सामाजिक समानता क्या हैं ?
समता के आधार को विशेष क्षेत्रों में लागू करने हेतु अनुच्छेद-15 की व्यवस्था की गई है। यह अनुच्छेद धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार के विभेद से रोकता है। यह मूल अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार हैं।
1. विभिन्न आधारों पर भेदभाव पर प्रतिबंध:-
अनुच्छेद-15(1) के अनुसार, राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के मध्य विभेद नहीं करेगा। यह अनुच्छेद राज्य के विरुद्ध है। इस अनुच्छेद में केवल शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अभिप्राय है कि शैक्षिक योग्यता अथवा शारीरिक मापदंड के आधार पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव किया जा सकता हैं ।
2. विभिन्न स्थानों पर भेदभाव पर प्रतिबंध:-
डॉ. अंबेडकर के साथ अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव किया गया था। ब्रिटिश प्रशासन के द्वारा अनेक सड़कों और होटलों को भारतीयों के प्रवेश के लिए प्रतिबंधित किया गया था, जिसे मूल अधिकारों के द्वारा समाप्त किया गया है, (अनुच्छेद-15(2))। केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक पर अयोग्यता, प्रतिबंध या देयता आरोपित नहीं होगी, जो निम्नलिखित के लिए हैं ।
दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों तथा सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों पर।
ऐसे कुओं, तालाबों व स्नानघाट, सड़क, सार्वजनिक रिसोर्ट विभेद नहीं किया जाएगा, जो पूर्णतः या अंशतः राज्य वित्त द्वारा संचालित हैं अथवा सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए निर्मित हैं।
3. तार्किक भेदभाव:-
इस अनुच्छेद में राज्य के द्वारा वंचित वर्गों के लिए विभिन्न प्रावधान किए जा सकते हैं। इसलिए विधि के समान संरक्षण का विचार अनुच्छेद-15 (3) में स्पष्ट दिखाई देता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य, महिलाओं व बच्चों के उत्थान के लिए विशेष उपाय करेगा। अतः राज्य इनके संरक्षण व विकास हेतु विशेष सुविधाएं प्रदान कर सकता है। विशेष उपाय में शैक्षिक, आर्थिक एवं वैधानिक सभी प्रकार के प्रावधान शामिल होंगे। यह प्रावधान समानता के सिद्धांतों के विरूद्ध नहीं है।
वर्ष-1996 में उच्चतम न्यायालय के द्वारा विशाखा वाद में यौन शोषण को परिभाषित तथा इसे रोकने के उपायों का भी उल्लेख किया गया। उच्चतम न्यायालय ने यौन शोषण को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया।
शारीरिक संपर्क और महिलाओं के निकट जाने का प्रयत्न करना ।
यौन सुविधा की मांग अथवा अनुरोध।
अश्लील सामग्री दिखाना।
यौन प्रेरित संदेश भेजना।
अन्य अस्वीकृत शारीरिक शाब्दिक यौन प्रकृति के व्यवहार ।
और रोकने के उपाय
उच्चतम न्यायालय के अनुसार, किसी भी संस्थान के मालिक का यह उत्तरदायित्व होगा कि वहां यौन शोषण प्रतिबंधित करे और कार्यस्थल पर यौन शोषण के लिए संस्था का मालिक उत्तरादाई होगा। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, यौन शोषण जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, क्योंकि जीवन के अधिकार का आशय, गरिमामय जीवन का अधिकार है। न्यायपालिका के द्वारा यह निर्देशित किया गया है कि सभी कार्यस्थलों पर यौन शोषण को परिभाषित और इसको प्रतिबंधित करने के उपायों का प्रचार एवं प्रसार किया जाएगा। सरकारी संस्थान अथवा सार्वजनिक क्षेत्र में यौन शोषण प्रतिबंधित होगा और इसके विरुद्ध दण्ड का स्पष्ट प्रावधान किया जाएगा। निजी क्षेत्रों में भी यौन शोषण को रोकने के लिए उपरोक्त नियम पारित किया जाए तथा कार्यस्थल पर वातावरण महिलाओं के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। इसलिए सुविधा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के अतिरिक्त कार्यस्थल का वातावरण महिलाओं के विरुद्ध नहीं होगा। यौन शोषण के आरोप में दोषी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक और मालिकों के द्वारा ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही भी की जाएगी। यौन शोषण के विरुद्ध शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसकी सुनवाई एक ऐसी समिति के द्वारा किया जाएगा, जिसकी अध्यक्ष महिला होगी और जिसमें कम से कम आधे सदस्य महिलाएं ही होंगी।
4. पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान:-
अनुच्छेद-15(4) में सामाजिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों तथा अनुसूचित जातियों व जनजातियों के उत्थान के लिए राज्य विशेष प्रावधान कर सकता है तथा राज्य द्वारा किया जाने वाले यह प्रावधान या कार्य विधि के समक्ष समानता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। चूंकि ये जातियां सदियों से दमित एवं सामाजिक विकास में निम्न स्थान पर रही हैं। अतः इनके उत्थान व विकास हेतु राज्य आवश्यक संरक्षण प्रदान कर सकता है।
5. शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण:-
मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष-1990 में वी. पी. सिंह सरकार के द्वारा सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया और वर्ष 2006 में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण की घोषणा की गई तथा एक नया संविधान संशोधन किया गया और अनुच्छेद-15 (5) जोड़ा गया। यह अनुच्छेद 93वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2006 द्वारा सम्मिलित किया गया। वर्ष 2004 के पश्चात् सामाजिक एवं शैक्षिक रूप में पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए केंद्रीय शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण की व्यवस्था की गई, चाहे वे संस्थाएं राज्य के द्वारा अनुदान प्राप्त करतीं हों या नहीं। अतः यह आरक्षण निजी शैक्षणिक संस्थाओं के लिए भी है, लेकिन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं पर यह आरक्षण लागू नहीं होगा।
6. आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए आरक्षण ( 103वां संविधान संशोधन, 2019 ):-
103वें संविधान संशोधन, 2019 के द्वारा भारतीय संविधान में आर्थिक रूप से पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण देने का प्रावधान किया गया। यह संविधान संशोधन राज्य को नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। 103वें संविधान संशोधन द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-15 और अनुच्छेद-16 में संशोधन किया गया। अनुमति
संविधान का अनुच्छेद-15 (6) राज्य को अनुच्छेद-15 (4) में उल्लेखित लोगों (OBC, SC & ST) को छोड़कर देश के सभी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों की उन्नति के लिए विशेष प्रावधान बनाने और शिक्षण संस्थानों में उनके प्रवेश हेतु आरक्षण देने की व्यवस्था करता है। यह प्रावधान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को छोड़कर राज्य द्वारा अनुदानित तथा गैर-अनुदानित सभी शैक्षणिक संस्थानों पर लागू होगा। शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, जो कि वर्तमान आरक्षण के अतिरिक्त होगा । संविधान आर्थिक पिछड़ेपन को परिभाषित नहीं करता है। सरकार अनुच्छेद-15 (6) के तहत् आर्थिक पिछड़ेपन को निर्धारित कर सकती है।