हिन्दू विवाह में आधुनिक परिवर्तन
आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में हिन्दू विवाह के कमोबेश सभी पक्षों में हो रहे परिवर्तन महत्वपूर्ण व विचारणीय हैं जिन्हें निम्न बिन्दुओं के अर्न्तगत देखा जा सकता है।
1. विवाह से सम्बन्धित धार्मिक कर्तव्यों के पालन के संदर्भ में कमी आई है।
2. पुत्र प्राप्ति के पारम्परिक दृष्टिकोण के संदर्भ में बदलाव आया है।
3. यौन-तुष्टि से सम्बन्धित विचारों के संदर्भ में परिवर्तन देखा जा रहा है।
4. बच्चों के पालन-पोषण के संदर्भ में भी लोगों के दृष्टिकोण परिवर्तित हो रहे हैं।
तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार के कारण आज धर्म के प्रभाव में ह्रास हुआ है, फलतः विवाह अब धार्मिक कर्तव्य (Religious duty) के पालन हेतु नहीं वरन् आनंद एवं सहयोग के लिए किया जाता है। आज पुत्र और पुत्री दोनों को नहीं रह गया है। आज एक ऐसा वर्ग भी उत्पन्न हो रहा है जो समान महत्व देने के कारण पुत्र प्राप्ति विवाह का प्रमुख उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति को भी आवश्यक नहीं मानता। बहुलता में देखा जाए तो यौन तुष्टि विवाह का मुख्य उद्देश्य अभी भी है। परन्तु कॉल गर्ल, विवाह पूर्व यौन संबंध, को- लिविंग आदि के प्रचलन ने विवाह के इस उद्देश्य की प्रमुखता को भी कमजोर किया है। नर्सरी, किंडर-गार्डेन, किड्स केयर सेंटर, आया आदि की विद्यमानता ने आज बच्चों के पालन-पोषण सम्बन्धी पक्ष को कमजोर किया है।
आज अन्तर्जातीय विवाह और प्रेम विवाह की घटनाएं नगरीय समाज में देखी जाने लगी हैं। शहरों में आया आधुनिक खुलापन और पश्चिमी प्रभावों ने विवाह पूर्व यौन सम्बन्धों तथा सहजीवन के प्रचलन को संभव बनाया है। स्वीडन, नॉर्वे आदि पश्चिमी देशों की तर्ज पर यहाँ भी समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने की मांग उठने लगी है तथा कलकत्ता के एक स्वयं सेवी संगठन द्वारा इस प्रकार के विवाह को वैध बनाने की मांग की गयी है। आधुनिक शिक्षा और जागरुकता के कारण बाल विवाह की ओर झुकाव कम हुआ है तथा विवाह की आयु में वृद्धि, स्वावलंबी होने तक विवाह का विरोध, दम्पति के स्वास्थ्य की रक्षा, स्वस्थ संतान तथा योग्य जीवनसाथी के चयन में सुविधा जैसी बातें विवाह के विलम्ब के लिए उत्तरदायी हैं। आज विधवा पुनर्विवाह की संख्या बढ़ी है हालांकि अभी भी इनकी संख्या कम है। स्त्रियों के व्यक्तित्व के विकास हेतु, अनैतिक व्यभिचार रोकने हेतु, उनके बच्चों को अनाथ होने से बचाने हेतु तथा उनको समानता एवं न्याय दिलाने हेतु आज विधवा विवाह को सामाजिक और नैतिक दोनों दृष्टिकोण से आवश्यक समझा जाने लगा है।
आज विवाह को आजीवन बंधन मानने की प्रवृत्ति कमजोर हुई है। विवाह-विच्छेद को कानून व समाज द्वारा मान्यता मिल जाने से विवाह का स्थायित्व दुष्प्रभावित हुआ है और तलाक दर में वृद्धि हुई है। आज अन्तर्विवाह और बहिर्विवाह के नियम कमजोर हुए हैं तथा जीवनसाथी के चुनाव में माता-पिता की भूमिका घटी है। आज विवाह सम्बन्धी रीति-रिवाजों और रस्मों का आधुनिकीकरण हो रहा है। इसमें इंटरनेट, अखबारों व संचार के अन्य साधनों का प्रयोग किया जा रहा है तथा आज शादी के पहले भी लड़कियाँ, लड़कों से मिल रही हैं। पश्चिमी समाज के डेटिंग के तर्ज पर विवाह से पूर्व मिलकर अपने जीवनसाथी की उपयुक्तता जाँचने के प्रवृत्ति बढ़ रही है।