November 14, 2024
सत्यनिष्ठा को परिभाषित कीजिए तथा इससे संबंधित समकालीन चुनौतियों

सत्यनिष्ठा को परिभाषित कीजिए तथा इससे संबंधित समकालीन चुनौतियों

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सत्यनिष्ठा को परिभाषित कीजिए तथा इससे संबंधित समकालीन चुनौतियों

किसी सत्य, आदर्श या नैतिकता में व्यक्ति की अखंड और अटूट निष्ठा को सत्यनिष्ठा कहा जाता है। सत्यनिष्ठा का दूसरा आशय मनसा वाचा कर्मणा है। अर्थात विचार, वाणी और कर्मों में एक ही या संगत सत्यों के प्रति निष्ठा को सत्यनिष्ठा कहा जाता है ।

सत्यनिष्ठा से संबंधित चुनौतियां:-

वसुधैव कुटुंबकम् या सार्वभौमिक हित की भावना का क्षरण:- वसुधैव कुटुंबकम् में बड़ी बाधा राष्ट्रवाद है। अलग- अलग शक्तियों के बीच टकराव की स्थिति में राष्ट्रवादी व्यक्ति स्वयं के विचारधारा को सर्वश्रेष्ठ मनता है, जो विश्व के संदर्भ में संकीर्ण अवधारणा है। रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार राष्ट्रीय हित की अपेक्षा वैश्विक हित अधिक व्यापक है, हालांकि संस्थाओं के स्तर पर वैश्विक संस्थाएं कमजोर हुई हैं। कमजो तिनिधित्व वैश्विक संस्थाओं की विश्वसनीयता कमजोर होने के कारण यह जिन वैश्विक आदर्शों या सत्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके प्रति पूरी दुनिया के पुरुषों में निष्ठा में गिरावट आई है। इसके समाधान हेतु वैश्विक संस्थाओं का लोकतंत्रीकरण करना आवश्यक है। जैसे- अमेजन के जंगलों को ब्राजील ने राष्ट्रीय धरोहर माना एवं उसे काटकर धन अर्जित करना चाहा परन्तु विश्व के अन्य देशों जैसे फ्रांस ने इस संदर्भ में आवाज उठाया क्योंकि अमेजन वैश्विक धरोहर है न कि राष्ट्रीय।

राष्ट्र के भीतर सत्यनिष्ठा में बाधाएं:- किसी राष्ट्र के भीतर पहचान के आधार पर हितों का विभाजन होता है। जैसे- जातीय पहचान, क्षेत्रीय पहचान, भाषाई पहचान, धार्मिक पहचान। ये पहचान संकीर्ण पहचान है। अतः ऐसी संकीर्ण पहचान से युक्त होने पर बड़े आदर्शों, सत्यों से, जिनका संदर्भ लोकहित से है। प्रायः ऐसे हितों से टकराव होता है। राष्ट्रवादी व्यक्ति की चेतना में राष्ट्र सर्वोपरि है, जबकि वास्तविकता यह है कि राष्ट्र विश्व के अंतर्गत एक अवधारणा है। राष्ट्रीय एवं वैश्विक हित के टकराव की स्थिति में राष्ट्रवादी हेतु राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है, जातिवादी हेतु जातिवाद सर्वोपरि है। संकीर्ण पहचानों का उभार इनके प्रति वर्गीय चेतना का विकास, सत्यनिष्ठा में बाधा है।

राजनीति में सत्यनिष्ठा की बाधाएं:- वोट बैंक पॉलिटिक्स – भारत में सारे राजनीतिक दल पहचान के वोट बैंक पर आधारित हैं। चूकि यही राजनीतिक दल चुनाव जीतकर सरकार बनाती हैं तो ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट है कि ऐसी पार्टियां सत्यनिष्ठ नहीं हो सकती हैं। इसी का परिणाम है कि विधायिका के स्तर पर सत्यनिष्ठा में गिरावट आई हैं। किसी खास, जाति या पहचान के आधार पर चुनाव जीतने के बाद ऐसी पार्टियां ब्यूरोक्रेट पर भी अपने अनुसार कार्य करने का दबाव डालती है। 

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