हिन्दू विवाह सम्बन्धी नियम व निषेध का मूल्यांकन
लोकतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था, आधुनिकीकरण, वैश्वीकरण आदि के कारण आज अन्तर्विवाह और बहिर्विवाह सम्बन्धी नियम कमजोर हुए हैं। भारत सरकार ने सगोत्र बहिर्विवाह और प्रवर बहिर्विवाह को अमान्य करते हुए केवल पिता की ओर से 5 तथा माता की ओर से 3 पीढ़ियों के बीच सपिण्ड बहिर्विवाह को ही मान्यता प्रदान की है, ( हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955) । फलतः सम्पूर्ण भारत में व्यवहार में सपिण्ड बहिर्विवाह और कुछ हद तक गोत्र बहिर्विवाह और ग्राम बहिर्विवाह ही प्रचलित हैं । अन्तर्जातीय विवाह की घटनाएँ सामने आने लगी हैं और इसको सरकार के द्वारा प्रोत्साहित भी किया जा रहा है, परन्तु अभी भी अधिकांश हिन्दू विवाह जातीय अन्तर्विवाह के नियमों के आधार पर ही होता है। अतः निष्कर्ष है कि वर्तमान भारत में हिन्दू विवाह सम्बन्धी निषेध से जुड़े कुछ नियम कमजोर पड़े हैं तो कुछ अभी भी जारी हैं।