November 15, 2024
लोक प्रशासन में नैतिक समस्यां 

लोक प्रशासन में नैतिक समस्यां 

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लोक प्रशासन में नैतिक समस्यां 

लोक प्रशासन में नैतिक समस्याओं के विभिन्न कारक निम्नलिखित हैं:-

1.राजनीतिक संरचना

2.कानूनी संरचना

3.निजी मानकों में गिरावट

4.नागरिक समाज का कमजोर होना

लोक प्रशासन की नैतिकता को प्रभावित करने वाली राजनीतिक संरचना:- लोक प्रशासन में नैतिकता राजनीतिक रूप से दो प्रकार से प्रभावित होती है, जिसमें एक उत्तरदायित्व एवं दूसरा जवाबदेही है।

जवाबदेही दो प्रकार की होती है। विधिक जवाबदेही एवं वित्तीय जवाबदेही । जनता के प्रति जवाबदेही विधायिका की होती है। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि को जनता अपनी शक्ति सीधे सौंप देती है। विधायिका के माध्यम से ही नियम, कानून आदि बनाए जाते हैं, जो उचित परिणाम के लिए जवाबदेह होते हैं। लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है, जो अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है और भारतीय संदर्भ में ब्यूरोक्रेसी जनप्रतिनिधि के अंतर्गत कार्यरत है। अंततः सभी जनता के प्रति उत्तरदाई है।

ब्यूरोक्रेसी नियमों, कानूनों को लागू करने हेतु एवं वित्तीय व्यवस्था के सुचारू संचालन हेतु उत्तरदाई होती है। ब्यूरोक्रेसी जनता के प्रतिनिधियों के प्रति भी उत्तरदाई होती है। अर्थात जिन कानूनों का निर्माण विधायिका के माध्यम से किया गया है उन कानूनों का सही प्रक्रिया से पालन हो, इसका निष्पादन ब्यूरोक्रेसी के माध्यम से किया जाता है।

चूंकि जनप्रतिनिधि किसी न किसी राजनीतिक दल से संबंधित होते हैं एवं चुनाव जीतने के उपरांत सरकार का निर्माण करते हैं। यही कारण है की राजनीतिक दल जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं। जनमत को अपने पक्ष में करने हेतु कई तरीके हैं जिनमें तर्क, भावना, नैतिकता, समसामयिक मुद्दे शामिल हैं। भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो शिक्षा से वंचित है। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, जो परिवार के पुरुष सदस्यों के सलाह के अनुसार अपना वोट देती हैं इसलिए इस वर्ग हेतु तर्क का उपयोग कर जनमत अपने पक्ष में नहीं किया जा सकता है। साथ ही समाज का जो पढ़ा-लिखा वर्ग है, उनमें से भी अधिकांश तर्क के माध्यम से अपने मत का प्रयोग नहीं करते हैं इसीलिए राजनीतिक दलों हेतु सबसे आसान तरीका भावना का प्रयोग कर चुनाव जीतना है।

यदि सरकार का निर्माण वोट खरीदकर, बूथ कैपचरिंग कर किया जाता है तो ऐसी सरकार में नैतिकता नहीं होगी। अर्थात विधायक, सांसद एवम् अन्य प्राधिकारी जातिवादी, संप्रदायवादी एवं क्षेत्रीयतावादी होंगे। ऐसी स्थिति में राजनीति में निष्पक्षता, ईमानदारी, न्याय, समानता आदि मूल समाप्त हो जाते हैं। यही सरकार जो जाति, धर्म के वोट बैंक से बनी है अपनी जाति, धर्म के ब्यूरोक्रेट का चुनाव करेगी एवं ब्यूरोक्रेसी में भी जाति, धर्म आदि के आधार पर विभाजन होगा। जिसके परिणामस्वरूप ब्यूरोक्रेसी से सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, लोकहित में काम करने की अभिवृति एवं प्रति निष्ठा समाप्त या कमजोर हो रही है। संवैधानिक आदर्शों के

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