हिमालय एवं प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्रों के बीच अंतर
किसी भौगोलिक प्रदेश में प्रवाहित होती हुई मुख्य जलधारा अपने सहायिकाओं,उपसहायिकाओं एवं वितरिकाओं के साथ मिलकर एक विशिष्ट आकृति या स्वरूप धारण करती है, जिसे अपवाह तंत्र या प्रतिरूप कहा जाता है। इसमें वृक्षाकार, जालीनुमा, आयताकार, अभिकेंद्रीय, वलयाकार, गुंबदाकृति, समानांतर प्रतिरूप आदि शामिल किये जाते हैं। भारत की नदियों के अपवाह तंत्र को भौगोलिक आकृतियों के आधार पर मुख्यतः दो वर्गों मे विभाजित किया जाता है।
मालयी नदियों का अपवाह तंत्र
प्रायद्वीपीय नदियों का अपवाह तंत्र
हिमालय एवं प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्रों के बीच अंतर
हिमालयी अपवाह तंत्र की उत्पत्ति हिमालय पर्वत श्रेणियों से जबकि प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र की नदियाँ प्रायद्वीपीय पठारों से निकलती हैं। हिमालय की नदियाँ बारहमासी होती हैं जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं और मुख्यः मानसून में प्रवाहित होती हैं। हिमालयी नदियाँ नवीनतम अपवाह तंत्र हैं एवं नवीन वलित पर्वतों के मध्य प्रवाहित होती हैं, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ प्रौढ़ावस्था में हैं तथा प्रायद्वीपीय पठारों से होकर प्रवाहित होती हैं। हिमालयी नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रणाली है, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ अनुवर्ती अपवाह प्रणाली हैं। हिमालयी अपवाह तंत्र के नदियों के बेसिन एवं जलग्रहण क्षेत्र प्रायद्वीपीय नदियों की तुलना में काफी विस्तृत है। ये अपवाह तंत्र देश के आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं राजनैतिक विकास के प्रमुख करक है। हिमालय के अपवाह तंत्र के कारण ही उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण हुआ है।