स्वार्थ को नैतिक मानने के पीछे कारण
स्वहित को नैतिकता का सार मानने वाला सिद्धांत स्वार्थवाद कहलाता है या परिणाम सापेक्षतावाद का सिद्धांत जो अच्छे परिणाम की पहचान स्वहित की पूर्ति से करता है, उसे स्वार्थवाद कहा जाता है। स्वहित के अंतर्गत व्यक्ति का हित या फिर समूह का हित शामिल हो सकता है।
स्वार्थवाद को नैतिक मानने का कारण/आधार:- विज्ञानिक है। की वा विचारकों के अनुसार स्वार्थ को नैतिक मानने का आधार मनोवैज्ञानिक है। मनुष्य की मनोवैज्ञानिक समझ ही नैतिकता का आधार तय करती है। विचारकों का ऐसा मानना है कि मनोवैज्ञानिक रूप से मनुष्य एक स्वार्थी प्राणी होता है, इसीलिए इस सिद्धांत को मनोवैज्ञानिक स्वार्थवाद कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर विचारकों का मानना है कि मनुष्य को वही कार्य करने चाहिए जिससे उसके स्वहित की पूर्ति होती हो। इस सिद्धांत को नैतिक स्वार्थवाद कहा जाता है। मनोवैज्ञानिक स्वार्थवाद के माध्यम से ही नैतिक स्वार्थवाद को निगमित किया जाता है।
स्वार्थवाद की नैतिकता का अनुप्रयोग:- स्वार्थवाद की नैतिकता का दो क्षेत्रों क्रमशः निजी जीवन एवं सार्वजनिक जीवन में अनुप्रयोग दिखाई देते हैं।
निजी जीवन में नैतिकता के अनुप्रयोग:- निजी जीवन की सारी संस्थाओं का आधार व्यक्ति की भावनात्मक मांग को पूरा करना है। परिवार, संस्कृति, विवाह, धर्म, बच्चों की परवरिश आदि निजी जीवन से संबंधित संस्थाएं हैं। स्वहित से परवा (care) एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
सार्वजनिक जीवन में नैतिकता के अनुप्रयोग:- अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, सामाजिक न्याय, कानून, सशक्तिकरण, कार्य संस्कृति आदि सामाजिक जीवन से संबंधित संस्थाएं हैं। यदि इसका उदाहरण ले तो, अर्थव्यवस्था का लक्ष्य संवृद्धि होता है एवं संवृद्धि निवेश के माध्यम से ही संभव है। इससे संबंधित उद्यम को लाभ की प्राप्ति होती है, जिससे उनका स्वहित जुड़ा हुआ है अर्थात किसी क्षेत्र या संस्था में बाजार की शक्तियां या व्यवसाय तभी निवेश करते हैं जब उन्हें लाभ की संभावना दिखाई देती है एवं उनका स्वहित जुड़ा होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि चूकि मनुष्य मनोवैज्ञानिक रूप से स्वार्थी प्राणी है इसीलिए यही आधार स्वार्थवाद को नैतिक मानने के पीछे का कारण है।