लैंगिक न्याय क्या हैं ?
महिलाएं समाज में जातीय एवं वर्गीय विभाजन से प्रभावित हैं। पितृ-सत्तात्मक सत्ता एवं सामंतवादी दृष्टिकोण व गांवों का सामाजिक दृष्टिकोण महिलाओं के प्रतिकूल हैं। महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में उत्तरदायित्व संभालने के साथ-साथ घरेलू व कृषि कार्यों को भी करना पड़ता है, जिसके कारण इनकी भूमिका पंचायतों में शक्तिशाली नहीं हो पा रही है और समाज में यह भी एक पूर्वाग्रह प्रचलित है कि महिलाओं की पंचायती राज में भागीदारी के कारण परिवार का सामंजस्य बिगड़ जाएगा तथा पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा। इसलिए महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता दें। क्योंकि महिलाओं को घरेलू कार्यों का प्रबंध करना होता है, जिसके कारण पंचायतों की बैठक में वे हिस्सा नहीं ले पातीं। महिलाएं पंचायतों की बैठक में जाने और लोगों की समस्याओं को सुनने में दिलचस्पी रखती हैं, लेकिन वे स्वयं गांव एवं समाज में अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं। पंचायतों में अभी भी पुरुषों का प्रभुत्व है। इसलिए महिलाओं की भागीदारी से पंचायतों कोई निर्णायक परिवर्तन नहीं हुआ। पंचायतों में आरक्षण से महिलाओं की स्थिति में सुधार होता प्रतीत नहीं हो रहा, क्योंकि राजनीतिक शक्ति का प्रयोग कुछ विशेष m परिवार के लोग ही करते हैं और अधिकांश महिलाओं को परिवार में ही निर्णय की स्वाधीनता नहीं है। इसलिए पंचायतों में भी महिलाओं के पति या उसके परिवार के पुरुष सदस्य द्वारा निर्णय लिया जाता है। महिलाओं की परंपरागत् भूमिका इस प्रकार सुनिश्चित कर दी गई है कि उनका मूल कार्य केवल घरेलू कार्यों का संपादन है। भारत में अभी भी अधिकांश महिलाएं अशिक्षित होने के साथ-साथ आर्थिक रुप में आत्मनिर्भर नहीं हैं। इसलिए उनसे गांव के प्रशासन के प्रबंध की अपेक्षा करना व्यावहारिक नहीं है। पंचायतों में भी दलीय राजनीति का दुष्प्रभाव फैल चुका है तथा चुनाव में बाहुबल एवं धनबल का प्रयोग होता है। इसलिए सामान्य महिलाओं के लिए चुनावों में भागीदारी कठिन हो जाती है। वर्तमान में भी पंचायती राज में महिलाएं स्वतंत्र रूप में चुनाव नहीं लड़तीं, बल्कि अपने परिवार की इच्छा पर चुनाव लड़ती हैं। महिलाएं केवल आरक्षित सीटों से ही चुनाव जीतती हैं, वे सामान्य सीटों से चुनाव नहीं जीत पातीं। चुनाव में सामान्यतः कमजोर व अशक्त महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाता है, स्वतंत्र और शक्तिशाली महिलाओं को नहीं। महिलाओं के प्रति आम लोगों का प्रत्यक्षण भी पूर्वाग्रह पूर्ण है, जैसे- महिलाओं में प्रशासनिक और राजनैतिक कौशल का अभाव होता है।
महिलाओं में राजनीतिक चेतना एवं उसके सम्मान में वृद्धि हुई है और महिलाओं को निर्णय निर्माण में भागीदारी का अवसर भी प्राप्त हुआ है, जिससे इनकी भूमिका ग्रामीण विकास एवं सामाजिक विकास में सकारात्मक व सक्रिय है। पंचायतों के द्वारा महिलाओं को चौपाल तक पहुंचाया गया है। अतः अब इनकी भूमिका केवल घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि पंचायतों में आरक्षण के परिणामस्वरुप महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना जागृत हुई तथा वे अपने शोषण एवं महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका का निर्वाह कर सकती हैं।