संसद के न्यायिक शक्तियां
ऐसी कार्यवाही, जो संसद के किसी सदन या उसकी समितियों अथवा उसके अधिकारियों के द्वारा संपादित कार्यों में बाधा उत्पन्न करे तथा साथ ही साथ किसी व्यक्ति के द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से ऐसे कार्य जो संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाए संसद की अवमानना या विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है। सदन की अवमानना का अभिप्राय अत्यधिक व्यापक है, जिसमें विशेषाधिकार का उल्लंघन भी शामिल हो सकता है। अवमानना एवं विशेषाधिकार के बीच अंतर करना संसद का कार्य है। संसद की गरिमा के विरुद्ध किया गया भाषण तथा अध्यक्ष अथवा सभापति के कार्यों की निष्पक्षता पर सवाल उठाना संसद की अवमानना है। भारत में न्यायालयों ने यह बात मानी है कि किसी विशेष मामलों में विशेषाधिकार भंग हुआ है या नहीं। इस प्रश्न का फैसला करने का अधिकार केवल संसद या राज्य विधानमंडल को है। संसद को न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त हैं, जो निम्नलिखित हैं- जब राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया चल रही होती है, तो संसद न्यायिक स्वरुप ले लेती है और संसद दोनों पक्षों को सुनती है। महाभियोग को अर्द्ध-न्यायिक प्रक्रिया भी कहा जाता है। न्यायाधीशों को हटाने की सिफारिश संसद कर सकती है। न्यायालय की तरह संसद को भी अपनी अवमानना के लिए दण्ड देने का अधिकार प्राप्त है।