लोक सभा में विपक्ष का नेता
16वीं लोक सभा चुनाव के बाद भारतीय संसदीय व्यवस्था के लिए एक नवीन चुनौती उत्पन्न हुई, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी को लोक सभा में निर्णायक बहुमत प्राप्त हुआ, जबकि लोक सभा में दूसरा सबसे बड़ा दल कांग्रेस है, जिसे केवल 44 सीटें ही प्राप्त हुईं। संसदीय व्यवस्था में लोक सभा में विपक्ष के नेता पद की मान्यता लोक सभा स्पीकर के द्वारा दिया जाता है, जिसके लिए दल के सदस्यों की संख्या लोक सभा के कुल सदस्य संख्या का कम से कम 1/10 सदस्य होना चाहिए। अतः विपक्ष के नेता पद के लिए दल के पास कम से कम 55 सांसद होने चाहिए। 16वीं लोक सभा में विपक्ष के नेता पद का निर्माण कठिन हो गया। वर्ष 1977 में भारत में विपक्ष के नेता के पद को वैधानिक और विपक्ष के नेता के वेतन एवं भत्ते का प्रावधान किया गया। इस सांविधिक प्रावधान के अनुसार विपक्ष के नेता तथा कैबिनेट मंत्री के वेतन एवं भत्ते समान होते हैं। वर्तमान में विपक्ष के नेता का पद अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि अनेक सांविधिक संस्थाओं में जैसे- लोकपाल, मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय सतर्कता आयोग और मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए विपक्ष के नेता की सहमति आवश्यक है। यह उल्लेखनीय है कि विपक्ष के नेता पद के लिए इसी प्रकार राज्य सभा के लिए भी किया गया है। भारत की पहली लोक सभा में भी विपक्षी नेता का अभाव था, क्योंकि सबसे बड़ा विपक्षी दल भारतीय साम्यवादी दल था, जिसके केवल 30 सांसद थे। भारत में विपक्ष के नेता को पहली बार वर्ष-1969 में मान्यता प्रदान की गई, जब कांग्रेस को 60 सीटें प्राप्त थीं और उसके नेता राम सुभग सिंह थे। वर्ष-1980 से 1989 के बीच भारत में पुनः विपक्षी दल के नेता का अभाव था, जबकि वर्ष 1989 से 2014 के बीच में गठबंधन सरकारों के दौरान विपक्ष के नेता का पद अत्यधिक शक्तिशाली बन गया था।