15वां वित्त आयोग और पंचायतों की वित्तीय स्थिति
15वें वित्त आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा नवंबर, 2017 में नंद किशोर सिंह की अध्यक्षता में किया गया। इसकी सिफारिशें वर्ष 2021-22 से वर्ष 2025-26 तक 5 वर्ष तक की अवधि के लिए मान्य होंगी। 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने की सिफारिश की है, जबकि 13वें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्यों का हिस्सा 32 प्रतिशत निर्धारित किया था।
कोविड-19 के दौरान विशेष रूप से संसाधनों की उपलब्धता लंबे समय तक बनाए रखने के लिए 15वें वित्त आयोग ने राज्यों की हिस्सेदारी को 41 प्रतिशत बनाए रखने की सिफारिश की है। यह वर्ष 2020-21 रिपोर्ट में दी गई सिफारिश के समान ही है । यह राशि वितरण पूल के 42 प्रतिशत के समान स्तर पर है जैसा कि 14वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित है। हालांकि, इसमें जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव के बाद बने नए केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर के आने से 1 प्रतिशत का आवश्यक समायोजन भी किया गया है।
स्थानीय निकायों को वर्ष 2021 से 2026 की अवधि के लिए 4,36,361 करोड़ रुपए का कुल अनुदान दिया जाना चाहिए तथा इन अनुदानों में 8,000 करोड़ रुपये नए शहरों को काम के आधार पर दिए जाएंगे तथा साझा नगरपालिका सेवाओं के लिए 450 करोड़ दिए जाएंगे। जबकि ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 236,805 करोड़ रुपये, शहरी स्थानीय निकायों के लिए 1,21,055 करोड़ रुपये और स्थानीय निकायों के माध्यम से स्वास्थ्य अनुदान के लिए 70,051 करोड़ रुपये की राशि दी जाएगी।
शहरी स्थानीय निकायों को जनसंख्या आधार पर दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें प्रत्येक को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं व मांग के आधार पर अनुदान दिए गए हैं। मूल अनुदान केवल उन शहरों/कस्बों के लिए प्रस्तावित हैं, जिनकी जनसंख्या 10 लाख से कम है। जबकि 10 लाख से अधिक की आबादी वाले शहरों के लिए 100 प्रतिशत अनुदान ‘मिलियन प्लस सिटीज चैलेंज फंड’ (Million Plus Cities Challenge Fund for Million-Plus Cities) के जरिए प्रदर्शन के आधार पर जोड़े गए हैं।