संसद में विधि-निर्माण की प्रक्रिया
संसद का महत्वपूर्ण कार्य कानून बनाना है। इसके लिए सभी प्रस्ताव विधेयकों के रूप में संसद के सामने आना चाहिए। विधेयकों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है।
1. विषय-वस्तु के आधार:-
मूल विधेयक जिनमें नए प्रस्तावों, विचारों एवं नीतियों से संबंधित उपबंध होते हैं। जैसे- भूमि अधिग्रहण विधेयक।
समेकन विधेयक जिनका आशय किसी एक विषय पर वर्तमान विधियों को समेकित करना होता है।
ऐसे विधेयक, जिनका उद्देश्य समाप्त होने वाले अधिनियमों को जारी रखना होता है।
ऐसे विधेयक, जो राष्ट्रपति द्वारा जारी किए जाने वाले अध्यादेशों का स्थान लेते हैं।
संविधान संशोधन विधेयक। जैसे- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, जी. एस. टी. विधेयक इत्यादि।
2. प्रस्तुतीकरण के आधार पर:-
इसके अंतर्गत् विधेयकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता हैं ।
(i) सरकारी विधेयक। (ii)गैर-सरकारी विधेयक।
(i) सरकारी विधेयक:- ये विधेयक मंत्रियों के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
(ii) गैर-सरकारी विधेयक:- संसद के ऐसे प्रत्येक सदस्य जो मंत्रिपरिषद् के भाग नहीं हैं, जिसमें सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के सांसद हो सकते हैं, जिनको गैर-सरकारी सदस्य कहा जाता है।
सामान्यतः लोक सभा में प्रत्येक शुक्रवार के अंतिम ढ़ाई घंटे गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य (उनके विधेयक और संकल्प इत्यादि) को निपटाने के लिए निश्चित किया गया है। यदि कोई गैर-सरकारी सदस्य सदन में विधेयक लाना चाहता है, तो उसे उस विधेयक के बारे में लोक सभा अध्यक्ष को एक महीने पहले सूचना देनी तथा सूचना के साथ विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों का भी उल्लेख करना आवश्यक होता है। वर्तमान में एक गैर-सरकारी सदस्य द्वारा किसी एक सत्र में चार से अधिक विधेयक नहीं लाया जा सकता। किराए की कोख विनियमन विधेयक, 2014 को लोक सभा में बीजू जनता दल के वरिष्ठ सदस्य भृतुहरि मेहताब द्वारा पेश किया गया। इस विधेयक से एक तरफ जहां किराए पर कोख देने संबंधी तकनीकों से निराश दंपत्तियों के जीवन में खुशी आई है, तो वहीं इसके अत्यधिक दुरुपयोग होने की संभावना को लेकर इसकी आलोचना भी हो रही है।