सब्जियों के विपणन की विधियों का वर्णन कीजिए
सब्जियों विपणन:- भारत में सब्जियों के विपणन की समान नीति नहीं है हम विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की विधियाँ अपनाते हैं। कृषक की ओर से अलाल भाव नियत करता है तथा अपना कमीशन लेता है। मूल्य निर्धारण के मुख्य विधियों की विवेचना हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं।
1. व्यक्तिगत समझौता
2. नीलामी
3.पर्दे के पीछे
1. व्यक्तिगत समझौता:- कृषक अपनी सब्जियाँ आढ़तियों दलाल ऐजेण्ट के पास एकत्र कर देते हैं। खरीदार स्वयं आढ़तियों के पास जाते हैं। दोनों भाव 4 नियत करते हैं। कमीशन ऐजेण्ट अपना कमीशन काटकर उत्पादक को भुगतान कर देते हैं।
2. नीलामी:- किसान अपनी सब्जियों को एक एकत्र करके कमीशन ऐजेण्ट के पास ले जाते हैं। सब्जियाँ स्वयं दिखाकर सब्जीमण्डी में एकत्र करते हैं। आढ़तियों सब्जियों के नमूने दिखाकर नीलामी करते हैं। अधिक बोली पर उत्पादक की सहमति से माल बेचते हैं। भारत में यह सिद्धान्त अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।
3. पर्दे के पीछे:- इस सिद्धान्त के अनुसार खरीददार आढ़तियों से कपड़े के नीचे हाथ रखकर अंगुलियों के ‘इशारे से भाव तय करते हैं। अत्यधिक मूल्य देने वाले को माल बेच देते हैं। यह रुक अविश्वसनीय विधि है। जिसमें उत्पादक माव निर्धारण के विषय अनिश्चत रहते हैं।
विक्रय का माध्यम
कृषक अपनी सब्जियों को उत्पादन करता है। कृषक द्वारा उत्पादित संब्जियाँ को लेकर सीधे नहीं जाता है। बल्कि दोनों के मध्य एक विक्रय माध्यम कार्यशील है जो कि लाभ का अधिकतम भाग बीच में रख लेता है। जिससे उत्पादक को काम दाम मिलता है। दूसरी ओर उपभोक्ता को अधिक दाम देना पड़ता है। जिसकी विवेचना हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं।
1. सब्जीमण्डी:- सब्जी उत्पादक अपना माल सब्जी मंडी में ले जाता है। शहरों एवं अधिकतर बड़े कस्बों में नियमित अथवा अनिश्चित मंडियाँ होती है। इन मंडियों में खरीदार इकट्ठा हो जाते हैं। ऐजेण्ट खुली नीलामी द्वारा माल बेचते हैं। कमीशन ऐजेण्ट अपना कमीशन काटकर उत्पादक भुगतान कर देते हैं।
2. थोक व्यापार:- थोक व्यापारी सब्जियों को अधिक मात्रा में खरीददार फुटकर विक्रेताओं को बेचते हैं। यह अक्सर कृषक से सस्ते भाव पर फसल खरीद लेते हैं। जिसके कृषक को कम मूल्य मिल पाता है।
3. ठेकेदार:- ठेकेदार स्वयं खेत पर जाकर कृषक से खडी फसल खरीद लेते हैं। ये सलवन भी स्वयं करते हैं तथा फिर सब्जीमण्डी या थोक व्यापारी को माल बेच देते हैं। ठीक व्यापारी प्रत्यक्ष कृषक से माल खरीदते हैं। या कम मूल्य पर कृषक को देते हैं तथा अधिक लाभ क्रमाते हैं।
4. सहकारी समिति:- यह कृषकों का सहकारी संगठन होता है। जो कि कृषकों को सूचनाएँ एवं सहायता प्रदान करता है तथा उनके माल को सीमित द्वारा बेचता है। वे कमीशन नहीं लेते हैं तथा अन्य प्रकार की कटौतियों जैसे धर्मादा आदि नहीं लेते हैं।