मूल कर्त्तव्यों को लागू करना में न्यायपालिका की व्याख्या
मौलिक कर्त्तव्य, अवादयोग्य है, जिन्हें लागू कराने के लिए न्यायपालिका का सहारा नहीं लिया जा सकता और न ही इनके उल्लंघन पर किसी दंड का प्रावधान है, परंतु यदि विधायिका कानून निर्माण द्वारा किसी मौलिक कर्त्तव्य का पालन किया जाना अनिवार्य घोषित करती है, तब मौलिक कर्त्तव्यों का पालन न किया जाना दण्डनीय अपराध होगा। परंतु वर्तमान समय में सरकार ने राष्ट्र ध्वज के सम्मान से संबंधित विधि का निर्माण किया है।
न्यायपालिका के महत्वपूर्ण निर्णय के अनुसार, (हाथी सिंह मैन्युफैक्चरिंग वाद, 1960) यदि कोई व्यक्ति अपने कर्त्तव्यों का उल्लंघन करता है तथा न्यायपालिका में मूल अधिकारों को लागू करने की याचिका प्रस्तुत करता है, तो न्यायपालिका उसके मूल अधिकारों को सीमित कर सकती है, क्योंकि उसने अपने कर्त्तव्यों का उल्लंघन किया है। 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 संसद को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह विधि बनाकर मूल कर्त्तव्यों के उल्लंघन की स्थिति में दोषी व्यक्तियों के लिए दण्ड की व्यवस्था करे। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान छात्र बनाम् संघवाद में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि यद्यपि मूल कर्त्तव्य, मूल अधिकारों की भांति प्रवर्तनीय नहीं बनाए गए हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण बात है कि भाग-4 (क) के अनुच्छेद-51 (क) में भी कर्त्तव्यों के पहले ‘मूलभूत’ (Fundamental) शब्द का प्रयोग करके उन्हें उसी प्रकार महत्व देने का प्रयास किया गया है, जिस प्रकार मूल अधिकारों के लिए किया गया है।