कृषि जन्तु विज्ञान Agricultural Zoology
जीव-विज्ञान (Biology) : ‘बायोलोजी’ शब्द सबसे पहले लेमार्क व ट्रेविरैनस ने सन 1802 में प्रयोग किया था | जीव विज्ञान के अन्तर्गत सजीवों (Animals and Plants) के जीवन सम्बन्धी अध्ययन, शरीर रचना, वर्गीकरण आदि का अध्ययन किया जाता हैं | जीव-विज्ञान का अध्ययन मुख्यतया दो वर्गों में विभाजित करके किया जाता हैं |
- प्राणी अथवा जन्तु विज्ञान (Zoology : Zoon = Animal) : इसके अन्तर्गत प्राणियों अथवा जन्तुओं का अध्ययन किया जाता हैं |
- वनस्पति विज्ञान (Botany : Botane = Herb) : इसके अन्तर्गत पेड़ व वनस्पतियों से सम्बन्धित अध्ययन किया जाता हैं |
जन्तु विज्ञान की प्रमुख शाखाएँ
- पारिस्थितिक (Ecology) : इसमें सजीव व निर्जीव वातावरण के विविध सम्बन्धो का अध्ययन किया जाता हैं |
- भ्रूण विज्ञान (Embryology) : इसमें भ्रूण के परिवर्तन का अध्ययन किया जाता हैं |
- शारीर क्रिया विज्ञान (Physiology) : शारीर के विभिन्न भागों के कार्य एवं कार्य विधियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- क्रेनियोलोजी (Craniology) : इसमें करोटी का अध्ययन किया जाता हैं |
- न्यूरोलोजी (Neurology) : इसके अन्तर्गत तंत्रिका तंत्र का अध्ययन किया जाता हैं |
- हेमैटोलोजी (Heamotology) : इसके अन्तर्गत रुधिर एवं रुधिर रोगों का अध्ययन किया जाता हैं |
- ओस्टीओलोजी (Osteology) : इके अन्तर्गत कंकाल तंत्र का अध्ययन किया जाता हैं |
- एनिओलोजी (Aniology) : इसके अन्तर्गत परिसंचरण तंत्र का अध्ययन किया जाता हैं |
- ओर्गैनोलोजी (Organology) : इसमें अंगों का अध्ययन किया जाता हैं |
- ओडोनटोलोजी (Odontology) : इसके अन्तर्गत दांतों का अध्ययन किया जाता हैं |
- कैरियोलोजी ( Karyology) : इसके अन्तर्गत केन्द्रक का अध्ययन किया जाता हैं |
- वर्गिकी (Taxonomy) : जीव जातियों के नामकरण एवं वर्गीकरण का अध्ययन किया जाता हैं |
- आनुवंशिकी (Genetics) : इसमें जीवो के आनुवंशिक लक्षनॉ की वंशागति भिन्ताओं का अध्ययन किया जाता हैं |
- कोंड्रोलोजी (Chondrology) : इसमें उपास्थि का अध्ययन किया जाता हैं |
- सक्ष्म जैविकी (Microbiology) : इसमें सुक्ष्म जीवों का अध्ययन किया जाता हैं |
- वाइरोलोजी (Virology) : इसमें विषाणुओं का अध्ययन किया जाता हैं |
- बैक्ट्रिरियोलोजी (Bacteriology) : इसके अन्तर्गत जीवाणुओं का अध्ययन किया जाता हैं |
- प्रोटोजोलोजी (Protozoology) : इसमें एक कोशकीय जन्तुओं ‘प्रोटोजोआ’ का अध्ययन किया जाता हैं |
- पैरालोजी (Parology) : इसमें स्पंजो का अध्ययन किया जाता हैं |
- मेलेकोलोजी (Malacology) : इसमें मिलस्का संघ के जन्तुओ का अध्ययन किया जाता हैं |
- हेल्मिन्थोलोजी ( Helminthology) : इसमें चपटे कृमि परजीवियो का अध्ययन किया जाता हैं |
- मिरमीकोलोजी (Myrmecology) : इसके अन्तर्गत चीटियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- कीट विज्ञान (Entomology) : इसके अन्तर्गत कीट-पतंगों का अध्ययन किया जाता हैं |
- निमैटोलोजी (Nematology) : इसके अन्तर्गत निमैटोड परजीवियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- एरेकनोलोजी (Arachnology) : इसके अन्तर्गत मकड़ियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- हरपैटोलोजी (Herpatolog) : इसमें सरीसृपों का अध्ययन किया जाता हैं |
- ऑफियालोजी (Ophiology) : इसमें सर्पो का अध्ययन किया जाता हैं |
- सौरोलोजी (Saurology) : इसमें छिपकलियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- एथनोलोजी (Ethnology) : इसमें मनुष्य की जातियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- मैमोलोजी (Mammology) : इसमें स्तनधारियों का अध्ययन किया जाता हैं |
- एरोवायलोजी (Aerobiology) : इसमें उड़ने वाले जन्तुओं का अध्ययन किया जाता हैं |
- एपीकल्चर (Apiculture) : इसके अन्तर्गत मधुमक्खियों का पालन-पोषण एवं उनसे शहद एवं मोम प्राप्त करने का अध्ययन किया जाता हैं |
- सेरिकल्चर (Sericulture) : इसमें रेशम के कीड़ों के पालन एवं प्राप्त करने का अध्ययन किया जाता हैं |
- पिसिकल्चर (Pisciculture) : इसमें मच्छली पालन की कला का अध्ययन किया जाता हैं |
- मुर्गी-पालन (Poultry) : इसमें मुर्गी-पालन से संबंधित अध्ययन किया जाता हैं |
- सूअर पालन (Piggery) : इसके अन्तर्गत सूअर पालन से संबंधित अध्ययन किया जाता हैं |
- आरथेलोजी (Ornithology) : इसमें पक्षियों एवं उनके स्वभाव का अध्ययन किया जाता हैं |
- रोग विज्ञान (Pathology) : इसमें रोगों की प्रकृति, लक्षनों व कारणों का अध्ययन किया जाता हैं |
जन्तु विज्ञान से सम्बन्धित प्रमुख वैज्ञानिक तथा उनके कार्य
विज्ञानिक का नाम | कार्य अथवा अनुसंधान | वर्ष |
1. लैमार्क (Lamarck) व ट्रेविरैनस (Treviranus) | सबसे पहले “Biology” शव्द का प्रयोग किया | | 1802 |
2. अरस्तु (Aristitle-384-22 B. C.) | जन्तु विज्ञान (Zollogy) का जन्मदाता | | ………. |
3. ल्युवेनहाँक (A. Von Leeuwen Hock) | सुक्ष्मदर्शी में लेन्स आदि का सुधर किया | | 1673 |
4. जेड० जनसीन व एच० जनसीन (Z. Jansens and H. Jansens) | माइक्रोस्कोप (Microscope) का अविष्कार किया | | 1590 |
5. नॉल तथा रंस्का (Knoll and Ruska) | पहला Electron-Microscope बनाया | | 1932 |
6. कुहने (Kuhne) | एन्जाइम (Enzyme) शब्द का प्रयोग किया | | 1878 |
7. स्टर्लिंग (Starling) | हार्मोन (Harmone) शब्द का प्रयोग किया | | 1906 |
8. डॉ० विलियम हार्वे (Dr. William Harvey) | रक्त-परिसंचरण (Circulation) की रीती बनायीं | | 1628 |
9. लैंण्डस्टीनर (Landsteiner) | रक्त समूह (Blood Groups) की खोज की | | 1900 |
10. रास हैरिसन (Ross Harison) | ऊतक संवर्ध (Tissue Culture) बनाये | | 1907 |
11. एंड्रीयास बैसेलीयस (Andreas Vasalius- 1514-64) | प्राणियों का विच्छेदन (Dissection) प्रारम्भ किया | | ……. |
12. आस्कर हर्टविंग तथा फोल (Oskar Hartwig and Fol) | Sea Urchin में निषेचन क्रिया का पता लगाया | | 1875, 77 |
13. रॉबर्ट हुक (Robert Hooke) | “Cell” शब्द का सबसे पहले प्रयोग किया | | 1665 |
14. वाल्डेयर (Waldeyer) | केन्द्रक में Chromosomes का पत्ता लगाया | | 1888 |
15. रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) | कोशिका में केन्द्रक (Nucleus) का पता लगाया | | 1833 |
16. पुर्किन्जे (Purkinje) | “Protoplasm” शब्द का प्रयोग किया | | 1840 |
17. बल्बिआनी तथा फ्लेमिंग (Balbiani and Fleaming) | कोशिकाओं में Mitosis का पता लगाया | | 1881, 82 |
18. कार्न वान लिनियस (Corn Von Linneaus) | नामकरण की द्विनाम पद्धति दि | | 1758 |
19. युसिंगर व स्टोरर | जन्तु जगत का नवीन वर्गीकरण किया | ……. |
- अरस्तु को “जन्तु विज्ञान का जनक” या “जन्तु विज्ञान का पिता” कहते हैं |
- जन्तु संघ को दो भागों में बंटा गया हैं |
- एक-कोशिकीय (Unicellular)
- बहु-कोशकीय (Multicellular)
- कोशिका (Cell) शब्द का प्रयोग सबसे पहले ‘रॉबर्ट हुक’ ने किया था |
- इलेक्ट्रोन सुक्ष्मदर्शी की खोज 1932 में ‘नॉल एवं रस्का’ नामक वैज्ञानिक ने की थी |
- ‘जीवद्रव्य’ (Protoplasm) विधुत का सुचालक हैं |
- वायरस में जीव द्रव्य नहीं पाया जाता हैं |
- ‘माइटोकोणड्रिया’ को कोशिका का बिजलीघर (Power House) कहते हैं |
- ‘गुणसूत्र’ (Chromosomes) न्युक्लियो-प्रोटीन से बने होते हैं |
- गुणसूत्र में ‘जीन्स’ (Genes) पाये जाते हैं |
- नामकरण की द्विनामी पद्धति सन 1758 में ‘कार्न वान लीनियास’ नामक वैज्ञानिक ने दि |
- श्वसन क्रिया के दौरान CO2 गैस का उत्सर्जन फेफड़े द्वारा होता हैं |
- मूत्र में 95% जल, 2% यूरिया, 0.6% नाइट्रोजन एवं थोड़ी मात्रा में अम्ल पाया जाता हैं |
- एमिलोप्सिन एन्जाइम, टायलिन के समान स्टार्च पर क्रिया कर उसे शर्करा और माल्टोज में बदल देता हैं |
- ट्रिप्सन की क्रिया प्रोटीन पर होती है और बचे हुए प्रोटीन को पेप्टोन तथा अमीनो अम्ल में बदल देता हैं |
- स्टिप्सन या लाइपेज एन्जाइम वसा को पित्तीय रस की सहायता से वसीय अम्ल एवं ग्लिसराल में बदल देता हैं |
- कार्बोहाइड्रेट, शक्ति का मुख्य श्रोत हैं | इसमें कार्बन, हैड्रोजन एवं ऑक्सीजन उपस्थित होता हैं |
- कार्बोहाइड्रेट हमें स्टार्च एवं शर्करा के रूप में मिलती हैं | शर्करा जल में घुलनशील हैं | इसमें मुख्यतः ग्लूकोज, फ्रक्टोज होता हैं | शर्करा के मुख्य श्रोत हैं- गन्ना, शक्कर, शहद, चुकन्दर, गुड़ आदि | स्टार्च के मुख्य श्रोत हैं : आलू, चावल, गेहूँ, साबूदाना, आदि |
- प्रोटीन पोषण इसके अन्तर्गत उपस्थित अमीनो अम्ल की गुणवत्ता पर निर्भर करता हैं | कुल 20 अमीनो अम्ल होता हैं | एक वयस्क मनुष्य के लिये 8 प्रकार के अमीनो अम्ल एवं बच्चों के लिए 10 प्रकार के अमीनो अम्ल की आवश्यकता पड़ती हैं | प्रोटीन के मुख्य श्रोत हैं- दूध, अंडा, मांस, दाल आदि | गेहूँ, चालवल, आलू, पनीर में भी थोड़ी मात्रा में प्रोटीन पायी जाती हैं |
- वसा से कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन की तुलना में लगभग दुगुनी ऊर्जा प्राप्त होती हैं | वसा कार्बनिक यौगिक हैं | इसके मुख्य श्रोत- मांस, मछली, घी, पनीर, मक्खन, तेल आदि हैं |
- लेल्युलोज (Cellulose) वानस्पति-कोशिकाओं की दीवार में पाया जाता हैं और साग, हरी पत्तियों की सब्जी में बहुतायत में मिलता हैं |
- मनुष्य के अन्दर 700-1000 मि०ली० पित्त प्रतिदिन बनता हैं | इसका pH मान 7.7 होता हैं |
- एन्जाइम की खोज 1897 में जर्मनी के वैज्ञानिक ‘एडवार्ड बकनर’ ने की थी | इसे ‘जैव उत्प्रेरक’ कहते हैं |
- सभी एन्जाइम प्रोटीन से बनते हैं, लेकिन सभी प्रोटीन एन्जाइम नहीं हैं |
- मनुष्य के शरीर में रक्त की मात्रा शरीर के भार का 7% होती हैं |
- ‘काईनिन’ (Kinin) एक किशिका विभाजक हार्मोन हैं |
- कोशिका विभाजन की क्रिया ‘सेंट्रोसोम’ से आरम्भ होती हैं |
- ‘क्रोमोसोम’ (Chromosome) प्रोटीन तथा डी-ऑक्सी न्यूक्लिक अम्ल से बना होता हैं |
- लार में ‘तायलिन’ एवं ‘माल्टेज’ नामक एन्जाइम पाये जाते हैं |
- पीयूष ग्रन्थि को ‘मास्टर ग्रन्थि’ कहते हैं |
- ‘प्रोजेस्ट्रोन’ हार्मोन अंडाशय से स्त्रावित होता हैं |
- थायराइड ग्रन्थि की वृद्धि को ‘घेंघा’ कहा जाता हैं |
- सामान्य कोशिका का व्यास .05-20 माइक्रान होता हैं |
- शुक्राणुओं को सक्रिय करने वाला पदार्थ ‘प्रोस्टेट ग्रथि’ से निकलता हैं |
- ऑक्सीहीमोग्लोबिन का रंग गहरा लाल होता हैं |
- गुर्दे का मुख्य कार्य उत्सर्जन हैं |
- जन्तुओं में कार्बोहाइड्रेट ग्लाईकोजन (Glycogen) के रूप में संचित रहता हैं |
- निषेचित अंडा ‘जाइगोट’ कहलाता हैं |
- रुधिर एक संयोजी उत्तक हैं |
- अधिकृत ग्रन्थि से ‘एड्रिनलिन’ हार्मोन निकलता हैं |
- परिपकव रुधिराणु में माइटोकोणड्रिया अनुपस्थित होता हैं |
- जठर रस में ‘पेप्सीनोजिन’ एवं ‘रेनिन’ नामक एन्जाइम पाये जाते हैं |
- जठर रस 1 प्रतिशत हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा 90 प्रतिशत जल होता हैं |
- पित्त में ‘ग्लाइकोलेट’ एवं ‘कोलेस्ट्रोल’ नामक लावन पाये जाते हैं |
- आमाशय की दीवार से ‘गैस्ट्रीन’ नामक हार्मोन निकलता हैं |
- प्लाज्मा में 90% जल व 7% प्रोटीन होती हैं |
- प्लाज्मा आयतन में रक्त का 2/3 भाग होता हैं |
- लाल रक्त कणिकाओं को ‘एरिथ्रोसाइट’ कहते हैं |
- प्लीहा (Spleen) को ‘ब्लड बैंक’ कहा जाता हैं |
- श्वेत रक्त-कणिकाओं को ‘ल्यूकोसाइट’ कहते हैं |
- ल्यूकोसाइट का जीवन काल 24-30 घंटे का होता हैं |
- भोजन का अधिकाँश अवशोषण ‘इलियम’ में होता हैं |
स्तनधारियों में पाये जाने वाले प्रमुख हार्मोन
अंत: स्रावी ग्रंथियां | स्रावित हार्मोन | प्रभावित क्रिया |
1. थाइराइड | थाइरोक्सीन ट्राइओडोथाइरोनिन | वृद्धि और उपापचय की गति | |
2. अग्न्याशय | इन्सुलीन | कार्बोहाइड्रेट उपापचय क्रिया | |
3. एड्रीनल मध्यांश(मेडुला) | एड्रिनेलिन
नाएएड्रेलिन |
कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज निर्माण में वृद्धि |
उपापचय में सहायता,रक्तचाप में वृद्धि | |
4. पियूष ग्रन्थि | एन्टीडाइयुरेटिक हार्मोन | वृक्क मूत्र की मात्रा | |
5. पियूष ग्रन्थि | फोलीकलस्टी स्टीमुलेटिंग हार्मोन | अंडाशयी पुटक | |
6. पियूष ग्रन्थि | वृद्धि हार्मोन | वृद्धि क्रिया | |
7. पियूष ग्रन्थि | ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन | अंडाशयी कारपस ल्यूटियम | |
8. पियूष ग्रन्थि | एइरोनो कोरिटिको ट्रोमिक हार्मोन | एड्रीनल मध्यांश | |
9. अंडाशय | एस्ट्रोजन | मादा यौन अंग |
10. वृषण | टेस्टोंस्टेरोन | नर यौन अंग | |
- संघ-प्रोतोजोआ के अन्तर्गत अमीबा, पैरामीशियम, युग्लीना तथा औपेलिना प्राणी आते हैं |
- युग्लीना, वर्ग-मेंस्टिगोफोरा का जीव हैं | इनका चलन कशाभिकाओं (Flagellae) द्वारा होता हैं |
- ओपेंलिना (Opalina), वर्ग-ओपेलिनेटा का प्राणी हैं | चलन के लिए इनके शरीर पर सिलिया (Cilia) जैसी तिरछी पंक्तियाँ होती हैं |
- अमीबा में चलन पादाभ अथवा कूटपाद (pseudopodia) द्वारा होता हैं अमीबा की खोज सर्वप्रथम ‘रसेल वोन रोजेन होफ’ ने की थी |
- अमीबा में लैंगिक जनन नहीं होता हैं |
- अमीबा में गुणसूत्र आकृति में गोल होते हैं तथा यह ‘क्रोमिडिया’ कहलाते हैं | इन क्रोमिडिया की संख्या अमीबा में 500-600 होती हैं |
- अमीबा में मुख्य उत्सर्जित पदार्थ अमोनिया हैं | यह उत्सर्जी पदार्थ अमीबा में बाई पिरामिडल क्रिस्टल के रूप में होता हैं |
- अमीबा द्विविभाजन (Binary Fission) द्वारा अपनी संख्या में तेजी से वृद्धि करता हैं |
- अमीबा के लिए अनुकूल ताप 20-35 डिग्री सेल्सियस होता हैं |
- अमीबा व पैरामिशियम एक-कोशिक जन्तुक हैं |
जन्तु – जगत का वर्गीकरण (Classification of Animal Kingdom)
जन्तु जगत (Animal Kingdom)
- उपजगत-प्रोतोजोआ (Protozoa)
- संघ प्रोतोजोआ
- उपसंघ-प्लाज्मोड्रोमा (Plasmodroma)
वर्ग 1- मेंस्टिगोफोरा (Mastigophora)
वर्ग 2- ओपेलिनेटा (Opelinata)
वर्ग 3- सार्कोडिना (राइजोपोडा) (Sarcodian)
वर्ग 4- स्पोरोजोआ (Sporozoa) - उपसंघ-सिलिओफोरा (Ciliophora)
वर्ग 5- सिलिएटा (Ciliata)
- उपसंघ-प्लाज्मोड्रोमा (Plasmodroma)
- उपजगत-मेटाजोआ (Metazoa)
- शाखा वसंघ- मीसोजोआ (Mesozoa)
- शाखा- पराजोआ (Parazoa)
- संघ प्रोतोजोआ
संघ- पोरिफेरा (Porifera)
- शाखा- एंटेरेजोआ (Enterozoa)
- विभाग- रेंडिएटा (Radiata)
संघ- सीलेंटरेटा (Coelenterata) - विभाग- बाइलेटेरिया (Bilateria)
- खंड- असीलोमाटा (Acoelomata)
संघ- प्लेटीहेल्मिन्थीस (Platyhelminthes) - खंड- स्यूडोसीलोमाटा (Pseudocoelomata)
संघ- एस्कहेल्मिन्थिस (Aschelminthes) - खंड- यूसीलोमाटा (Eucoelomata)
संघ- मोलास्का (mollusca)
- खंड- असीलोमाटा (Acoelomata)
- विभाग- रेंडिएटा (Radiata)
संघ- आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)
संघ- इकाइनोदर्माटा (Echinodermata)
संघ- कॉर्डेटा (Chordata)
संघ कॉर्डेटा का वर्गीकरण (Phylum Chordata)
ग्रुप (क) अक्रेंनिया (Acrania)
उपसंघ- टयूनिकटा (Tunicata or Urochordata)
उपसंघ- सेफैलोकॉर्डेटा (Cephalochordata)
ग्रुप (ख) क्रेनिएटा या वर्टिब्रेटा (Craniata or Vertibrata)
उपसंघ- एगनाथा (Angatha)
उपसंघ- नैथोर्स्टोमैटा (Nathostomata)
महा वर्ग मीन (Super Class-Pisces)
वर्ग 1- प्लेकोडर्माइ (Placodermi)
वर्ग 2- कोंड्रीक्थीस (Chondrichthyes)
वर्ग 3- ओस्टिक्थीस (Osteichtyes)
महा वर्ग चतुष्पादा (Nathostomata)
वर्ग 1- एम्फिबिया (Amphibia)
वर्ग 2- रेप्तीलिया (Reptilia)
वर्ग 3- एवीज (पक्षी) (Aves)
वर्ग 4- स्तनी (Mammalia)
- अमीबा के अंत: द्रव्य में एक केन्द्रक होता हैं |
- पैरामिशियम के अन्तः द्रव्य (Endoplasm) में दो केन्द्रक (1) लघु-केन्द्रक तथा (2) गुरु-केन्द्रक होते हैं |
- लघु-केन्द्रक में ‘आइडीनोक्रोमैटीन’ होता हैं और यह जनन के अतिरिक्त, सारी क्रियाओं विशेष कर पोषण सम्बन्धी क्रियाओं पर नियंत्रण रखता हैं |
- पैरामिशियम में जनन, विखंडन वसंयुग्मन द्वारा होता हैं |
- पैरामिशियम में उत्सर्जनांग ‘साइटोप्राक्ट’ हैं |
- संयुग्मन से 4 नये पैरामिशियम बनते हैं |
- ‘स्टार-फिश’ इकाई नोडर्माटा संघ का जन्तु हैं |
- इकाईनोडर्माटा-संघ के प्राणियों में चलन ‘नाल-पाद (Tube Feet) की सहायता से होता हैं |
- स्पंज (Sponges), संघ-पोरिफेरा का प्राणी हैं | ये बहु-कोशिका प्राणी समुन्द्र के पानी में चाटटनों आदि पर लगे होते हैं |
- ऐस्केरिसवहुकवर्म, संघ-एस्कहेल्मिन्थीस के प्राणी हैं |
- केकड़ा तथा प्रान ‘गिल्स’ द्वारा श्वसन क्रिया करते हैं |
- कीट का शरीर तीन भागों- सिर, वक्ष तथा उदर में बंटा होता हैं |
- ‘अर्थ्रोपोडा’ सबसे बड़ा संघ हैं
शरीर के विभिन्न भाग एवं पोषक तत्वों से अभिक्रिया करने वाले एन्जाइमों के नाम तथा उनसे उत्पन्न पदार्थ
शरीर के विभिन्न भाग | पोषक तत्व | अभिक्रिया करने वाले एन्जाइम | अभिक्रियाओं से उत्पन्न पदार्थ |
1. आमाशय | प्रोटीन | पेप्सिन | पेप्टोन |
2. अगन्याशय | प्रोटीन और पेप्टोन | ट्रिप्सिन | पोलीपेप्टाइड, अमीनो अम्ल |
3. अगन्याशय | वसा | लाइपेज | ग्लिसरीन और वसा अम्ल |
4. छोटी आंत | प्रोटीन | इरेप्सिन | एमिनो अम्ल |
5. छोटी आंत | कार्बोहाइड्रेट | सुक्रेज, लैक्टेज, माल्टेज | मोनोसैकेराइड, ग्लूकोज, ग्लैकटोज/ लैबूलोज |
- फीताकृमि के ‘स्ट्रोविला’ भाग में जनन अंग होते हैं |
- फीताकृमि का शारीर तीन भागों-शीर्ष, ग्रीवा तथा स्ट्रोविला में बंटा होता हैं |
- ‘टिनिया सोलियम’ मनुष्य के आहार-नाल में पाया जाने वाला फीताकृमि हैं जिसको संघ-प्लेटीहेल्मिन्थीज के वर्ग-सेस्टोडा में रखा जाता हैं |
- फीताकृमि में कंकाल, श्वसन तंत्र तथा परिसंचरण तंत्र नहीं होते है |
- टीनिया (फीताकृमि) के परपोषी मनुष्य एवं सुअर दोनों है |
- फीताकृमी के शीर्ष में 4 चूषक तथा रोस्टेलम पर 28 अंकुश होते हैं |
- मछली एक असमतापी प्राणी हैं |
- सॉंप के ऊपरी जबड़े में विषदन्त पाये जाते हैं |
- सॉप, मगरमच्छ, छिपकली तथा कछुआ रेप्तीलिया वर्ग के प्राणी हैं |
- मैमेलिया वर्ग के प्राणियों के शारीर पर रोम होता हैं |
- कछुए के जबड़े में दांत नहीं पाए जाते हैं |
- सिलिऐटा वर्ग के प्राणी पानी में तथा कोलोनीज (Colonies) दोनों में पाये जाते हैं |
- पक्षियों की विष्टा में यूरिया, नाइट्रेट्स तथा फोस्फेट्स होते हैं |
चिकित्सा-विज्ञान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण खोजें
नाम | खोजकर्ता |
पेनीसिलीन | अलेक्जेंडर फ्लेमिंग एवं फ्लोरे (1929) |
इन्सुलिन | एफ बेंटिग (1932) |
एस्पिरीन | ड्रेजर (जर्मनी) |
क्लोरोफ़ॉर्म | जैम्स हैरी सन |
स्ट्रेप्तोमाइसीन | बैकस मैंन (अमेरिका) |
टेरामाइसीन | फिनेल (अमेरिका) |
सल्फाड्रग्स | जी० डोमक |
जीवाणु | एंटोनी वान ल्यूवेनहक (1673) |
विटामिन | फुंक (फ़्रांस) |
जेनेटिक कोड | डॉ० हरगोविन्द खुराना, भारत (1968) |
कृत्रिम हृदय परिवर्तन | डॉ० क्रिशिचयन बबार्ड (1967) |
- मेंढक व भेक प्राणी जगत के संघ-कॉर्डेटा, उपसंघ-वर्टिब्रेटा एवं वर्ग-एम्फिबिया में रखे गए हैं |
- मेंढक के श्व्सनांग फेफड़े, त्वचा व मुखगुहिका की श्लेष्मिक झिल्ली हैं |
- मेंढक के शिशु में श्वसन ‘क्लोमों’ (Gills) द्वारा होता हैं |
- ‘मैग्लोबेट्रकस’ सबसे बड़ा उभयचरी (Amphibia) हैं |
- मेंढक के जीवन इतिहास की चार अवस्थाए- डिम्भक अवस्था, ब्राह्रागिल अवस्था, अंत:गिल अवस्था एवं कार्यान्त्रण अवस्था है |
- नर मेंढक में वाककोष पाये जाते है |
- मेंढक में ‘पिचूटरीन हार्मोन’ के कारन काले धब्बे बनते व बढ़ते हैं तथा ‘एड्रीनेलिन-हार्मोन’ के कारण काले धब्बे सिकुड़ जाते हैं एवं रंग हल्का पड़ता हैं | निष्क्रियता की अवस्था में मेंढक की श्वसन क्रिया त्वचा (Skin) द्वारा होती हैं |
- मेंढक में कायांतरण के लिए ‘थाइराइड ग्रंथि’ उत्तरदायी होती हैं |
- जीभ विहीन उभयचरी (Amphibia) प्राणी ‘इक्थियोफिस’ कहलाते है |
- तोड मेंडक के मुख में दांत नहीं होते हैं |
- तोड (Toad) एक ऐसा उभयचरी प्राणी हैं जिसकी त्वचा में विष ग्रंथि होती हैं |
- मेंढक का निचला जबड़ा दन्त-विहीन होता है |
- मेंढक का टैडपोल (लार्वा) शाकाहारी होता हैं |
- मेंढक की प्रथम मेरु तंत्रिका ‘हापोग्लोसल’ हैं |
- मेंढक में स्पाइनल तंत्रिकाओं की संख्या 9 जोड़े होती हैं तथा सभी स्पाइनल तंत्रिकाए मिश्रित होती है |
- मेंढक में परिसंचरण तंत्र और उत्सर्जन अंग ‘मीसोडर्म’ से विकसित होते हैं |
- मेंढक में 10 जोड़ी कपाल तंत्रिकाये होती हैं |
- मेंडक के अंडे से सम्पूर्ण अंडे बनने में 80-90 दिन का समय लगता हैं |
- मेंढक के निषेचन अंडे से 10 दिन बाद टैडपोल (लार्वा) बनता हैं |
- मेंढक बरसात में जुलाई-अगस्त तक जनन करता हैं |
- मेंढक में प्लीहा गोल एवं गहरे लाल रंग की होती हैं |
- मेंढक के ह्रदय का दांयाँ अलिंद बड़ा होता हैं |
- मेंढक में ब्रह्म निषेचन होता है |
- मेंढक के अण्डाणु में गुणसूत्र की संख्या 12 होती हैं |
- नर मेंढक के मुख्य जनन अंग ‘वृषण’ होते हैं |
- मादा मेंढक के मुख्य जनन अंग एक जोड़ा ‘अंडाशय’ होते हैं |
- मेंढक के ह्रदय में दो अलिन्द तथा एक नीली होता हैं |
- मेंढक तथा टोड की लाल रक्त कणिकाओं में केन्द्रक होता हैं |
- मेंढक की त्वचा में चर्म-ग्रंथीयाँ पायी जाती हैं |
- पक्षी (Aves) वर्ग के प्राणियों में श्वसन क्रिया फेफड़ों द्वारा होती हैं, ये समतापी होते है, आहार नाल में क्रॉप व गिजर्ड होते हैं, ब्रह्म-कर्ण व मूत्राशय नहीं होते हैं | इनके ह्रदय में 4 वेश्म (दो अलिन्द व दो निलय) होते हैं |
- पक्षीयों में निषेचन मादा के शरीर में होता हैं |
- पक्षीयों में 12 जोड़े कपाल तंत्रिकायें होती हैं |
- कबूतर के शरीर को सिर, धड़, ग्रीवा और पूँछ में बाँटा गया हैं |
- कबूतर का शरीर ‘नाव के आकार’ का होता हैं |
- कबूतर के एक पंख में 23 उड़ान पर होते हैं | इनको पक्षपिच्छ (Remiges) कहते हैं |
- पूँछ के 12 उड़ान पर ‘रेकट्रीसीज’ कहलाते हैं |
- मादा कबूतर एक समय में घोंसले में दो अंडे देती हैं |
- कबूतर के पर ‘कन्टूर’, ‘डाउन’ व ‘रोम पिच्छ’ तीन प्रकार के होते हैं |
- न उड़ने वाले पक्षी हैं : शुतरमुर्ग, एमू, पेंगविन्स, कीवी |
- ‘कीवी’ के पर सजावट के काम आते हैं |
- कोयल ‘कोलम्बीफार्मीज’ गण का पक्षी हैं |
- मोर ‘गैलिफर्मिज’ गण का पक्षी हैं |
- तोता ‘सिटासीफार्मीज’ गण में रखा गया हैं |
- कोयल अपने अंडे कौए के घोसले में देती हैं |
- कबूतर के शरीर का ताप 43.3 डिग्री सेल्सियस होता हैं |
- पेंग्विन अंटार्कटिका में पाया जाने वाला पक्षी हैं |
- कोकरोच (टिलचट्टा), संघ-अर्थ्रोपोडा के वर्ग-इन्सेक्टा (हैक्जोपोडा) का कीट हैं | इसमें तीन जोड़ी टंगे होती हैं | यह रात्रिचर व सर्वाहारी प्राणी हैं |
- कीटों में श्वसन-क्रिया ‘श्वास नालों’ (Trachea) द्वारा होती हैं |
- कीटों में प्रगुहा के स्थान पर ‘हीमोसील’ होती हैं |
- कोकरोच अथवा तिलचट्टा की एंटनी तीन भंगो-स्केप, पेडीसिल व फ्लेजलम में बनी होती हैं |
- कोकरोच अथवा तिलचट्टा में हिमोग्लोबिन के स्थान पर ‘हीमोलिम्फ़’ होता हैं |
- नर कोकरोच में एक जोड़ी एनलस्टाइल पाये जाते हैं |
- नर कोकरोच में मशरूम ग्रन्थि सहायक प्रजनक ग्रन्थि के रूप में पायी जाती हैं |
- कोकरोच के मुखांग मेंडीबुलेट प्रकार के होते हैं |
- कोकरोच का श्वसन अंग ‘ट्रेकिया’ (Trachea) हैं |
- कोकरोच की फैलिक ग्रन्थि ‘स्परमेटोफोरा’ बनाने में सहायक हैं |
- तिलचट्टे का ह्रदय तेरह चैम्बर वाला होता हैं |
- तिलचट्टे में उत्सर्जन का कार्य ‘मैलपीघी नलिकाओं’ द्वारा होता हैं |
- कोकरोच का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ ‘यूरिक अम्ल’हैं |
- कोकरोच की लार में ‘एमाइलेज’ एन्जाइम होता हैं |
- फाइलेरिया रोग मादा क्यूलेक्स मच्छर द्वारा फैलता हैं |
- कोकरोच की टांग की पांच भाग होते हैं – कोक्स, ट्रोकेंटर, फीमर, टीबिया एवं टारसस | ‘कोक्स’ टांग का आधारीय भाग तथा ‘टारसस’ अंतिम भाग हैं |
- तिलचट्टा एकलिंगी कीट होता हैं |
- रेशम कीट का जीवन चक्र 5-6 दिनों में पूरा होता हैं |
- मादा रेशम कीट शहतूत की पत्तियों के निचले तल पर अंडे देता हैं |
- निषेचन के बाद मादा रेशम कीट एक बारी में लगभग 300 अंडे देते हैं |
- रेशम कीट के प्रत्येक अंडे से ‘इल्ली’ (कैटरपिलर) बनता हैं |
- कोकरोच के प्रत्येक अंडे से एक नन्हा ‘अर्भक’ (निम्फ) बनता हैं |
- मधुमक्खियों के समाज में 50,000 से 80,000 तक प्राणी होते है जिनमें एक रानी मक्खी, लगभग 200 नर व शेष श्रमिक मक्षिकाए होती हैं |
- दीमक के अंडो से सबसे पहले अर्भक (निम्फ) बनता हैं |
- ओडन्टोटर्मिज दीमक का वैज्ञानिक नाम हैं |
- खरगोश ‘लैगोमर्फी‘ गण का प्राणी हैं |
- खरगोस डरपोक परन्तु चालक प्राणी हैं |
- खरगोश का गर्भकाल 27-32 दिन का होता हैं |
- खरगोश में सबसे छोटी हडडी ‘स्टेपिज’ (Stepes) हैं |
- खरगोश में तेल ग्रन्थियाँ (Oil Glands) त्वचा की उपचर्म में पाया जाता है |
- शरीर के ‘लिगामेन्ट ऊतक’ (Ligament Tissue) के खिंच जाने से मोच आती हैं |
- खरगोश के वृषण में ‘सरटोली कोशायें’ पायी जाती है |
- खरगोश के निचले जबड़े के अर्धभाग में 6 दांत होते हैं तथा दोनों जबड़ो में मिलाकर कुल 28 दांत होते हैं |
- खरगोश के शरीर के सबसे बड़ी ग्रन्थि ‘यकृत’ हैं |
- खरगोश में हार्मोन स्त्रावित करने वाली लेडिंग कोशिकायें (Leyding Cells) वृषण में पायी जाती हैं |
- खरगोश की खोपड़ी ‘द्विकोंडलीय’ होती हैं |
- मादा खरगोश में प्रोस्टेट ग्रन्थि नहीं पायी जाती हैं |
- खरगोश एक ‘युरियोटेलिक’ प्राणी हैं |
- खरगोश के ‘श्सनांग’ एक जोड़ी लचीले, स्पंजी फेफड़े होते हैं |
- श्वसन क्रिया से बाहर निकली गई वायु में लगभग 16% ऑक्सीजन होती हैं |
- क्रेब्स चक्र में पाइरुविक अम्ल से दो अणु CO2 व ATP अणु बनते हैं |
- क्रेब्स चक्र में ऑक्सीजन फोस्फोरिकरण द्वारा ATP का संशलेषण होता हैं |
- तंत्रिका तंत्र, तंत्रिका ऊतक का बना होता हैं |
- ‘थायराइड’ सबसे बड़ी अन्तःस्रावी ग्रन्थि हैं | इस ग्रन्थि से ‘थाइरोंक्सीन’ नामक हार्मोन निकलता हैं |
- खरगोश के पश्च-पाद का डिजिटल फार्मूला 2,2,3,4,3 तथा अग्र-पाद का डिजिटल फार्मूला 2,3,3,3,3 होता हैं |
- खरगोश को स्तनीयों में वर्गिद्रित किया गया हैं क्योंकि उसमें स्तन ग्रन्थियाँ, ब्रह्मकर्ण, रोम तथा मध्यपटल पाए जाते हैं |
- खरगोश के प्रत्येक अग्र-पाद के हस्त में 5 तथा प्रत्येक पश्च-पाद में 4 अंगुलियाँ होती हैं |
- शशक के कानों के नीचे ‘पैराटोइड ग्रन्थि’ का जोड़ा पाया जाता हैं |
- खरगोश में ‘रदनक दांत’ नहीं पाये जाते हैं |
- शशक के रुधिर में प्रति घन मि० मी० में 50 लाख लाल-कनिकायें होती है, जबकि मेंढक के रुधिर में प्रति घन मि० मी० में 4 लाख कनिकायें होती हैं |
- खरगोश के ह्रदय में दो अलिन्द एवं दो निलय होते हैं |
- खरगोश में उत्सर्जन का मुख्य जननांग ‘अंडाशय’ हैं |
- केचुआ, संघ-एनेलिडाके वर्ग-ओलीगोकीटा व गण अपेस्थोपोरा का जीव हैं |
- संघ-एनेलिडा का प्राणियों में कंकाल व श्वसन अंगो का अभाव होता हैं | इनमें श्वसन क्रिया त्वचा द्वारा ही होती हैं |
- केचुए में लाल रुधिर-कनिकायें नहीं होती हैं |
- केंचुआ द्विलिंगी प्राणी हैं, परन्तु इसमें स्व-निषेचन न होकर पर-निषेचन ही होता हैं |
- केंचुआ कृषक का मित्र हैं | यह नाम भूमि में सुरगें (पोला करके) बनाकर एक वर्ष में कई टन अवमृदा ऊपर लाकर रखते हैं जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढती हैं |
- केंचुए के मृत शरीर भी मिट्टी में सड़कर अच्छी खाद बन जाते हैं |
- केंचुए में लैंगिक जनन ही होता हैं तथा अलैंगिक जनन नहीं होता हैं |
- केंचुए के शरीर के 17 वें एवं 19 वें खण्ड में दो जोड़ी जैनाइटली पाये जाते हैं, जो मैथुन में सहायक होते हैं |
- केंचुए के 14वें खण्ड में मादा जनन छिड तथा 18 वें खण्ड में नर जनन छिद्र पाया जाता हैं |
- केंचुआ में निषेचन ‘कोकून’ में होता हैं |
- केंचुए का भूरा रंग ‘पोरफाइरी’ नामक पदार्थ के कारण होता हैं |
- केंचुए के 14 वें , 15 वें तथा 16 वें खंडो पर एक मोटी गहरी रंग की पेटी (पर्यणिका) होती हैं |
- पर्यणिका के अधर तल पर 14 वें खंड में एक मादा जननिक द्वारा होता हैं तथा 18 वें खण्ड पर एक जोड़ा नर जननिक द्वार होता हैं |
- केंचुए में चलन ‘सीटी’ द्वारा होता हैं |
- ‘व्हेल फिश’ (Whale Fish) स्तनी हैं |
- ‘सिल्वर फिश’ एक कीट हैं |
- ‘जेली फिश’ सीलेट्रेटा संघ का प्राणी हैं |
- ‘डेविल फिश’ मोल्सका संघ का प्राणी हैं |
- ‘समुन्द्री गाय’ मैमेलिया संघ का जन्तु हैं |
- ‘समुन्द्री घोड़ा’ व ‘समुन्द्री शेर’ संघ-कोरडटा के प्राणी हैं |
- ‘समुन्द्री चूहा’ संघ-एनेलिडा का प्राणी हैं |
कुछ महत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
- कीट वर्ग (Class-Insecta) के जन्तुओं में टांगों की संख्या निश्चित होती है |
- अमीबा में केन्द्रक के अन्दर पाये जाने वाले जेवद्र्व्य को न्यूक्लियोप्लाज्मा (केन्द्रक द्रव्य) कहते हैं |
- पैरामिशियम का आकार चप्पल की भांति होता हैं |
- पैरामिशियम की बाहरी झिल्ली को पेलिकिल (Pellicle) कहते हैं |
- पैरामिशियम का जीवद्रव्य दो भागों इंडोप्लाज्मा तथा एक्टोप्लाज्म में बंटा होता हैं |
- केंचुए में गिजर्ड आँठवें एवं नवें खण्ड में पायी जाती हैं |
- केंचुए के आमाशय में कैल्शिफेरस ग्रन्थि पायी जाती हैं |
- कोकरोच के देहखण्ड अर्थ्रोडियल कला नामक झिल्ली द्वारा जुड़े होते हैं |
- कोकरोच के सिर में नेत्र के बीच से निचे की ओर तक फैली प्लेट को क्लाइपियस कहते हैं |
- दीमक की आंत में ट्राइकोनिम्फा नामक प्रोटोजोआ पाया जाता हैं |
- मेंढक के वृक चपटे व आयताकार प्रकार के होते हैं |
- मेंढक की शुक्रजनन नलिकाओं के बीच में कुछ विशेष प्रकार की कोशिकायें पायी जाती हैं, उन्हें अन्तराली कोशिकायें कहते हैं | ये अन्तराली कोशिकायें नर हार्मोन्स का स्रवन करती हैं |
- मेंढक में मैथुन क्रिया लगभग 24 घंटे चलती हैं |
- मैथुन के पश्चात मादा मेंढक 500-600 अंडे देती हैं |
- खरगोश के बिल को बैरन कहते हैं |
- केंचुआ फोटोरिसेप्तर से देखता हैं |
- मेढक में मेरु तंत्रिकाओं की संख्या 10 जोड़ी होती हैं |
- ब्रयोफाइटस नम तथा छायादार स्थानों पर उगते हैं |
- नर कोकरोच में ‘स्टिक ग्रन्थि’ पायी जाती हैं |
- कोकरोच के अंडे ‘सेंट्रोलेसिथल’ प्रकार के होते हैं |
- केंचुए में लाल रक्त कनिकायें (R.B.C.) नहीं पायी जाती हैं फिर भी उनका रक्त लाल होता हैं |
- जल में घुलनशील विटामिन्स हैं : B एवं C |
- वसा में घुलनशील विटामिन्स हैं : A, D, E, एवं K |
- विटामिन ‘A’ (रेटिनॉल) का रासायनिक सूत्र C20H80OH हैं |
- बिटामिन ‘B1’ (थियामीन) का रासायनिक सूत्र C12H16N4SO हैं |
- विटामिन ‘B2’ (राइबोफ्लेविन) का रासायनिक सूत्र C17H20N4O6 हैं |
- विटामिन ‘C’ (स्कर्बिक अम्ल) का रासायनिक सूत्र C6H8O हैं |
- विटामिन ‘D’ (कैल्सिफेरोल) का रासायनिक सूत्र C28H44O हैं |
- विटामिन ‘E’ (टोकोफेरोल) का रासायनिक सूत्र C29H50O2 हैं |
- विटामिन ‘K’ (फलेविनोकविनोन) का रासायनिक सूत्र C31H46O2है |