संसद का वित्तीय विषयों से संबंधित प्रक्रिया
धन जिसके पास है सत्ता उसी के पास है। यह कहावत संसद पर पूर्णतया लागू होती है। संसद संघ सरकार की वित्तीय व्यवस्था को पूर्णतया नियंत्रित करती है। प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में संसद के सम्मुख वार्षिक वित्तीय विवरण अथवा बजट प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें शासन की आय और व्यय का विवरण रहता है।
बजट दो भागों में तैयार किया जाता है। रेलवे बजट और सामान्य बजट रेलवे बजट रेलमंत्री के द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जब कि सामान्य बजट वित्त मंत्री द्वारा रखा जाता है।
बजट में उस खर्च को अलग से दिखाया जाता है जिसे भारत की संचित निधि से निकाला तो जाता है किंतु जिस पर सदन न केवलं विचार विमर्श करता वरन् उस पर मतदान भी करता है। जिन खच्चों को भारत की संचित निधि से वसूल किया जाता है तथा जिन पर सदन मतदान नहीं करता वे इस प्रकार हैं : भारतीय राष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति और उप सभापति, लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते तथा भारत सरकार की ऋण वसूली से संबद्ध खर्चे । जिन दूसरे खर्चा को भारत की संचित निधि से निकाला जाता है वे लोकसभा के सम्मुख ” अनुदानों की माँगों के रूप में रखे जाते हैं।’
बजट प्रस्तुत करते समय वित्तमंत्री लोक सभा के सम्मुख एक भाषण देता है जिसमें वह देश की वित्तीय स्थिति की विवेचना करता है तथा शासन की वित्तीय नीति की व्याख्या करता है। बजट के साथ एक वित्त विधेयक भी प्रस्तुत किया जाता है जिसमें नए करों को लगाने अथवा पुराने करों में वृद्धि अथवा कमी के प्रस्ताव सम्मिलित होते हैं।
1. वित्तमंत्री के बजट भाषण के उपरांत पूरे बजट पर एक सामान्य चर्चा होती है। चर्चा के उपरांत सदन के सम्मुख बजट के प्राक्कलनों (estimates ) को अनुदानों की मांगों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक विभाग का मंत्री अपने विभाग से संबंधित मांगों को सदन के सम्मुख रखता है। सदन इन मांगों पर चर्चा करता है तथा उन्हें स्वीकृत अथवा अस्वीकृत करता है। वह उनमें कटौती भी कर सकता है। सदन को माँगों में वृद्धि करने का अधिकार प्राप्त नहीं है। जब लोकसभा में सभी मांगों पर मतदान पूर्ण हो जाता है तब दोनों प्रकार के (भारत की संचित निधि से वसूले गए तथा उससे निकाले गए) खचों को एक साथ मिलाकर उन्हें एक वार्षिक विनियोग विधेयक के रूप में लोकसभा के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है, तथा लोकसभा उसे उसी प्रकार पारित करती हैं जैसे ‘कोई अन्य विधेयक पारित किया जाता है। तत्पश्चात् लोकसभा का अध्यक्ष उसे धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करता लोकस है।
कोई विधेयक उस समय धन विधेयक के रूप में मान्यता प्राप्त करता है जब
1. वह किसी कर का ‘अधिरोपण (imposition) उत्सादन (abolition) परिहार (remission) परिवर्तन (alteration) या विनियमन (regulation) करता हो।
2. भारत सरकार द्वारा उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति (guarantee) देने का विनिमय करता हो।
3. भारत की संचित निधि या आकस्मिकता (contingency) निधि की अभिरक्षा (custody) करता हो।
4. भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करता हो।
5. भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखा की मद में धन प्राप्त करता हो । यदि कभी यह विवाद उठ खड़ा हो कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं तो इस विषय में लोकसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और सर्वमान्य होगा।
कोई धन विधेयक प्रारंभ में राज्य सभा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। जब लोकसभा किसी धन ‘विधेयक को पारित कर देती है तो यह राज्य सभा के पास उसकी संस्तुति के लिए भेज दिया जाता है। राज्य सभा को उस विधेयक की प्राप्ति के 14 दिन के भीतर अपनी संस्तुति के साथ लोकसभा को लौटाना पड़ता है। यदि राज्य सभा उक्त विधेयक को 14 दिन के भीतर लोकसभा में नहीं लोटाती तो यह मान लिया जाता है कि जिस रूप में विधेयक को लोकसभा ने पारित किया, उसी रूप में राज्य सभा ने उसे पारित कर दिया है। यदि राज्यसभा द्वारा प्रस्तुत संस्तुतियों के साथ निर्धारित अवधि के भीतर लोकसभा को लोटा देती हैं तो लोकसभा को यह अधिकार है कि वह राज्यसभा द्वारा प्रस्तुत संस्तुतियों को स्वीकार .. करे अथवा न करे। तदुपरांत यह मान लिया जाता है। कि उक्त विधेयक को दोनों सदनों ने पारित कर दिया। इसके पश्चात् विधेयक राष्ट्रपति के पास उसकी • सहमति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति को उस पर अपनी सहमति देनी ही पड़ती है।