राष्ट्रपति की वीटो शक्ति
संविधान में वीटो शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, बल्कि इसका प्रयोग व्यावहारिक रूप में होता है। अनुच्छेद-111 के अनुसार, लोक सभा एवं राज्य सभा के द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष हस्ताक्षर के लिए प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति विधेयक पर अनुमति दे सकता है अथवा अनुमति नहीं देगा या पुनर्विचार के लिए भेज सकता है, जिसे लोकप्रिय रूप में वीटो कहा जाता है। राष्ट्रपति की वीटो शक्ति निम्नलिखित हैं।
(i) निरपेक्ष वीटो:-जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अनुमति न दें। भारत में निरपेक्ष वीटो का प्रयोग अभी तक केवल एक बार ही किया गया है। निरपेक्ष वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने पेप्सू (The Patiala and East Punjab States Union, (PEPSU)) विधेयक पर किया था।
(ii) निलंबनकारी वीटो:-जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए भेज दें। वर्ष 2006 में सांसदों के लाभ के पद संबंधी विधेयक पर राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के द्वारा पुनर्विचार के लिए सरकार के पास भेज दिया गया तथा इसी विधेयक को दोबारा भेजे जाने पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किया था। राष्ट्रपति के. आर. नारायणन द्वारा संघ सरकार के उत्तर प्रदेश और बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की अनुशंसा को संघ सरकार के पास पुनर्विचार के लिए भेजा गया था।
(iii) पॉकेट वीटो:-जब राष्ट्रपति किसी विधेयक पर कोई कार्यवाही न करें। संविधान में यह उल्लिखित नहीं है कि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर कितने समय में अनुमति प्रदान करेगा। इसलिए किसी भी विधेयक पर अनुमति प्रदान करने में राष्ट्रपति विलंब कर सकता है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनुमति देने या इनकार करने या उसे वापस लौटाने के संबंध में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। समय सीमा के अभाव में भारत का राष्ट्रपति जेबी वीटो का इस्तेमाल कर सकता है। उदाहरण के लिए, वर्ष-1986 में संसद ने भारतीय डाकघर विधेयक पारित किया था, जिसके कुछ प्रावधान प्रेस की स्वतंत्रता के विरुद्ध होने के कारण उसकी कटु आलोचना हुई, जिसके कारण इस विधेयक पर राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने न तो अनुमति दी और न ही अनुमति देने से इनकार ही किया।