले (Clay) मृदा की जल धारण क्षमता (Water Holding Capacity) सर्वाधिक होती हैं |
- अम्लीय भूमि में सुधारक के रूप में चने का प्रयोग किया जाता हैं |
- पौधों की वृद्धि सामान्यत: 6.0-7.5 पी-एच के मध्य होती हैं |
- प्रटीन के संश्लेषण के लिये नाइट्रोजन आवश्यक होता हैं |
- नाइट्रोजन (N), फोस्फोरस (P), पोटेशियम (K), मैगनीशियम (Mg) तथा मोलिब्डेनम (Mo) तत्व की कमी के लक्षण सर्वप्रथम पौधों की पुराणी अथवा निचली पतियों पर प्रकट होती हैं |
- गन्धक (S), लोहा (Fe) मैगनीज (Mn) तथा तम्बा (Cu) तत्व के कमी के लक्षण सबसे पहले पौधों की नई अथवा ऊपरी पत्तियों पर प्रकट होते हैं |
- पौधों पर जस्ता (Zn) की कम ले लक्षण पुराणी तथा नई दोनों प्रकार के पत्तियों पर प्रकट होती हैं |
- पौधों में कैल्शियम (Ca) तथा बोरान (B) की कमी के लक्षण सर्वप्रथम शीर्ष कलिका पर प्रकट होती हैं |
- तराई मृदा में सामान्यतः जिंक (Zn) तत्व की कमी पायी जाती हैं |
- ‘एजोला’ धान की फसल के लिये सबसे उपयुक्त जैव उर्वरक हैं |
- भूमि में सिलिका (SiO2) नामक खनिज पदार्थ की मात्रा अधिक पायी जाती हैं |
- मृदा के ‘A’ और ‘B’ संस्तरों को मिलकर ‘सोलम’ कहा जाता हैं |
- ‘प्रोटीना’ संकुल मक्का की एक प्रजाति हैं |
- गेहुंसा (फेलेरिस माइनर) के बीज का टेस्ट वेट (Test Weight) 2 ग्राम होता हैं |
- जिप्सम का रासायनिक नाम ‘कैल्सियम सल्फेट’ हैं |
- सर्वाधिक आद्रताग्राही उर्वरक हैं : अमोनियम नाइट्रेट |
- मनुष्य में यूरिया का संशलेषण यकृत में होता हैं |
- शैवाल द्वारा नाइट्रोजन का स्थिरीकरण धान की फसल में होता हैं |
- रास्ट्रीय बीज निगम की स्थापना सन 1963 में हुई थी |
- उत्तर प्रदेश बीज एवं तराई निगम की स्थापना सन 1970 में हुई थीं |
- रास्ट्रीय कृषि आयोग का गठन सन 1971 में हुआ था |
- सन 1966 में भारतीय सांसद द्वारा बीज अधिनियम पारित किया गया था |
- सन में ‘अधिक अन्न उपजाओ समिति’ का गठन किया गया था |
- खानों से निकाले गये लौह को ‘ओर आयरन’ कहते हैं |
- गेहूँ को अपनी वृद्धि के लिए 4000 प्रकाश केंडिल की आवश्यकता पड़ती हैं |
- प्रदूषित पानी में जलकुम्भी नामक पौधे की अधिक वृद्धि होती हैं |
- गुजरात राज्य पवन उर्जा का सर्वाधिक उपयोग करता हैं |
- पीपल का पेड़ वायु प्रदुषण कम करने में सहायक हैं |
- चिकनी मिटटी का ससंजन बल सर्वाधिक होता हैं |
- मृदा में 26.7-32.2 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सुक्ष्म जीवों की सक्रियता सबसे अधिक होती है |
- CIMMYT एक मैक्सिकन शब्द है जो International Centre for Maize and Wheat Improvement के लिए प्रयोग किया जाता हैं | इसका मुख्यालय ‘मैकिस्को’ में हैं |
- अधिक उत्पादन से सम्बंधित निम्नलिखित कृषि क्रांतियाँ कुछ इस प्रकार से हैं |
- हरित क्रांति : खाधान उत्पादन
- शवेत क्रांति : दुग्ध उत्पादन / आपरेशन फ्लड
- पीली क्रांति : खाद तेलों व तिलहनी
- नीली क्रांति : मत्स्य व समुन्द्री उत्पाद
- भूरी क्रांति : खाद एवं उर्वरकों
- गोल क्रांति : आलू उत्पादन
- रजत क्रांति : अंडा एवं मुर्गी उत्पादन
- सुनहरी क्रांति : बागवानी उत्पाद