सरोगेसी विनियमन अधिनियम 2021 के महत्व एवं विशेषताएं
सरोगेसी एक चिकित्सा सेवा है जिसमें आईवीएफ द्वारा एक महिला के गर्भाशय और गर्भ में उसके शुक्राणु और डिंब का उपयोग करके एक महिला प्रत्यारोपण और भ्रूण विकसित किया जाता है। सरोगेसी का उद्देश्य दूसरी महिला द्वारा भ्रूण को पोषण और विकास प्रदान करना है। 2002 भारत में आईसीएमआर के नियमों का पालन करते हुए 2002 में व्यावसायिक सरोगेसी की शुरुआत हुई। सायिक सरोगेसी व्यावसायिक सरोगेसी के लिए भारत जल्द ही एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन गया। लेकिन सरोगेट माताओं का शोषण, सरोगेट बच्चे का भविष्य, तथा गरिमा एवं निजता पर आक्रमण जैसे मुद्दों के कारण 2015 में भारत में गरिमा एवं निजता पर आक्रमण कारण 2015 में भारत सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जैसे
इस मुद्दे को हल करने के लिए, भारत सरकार ने 2021 में भारतीय सरोगेसी विनियमन अधिनियम लागु किया। इस अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं।
व्यावसायिक सरोगेसी को पर पूरी तरह से प्रतिबंधीत कर केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति दी गई गयी।
परोपकारी सरोगेसी भी केवल दंपति के करीबी रिश्तेदारों द्वारा प्रदान की जा सकती है, जिनकी आयु 25-35 वर्ष के बीच होनी चाहिए और विवाहित होना चाहिए और कम से कम एक बच्चा होना चाहिए। सरोगेट मां अपने जीवन में केवल एक सरोगेसी सेवा दे सकती है।
यह अधिनियम इस संबंध में भी प्रावधान प्रदान करता है कि कौन परोपकारी सरोगेसी का लाभ उठा सकते हैं और कौन नहीं।
कानून भारत में सरोगेसी को विनियमित और नियंत्रित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को राष्ट्रीय सरोगेसी विनियमन बोर्ड और राज्य सरोगेसी विनियमन बोर्ड की स्थापना के लिए भी अनिवार्य करता है।
इस अधिनियम के उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान किया गया है।
सरोगेसी के कारण भारत बांझपन के इलाज के केंद्र के रूप में उभरा। इसने कई वंचित महिलाओं को पैसे के बदले में अपनी कोख किराए पर लेने के लिए आकर्षित किया। अतः यह अधिनियम निश्चित रूप से सही दिशा में एक सकारात्मक कदम है।