राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण की नीति और सुधारों की चर्चा कीजिए
महिला सशक्तिकरण भौतिक, आध्यात्मिक, शारीरिक एवं मानसिक सभी स्तरों पर महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा कर उन्हें सशक्त बनाने की प्रक्रिया है। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए 1991 में संसद द्वारा एक अधिनियम पारित की गई थी। जिसके तहत महिला के कानूनी एवं अन्य अधिकारों को सुरक्षा प्रदान किया जा सके।
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण नीति:-
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की उन्नति, विकास एवं सशक्तिकरण को बल। अधिक संवेदनशील न्यायिक एवं कानूनी प्रणालियों का निर्माण जो महिलाओं की जरूरतों के अनुरूप हो। सत्ता के हिस्स्सेदारी में महिलाओं की बराबरी तथा निर्णय लेने की क्षमता का विकास। विकास प्रक्रिया में लैंगिक परिप्रेक्ष्य को विकास की मुख्यधारा का भाग बनाना। संगत संस्थानुगत तंत्र का निर्माण एवं उनका सुदृढीकरण। समुदाय आधारित संगठित क्षमता का निर्माण। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु व्यापक भागीदारी।
वर्तमान संदर्भ में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में हुए सुधार:-
न्यायिक प्रणाली:- कानूनी न्यायिक प्रणाली को अधिक जिम्मेदार तथा महिलाओं की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाया गया, खासकर घरेलू हिंसा तथा निजी उत्पीड़न के मामलों में।
निर्णय क्षमता:- शक्ति की साझेदारी में महिलाओं की समानता तथा निर्णय क्षमता में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की गयी। उदाहरण – विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, कारपोरेट, संवैधानिक निकायों इत्यादि में महिलाओं की उपस्थिति को बढ़ावा दिया गया।
लैंगिक भेदभाव को दूर करना:- सभी कार्य स्थलों पर महिला और पुरुष के बीच कामों और वेतन में लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए कई प्रावधान किए गए। जैसे – सामान कार्य के लिए समान वेतन । आर्थिक सशक्त: महिलाओं को आर्थिक सशक्त बनाने के लिए सरकार ने कई योजनाओं में महिलाओं को तहजीह दी है । जैसे – बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना।
लघु ऋण:- सरकार कई योजनाओं के माध्यम से महिला उद्यमियों को सरल ऋण प्रदान करने की प्रयास कर रही है। जैसेमुद्रा योजना।
भारत की आधी आबादी महिलाओं की है। अतः ऐसी स्थिति में महिलाओं के विकास को ध्यान में रखकर योजनाओं को निर्मित करना एवं महिला सुरक्षा को प्रमुख मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए।