राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान प्रक्रिया एवं मतों की गिनती
राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचक मंडल में शामिल प्रत्येक प्रत्याशी को एक मत देने का अधिकार होता है, परंतु वह अपना मत सभी प्रत्याशियों के समक्ष प्राथमिकता के रूप में व्यक्त करता है। वह केवल अपनी पहली प्राथमिकता का मत ही दे सकता है और निर्वाचन के पश्चात् पहली प्राथमिकता के मतों की गणना होती है और यदि किसी प्रत्याशी को पहले प्राथमिकता के मतगणना में मतों का पूर्ण कोटा प्राप्त हो गया, तो उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाएगा। निर्वाचन में उसी उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है, जिसे कुल वैध मतों का निर्धारित कोटा प्राप्त हो । कोटे को निम्नलिखित सूत्र के द्वारा निकाला जाता है। उदाहरण के लिए, माना कि राष्ट्रपति के निर्वाचन में कुल 1,000 वैध मत प्रदान किए गए हैं
मतों का कोटा = कुल वैध मत+1 / 1+ 1 = 1000+1/2 = 501
प्रथम वरीयता की गणना : (1000)
A – 450
B- 300
C – 250
यदि किसी भी प्रत्याशी को पहली प्राथमिकता की मतगणना में पूर्ण कोटा प्राप्त नहीं हुआ, तब द्वितीय की जाएगी। यह उल्लेखनीय है कि सभी सदस्यों ने अपने मत प्राथमिकता के रूप में दिए हैं। इसलिए द्वितीय वरीयता की गणना के लिए उस उम्मीदवार के मतों को जिसे पहली प्राथमिकता के सबसे कम मत प्राप्त हुए हैं, जैसा कि ऊपर (C-250) उम्मीवार को पहली वरीयता का सबसे कम मत प्राप्त हुए हैं। उसकी दूसरी वरीयता के मतों को अन्य उम्मीदवारों के बीच संक्रमित कर दिया जाएगा, जिन लोगों ने उम्मीदवार C को अपनी पहली वरीयता का मत दिया था, उन मतों को A और B के लिए संक्रमित किया जाएगा और इन संक्रमित मतों को A और B के मतों में जोड़ दिया जाएगा, जिससे किसी एक उम्मीदवार को मतों का पूर्ण कोटा प्राप्त हो जाएगा।
द्वितीय वरीयता की गणना : मतों का संक्रमण
A.450+ 100 = 550
B. 300+150 = 450
अत: A उम्मीदवार को मतों का पूर्ण कोटा प्राप्त हो गया और वह निर्वाचित घोषित हो जाएगा, क्योंकि 501 मतों का कोटा प्राप्त करना आवश्यक था, जबकि A प्रत्याशी को 550 मत प्राप्त हो गए। वर्ष 1969 में भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन में द्वितीय वरीयता के मतों की गणना की गई थी, जिसमें तत्कालीन निर्दलीय उम्मीदवार बी. बी. गिरि चुनाव जीत गए थे।