रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण और इनके इसके लाभ
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है।इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना और अन्य चालू खाता लेन-देन के साथ-साथ पूंजी खाता लेन-देन में इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना शामिल है।
जहाँ तक रुपए का सवाल है, यह पूंजी खाते में आंशिक रूप से जबकि चालू खाते में पूरी तरह से परिवर्तनीय है। सीमा पार लेनदेन में रुपए का उपयोग भारतीय व्यापार के लिये मुद्रा जोखिम को कम करता है। रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे व्यापार की लागत कम होती है, और व्यापार के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है।
यह भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार करता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को कम करता है, जबकि भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने और बाहरी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है। विदेशी मुद्रा पर निर्भरता को कम करने से भारत बाहरी जोखिमों के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। भारतीय व्यापार की सौदेबाज़ी की शक्ति भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, भारत के वैश्विक कद और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगी।
भारत व विदेशी बाजारों में विभिन्न वित्तीय साधनों के संदर्भ में रुपए के उदारीकृत भुगतान एवं निपटान को अपनाना चाहिए।रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये एक कुशल स्वैप बाज़ार और एक मज़बूत विदेशी मुद्रा बाज़ार विकसित करना आवश्यक है,समग्र आर्थिक बुनियादी आयामों में सुधार और वित्तीय क्षेत्र की मज़बूती के साथ सॉवरेन रेटिंग में वृद्धि से भी रुपए की स्वीकार्यता को मज़बूती मिलेगी जिससे इस मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा मिलेगा।