मक्का ( Maize or Corn or Indian Corn )
वानस्पतिक वर्गिकरण (Botanical Classification)
वानस्पतिक नाम : जियामेज ( Zea Mays L. )
कुल ( Family ): ग्रेमनी ( Gramineae )
गुणसूत्र संख्या : 2n = 20
मक्का की कृषित उप प्रजातियों ( Sub Species ) को दानों के आधार पर सात वर्गो मे विभक्त किया जाता है |
- फिलन्ट कार्न ( Zea Mays Indurata ) – दाने प्रायः गोल व चपटे होते है | दानों का इंडोस्पर्म स्टार्थयुक्त होता है तथा रंग पीला एवं सफ़ेद होता है | भारत मे मुख्यतया इसी मक्का की खेती की जाती है |
- डेंट कार्न ( Zea Mays Indenticata ) — दाने बड़े एवं दाँत के आकार जैसे दिखते है | अमेरिका मे मुख्यतया इसी मकके की कृषि की जाती है |
- पाप कार्न ( Zea Mays Everta ) – दानों का आकार छोटा होता है तथा दानों का इंडोस्पर्म काफी सख्त तथा प्रोटीनयुक्त होता है | अब इन दानों को गरम किया जाता है तो प्रोटीन का थक्का बनने के करण फैलता है चूँकि इंडोस्पर्म कठोर होता है अतः अंदर ही अंदर फूटने के करण दाने का ऊपरी कवच अंदर चला जाता है |
- स्वीट कार्न ( Zea Mays Saccharata ) — इन मकके की प्रजातियाँ मे सुगर का प्रतिशत अधिक होने के कारण दानों मे नमी ज्यादा होती है तथा दाने स्वाद मे मीठे होते है | सूखने पर दाने झुरीदार दिखाई देते है |
- सॉफ्ट कार्न ( Zea Mays Amylacea ) — इंडोस्पर्म मुलायम तथा स्टार्चयुक्त होता है | इस मक्का का प्रयोग स्टार्च उधोग मे स्टार्च बनाने के लिए किया जाता है |
- पाड कार्न ( Zea Mays Tunicata ) — इनमे प्रत्येक दाना एक झिल्ली मे घिरा होता है | यह एक प्रारम्भिक प्रकार की मक्का है जिसका बहुत सीमित उपयोग होता है |
- वैक्सी कार्न ( Zea Mays Ceratina ) — इस मक्के के दानों को काटने पर मोम-सा दिखाई देता है |
मक्का का महत्व एवं उपयोग ( Important and Utility of Maize ) — मक्का के दानों तथा पौध, दोनों को ही पशुओं और मनुष्य के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है | मक्का की खेती मुख्य रूप से तीन उदेश्य से की जाती है —
- दाने के लिए
- चोर के लिए
- भुट्टे के लिए
मक्का विशेष रूप से गरीब जनता का मुख्य भोजन है | मक्का के दाने का प्रयोग जानवरों के रातब के लिए भी किया जाता है, लेकिन अमेरिका में इसकी खेती विस्तृत रूप से, मुख्य सूअरों को मक्का खिलाने के लिए की जाती है | इसके अतिरिक्त मक्का तेल के लिए भी प्रयोग की जाती है | इसके तेल से साबुन आदि बनाए जाते है | वैसे धान्य फसलों के मुक़ाबले मे इसमे स्टार्च की मात्रा सबसे अधिक पाई जाती है अतः मक्का का प्रयोग अधयोगिक रूप से शराब तथा स्टार्च तैयार करने के लिए किया जाता है | मक्का का चुरा धनवान लोगो का मुख्य नाश्ता है | छोटे बच्चो के लिए मक्का का चुरा ( Corn Flake ) पौष्टिक भोजन है तथा इसके दाने को भूनकर भी खाया जाता है |
मक्का से ग्लूकोज भी तैयार किया जाता है | मक्का के स्टीप ( Steep ) जल मे एक जीवाणु ( Peneicilum Notatum ) को पैदा करके इसमे पैसेलीन दवाई तैयार कराते है | एसीटिक व लैक्टिक अमल, रेयन, कागज, प्लास्टिक, रंग, कृत्रिम रबड़ ओ चमड़ा, जूते की पॉलिश, पैकिंग पदार्थो के रूप मे कम में आने के कारण, संयुक्त राज्य अमेरिका मे इसकी खेती बड़े क्षेत्र मे होती है |
विशेष रूप से शहरो का आस-पास मक्का की खेती भुट्टे के लिए विश्तृत रूप से की जाती है | इसके भुट्टे को भूनकर खाया जाता है | मक्का के हरे पौधो का प्रयोग हरे चारे के लिए किया जाता है | जानवरो के लिए साइलेज भी तैयार किया जाता है | यदि मक्का को चारे के लिए उगाया जाता है, तो पौधों को भुट्टा आने से पूर्व ही काट लिया जाता है लेकिन भुट्टा लेने के पश्चात मक्का के सूखे पौधों का प्रयोग जलाने अथवा कम्पोस्ट बनाने के लिए भी किया जाता है |
मक्का मे प्रोटीन बहुत कम होती है और वह भी निम्न किस्म की होती है | मक्का के दाने की औसत रासायनिक रचना निम्न प्रकार है —
मक्के की दाने में रासायनिक संगठन (According to Martin And Leonard 1969)
रासायनिक पदार्थ | प्रतिशत |
1. पानी | 13.50 |
2. प्रोटीन | 10.00 |
3. तेल | 04.00 |
4. स्टार्च | 61.00 |
5. शर्करा | 01.40 |
6. पैन्टोजन्स | 06.00 |
7. क्रुड फाइबर | 02.30 |
8. भष्म (Ash) | 01.40 |
9. पोटेशियम | 00.40 |
10. मैगनीशियम | 00.16 |
11. फोस्फोरस | 00.43 |
12. सल्फर | 00.14 |
13. अन्य खनिज | 00.27 |
14. अन्य कार्बनिक अम्ल आदि | 00.40 |
कुल | 100.00 |
इसके भस्म में कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, एल्यूमिनियम, लोहा, सोडियम, पोटैशियम तथा क्लोरीन के लवण रहते है मक्का की प्रोटीन मे प्रमुख; जिन (Zein ) है और इसमे ट्रिप्टोफेन ( Tryptophan ) तथा लायसिन( Lyssine ) नामक दो आवश्यक एमिनो अम्ल अल्प मात्रा मे पाए जाते है | मक्का में विटामिन ए तथा ई पर्याप्त मात्रा में होते हैं लेकिन वाइनिन, राइबोफ्लेविन तथा निकोटिनीक अम्ल कम होते है | भ्रूण मे तेल 30-40% तक पाया जाता है |
उत्पति तथा इतिहास —– मक्का के जन्म स्थान के सम्बंध मे वैज्ञानिको मे अधिक मतभेद नहीं है | एशिया महादीप के अधिकांश देशो मे मक्का की खेती विस्तृत क्षेर पर की जाती है | अतः कुछ विदानों का मत है कि मक्का का जन्म स्टैन एशिया महादीप का ही कोई देश है, परंतु वास्तविक यह है कि मक्का का जन्म स्थान अमेरिका है, जहाँ मक्का की खेती अति प्राचीनकाल से की जा रही है तथा पुरानी दुनिया के लोगो को कोलम्बस (1942) द्वरा अमेरिका के भ्रमण से पूर्व मक्का की खेती के सम्बंध मे कोई ज्ञान न था |
अमेरिका से यह फ्रांस, इटली, बलकन्स तथा उतरी अफ्रीका मे फैला | अधिकांश वैज्ञानिक मैक्सिको को मक्का का जन्म-स्थान मानते हैं | भारत मे मक्का का प्रवेश सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी मे पुर्तगालियों द्वरा हुआ |
कुछ समय तक यह माना जाता रहा की मक्का की उत्पति टीओसिन्टे ( Teosinte-Euchanta Mexicanoa ) चारे की फसल से हुई | मक्का की पैतृक पौधे की उत्पति के बारे मे भी अनेक माह है | कुछ वैज्ञानिक इसकी उत्पति पोड कार्न से मानते है | कुछ वैज्ञानिको का मत है की टीओसीन्टे, गामा घास व मक्का तीनों का पूर्वज एक ही है |
वितरण एवं क्षेत्रफल — संसार के, अमेरिका, अर्जेंटाइना, चीन, ब्राज़ील, रूमानिया, युगोस्लाविया, रुष, इटली , भारत, पाकिस्तान, जावा, मैक्सिको व मिस्र आदि देशों में मक्का की खेती होती है | संसार के विभिन्न देशो मे मक्का के अंदर कुल 13.40 मिलियन प्रति हेक्टेयर क्षर व कुल 33.70 मिलियन तन उत्पादन था | विश्व स्तर पर, सबसे अधिक मक्का उत्पादन करने वाले यूनाइटेड स्टेट्स ( अमेरिका ) में क्षेत्र 3.02 हेक्टेयर व उत्पादन 20.83 लाख तन था, लेकिन प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक औसत उपज इटली की 73.18 कुंटल प्रति हेक्टेयर थी |
विश्व के समस्त क्षेत्र का 22.5% व उत्पादन का 40.0% संयुक्त राज्य अमेरिका मे ही है | भारत के विभिन्न प्रान्तो मे मक्का का वितरण मक्का का वितरण तालिका मे दिखाया गया है |
भारत के विभिन प्रान्तो मे मक्का का क्षेत्रफल, उत्पादन और औसत उपज प्रति हेक्टेयर
भारत वर्ष मे मक्का की खेती थोरी बहुत मात्रा मे प्रायः सभी प्रदेशों मे होती है | सन 2002-2003 के आँकारो के अनुसार सारे भारत मे मक्का के कुल क्षेत्रफल का 12.1% भाग उतर प्रदेश मे है | उतर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, बादायू, एटा, मैनपुरी, अलीगढ़, रामपुर, खीरी एवं जौनपुर जिलो का मक्का उत्पादन मे विशेष महत्व है | उतर प्रदेश 2002-2003 मे लगभग 7.6 लाख हेक्टेयर मे मक्का उगाई जिसमे 8.4 लाख तन अनाज प्राप्त हुआ | प्रति हेक्टेयर औसत 1642 किलोग्राम उपज प्राप्त हुई |
सन 1990-1991 मे औसत उपज नीदरलैंड 8914, नुजीलैंड 8889, बैलजियम 7650, इटली 7637, एवं आस्ट्रिया 7404 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुई | संसार की औसत उपज 3682 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है |
जलवायु ( Climate ) —- मक्का एक ग्रीष्मकालीन फसल है समुन्द्र ताल से 3000 मीटर ऊँचाई ( Altitude ) तक इसे उगा सकते है | सभी अवस्थाओ मे तापमान लगभग 25 डिग्री सेंटीग्रेट के होना चाहिए | पकते समय गर्म तथा शुष्क वातावरण ठीक होता है पाला फसल के लिए किसी अवस्था मे भी हानिकारक है और फसल पूर्ण नष्ट हो सकती है अंकुरण के लिए नुनतम तापमान 10 डिग्री सेंटीग्रेट चाहिए |
संसार के विभिन्न क्षेत्रो मे जहाँ मक्का बिना सिचाई के पैदा किया जाता है वार्षिक वर्षा 25 सेमी से लेकर 500 सेमी होती है | पौधो की अच्छी वृद्धि के लिए 60-70% प्रतिशत आपेक्षित आर्दता ( Relative Humidity ) सबसे उतम है |
भूमि ( Soil) —- अधिकतम बढ़वार एवं पैदावार के लिए अधिक उपजाऊ दोमट मिट्टी जिसमें वायु संचार अच्छा हो, पानी का निकास उतम हो तथा जीवांश पदार्थ काफी मात्रा मे पाया जाता हो, उतम होती है | भूमि चाहे जैसी भी हो यदि जल निकास ठीक नहीं है तो मक्का की फसल अच्छी नहीं होगी, मक्का की खेती ऐसी भूमियों मेन जिनका pH मान 6.0-7.0 तक हो की जा सकती है |
वर्गिकरण ( Varietal Classification and Development )
मक्का का वर्गिकरण वैज्ञानिकों द्वरा पकने की अवधि, उपगोग आदि विभिन्न आधारों पर किया गया है, परन्तु मक्का का “वानस्पतिक वर्गिकरण” मक्का के दाने के आधार पर किया है जो निम्न प्रकार नीचे दिया जा रहा है —
- जिया मेज ट्यूनिकाटा ( Zea Mays Tunicata ) —– यह एक प्राचीन किस्म है और इसकी खेती नहीं होती है | इसे “पोड़कार्न” भी कहते है | इसका प्रत्येक दाना और फिर सम्पूर्ण भुट्टा छिलके से ढका रहता है लेकिन इसका ब्यापरिक महत्व नहीं रह गया है |
- जिया मेज एवर्टा ( Zea Mays Everta ) —- इसे “पोपकोर्न” कहाँ जाता है | इसका उपयोग खील ( लावा ) बनाने मे होता है | इसके भुट्टे तथा दाने छोटे रहते है |
- जिया मेज ऐमाइलेसीय ( Zea Mays Amylacea ) —- इसे “मुलायम मक्का” ( Soft Corn Flour Corn ) भी कहाँ जाता है | इसके दाने नर्म होते है और इन्हे पीसकर आटा बनाते है | इसे आटे की मक्का भी कहते है |
- जिया मेज सेक्केराटा ( Zea Mays Saccharata ) — साधारणतया इसे मीठी मक्का ( Sweet Corn ) भी कहते हैं | इसमे मांड की तुलना मे चीनी अधिक होती है | इसके भुट्टे हो हारा ही उबाल कर खाया जाता है व इनकी डिब्बाबंदी भी की जाती है |
- जिया मेज इनडेनटाटा ( Zea Mays Indentata ) — इसे डैन्ट कार्न ( Dent Corn ) भी कहते है | इसके दाने सूखने पर उपर गढ़ा बन जाता है प्रायः इसकी खेती सबसे अधिक होती है | अधिकतर सफ़ेद व पीले रंग के दाने होते हैं |
- जिया मेज इंडूराटा ( Zea Mays Indurata ) — इसे फिलाण्ट कार्न ( Filant Corn ) भी कहते है | इसके भुट्टो के दाने कुछ कड़े, मंडीयूत्क और चिकने होते हैं | इसका आकार गोल तथा माप छोटी होती है | भारत मे अधिकतर इसे उगते है |
- मोमी मक्का ( Zea Mays Ceratina ) —- इसे Waxy Corn भी कहते है | इस मक्का के दाने देखने तथा काटने पर मोम टी तरह चिकने लगते है | अतः इन्हे मोमी मक्का कहा जाता है |
इसका प्रयोग प्रायः चिपकाने वाले पदार्थ बनाने तथा कपड़े और कागज के कारखाने मे होता है | दाने के रंग के आधार पर सुवनीस (1938) ने संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्का को छः वर्गो मे बांटा है ——–
- शुद्ध सफ़ेद ( Pure White )
- पीली ( Yellow )
- नारंगी ( Orange)
- लाल (Red )
- चितिदार ( Spotted )
- काली ( Black )
चितिदार व काले रंग की जातियाँ बहुत कम पायी जाती हैं |
पकाने की अवधि के आधार पर मक्का को तीन भागों मे बटा गया है —
- अगेती ( 70-80 दिन ) – Early
- मध्यम ( 80-90 दिन ) Intermediate
- पछेती ( 90-120 दिन ) Late
संकर ( Hybrid ) जातियाँ
संकर मक्का सबसे पहले अमेरिका के कनक्टीक्यूट अनुसंधान केंद्र पर (1921) मे तैयार की गई | स्टार्च उधोग व दाने के लिए अनेक संकर जातियाँ का विकास किया गया | आजकल संसार के सभी देशों मे संकर जातियाँ प्रचलित है |
चना का वानस्पतिक नाम, वर्गीकरण, कुल,
“नियंत्रित सेंचन क्रिया से दो या दो से अधिक इन्ब्रेंड लाइन तैयार करके उनका आपस में संचन कराकर जो नई संतान उत्पन्न होती है, उसे संकर कहते हैं | इस विधि से ही मक्का की संकर किस्में बनाई जाती है”
“Hybridization is the crossing of plants ( Inbred lines ) of unlike hereditary constitution with a view to combine in a single variety ( Called as hybrid ) the desirable characters of two or more inbred lines.”
Some Important Lines Of Maize
मक्क़ा (Maze)
वानस्पतिक नाम: जिया मेज (Zea Mays)
- मक्क़ा प्रमुख रूप से गरीब जनता का मुख्य भोजन है
- मक्क़ा की उपज का बहुत थोड़ा सा भाग स्टार्च उधोग में खर्च किया जाता हैं
- मक्क़ा के स्टीप (Steep) जल में एक जीवाणु (Peneicilum Notatum) को पैदा करके पैन्सलीन दवाई तैयार की जाती हैं
- मक्क़ा की प्रोटीन में ट्रिपटोफेन (Tryptophan) तथा लाइसिन (Lysine) नामक दो अमीनो अम्ल अल्प मात्रा में पाया जाता हैं
- मक्क़ा में विटामिन ‘A’ तथा विटामिन ‘E’ प्रयाप्त मात्रा में पाया जाता हैं
- मक्क़ा के दाने में प्रोटीन 11%, तेल 40%, कार्बोहइड्रेट 66%, क्रूड फाइबर 2.2%, राख 1.4% तथा एल्बुमिनोइड 10.4% पाया जाता हैं
- भारत में मक्क़ा का आगमन सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों द्वारा हुआ था
- रबी ऋतू में बोई गई मक्क़ा की उपज खरीफ की आपेक्षा अधिक होती हैं| जिनके निम्न कारन हैं—
- न्यूनतम पोषक तत्वों का ह्रास
- न्यूनतम खरपतवारों की समस्या
- बेहतर जल-प्रबन्धन
- मृदु एवं अनुकूल तापमान
- बिमारिओं और घातक कीटों की रोकथाम उपाय
- बेहतर पादप-आधार की स्थापना
- मक्क़ा के भ्रूण में 30-40% तक तेल पाया जाता हैं
- अन्य धान्य फसलो के आलावा मक्क़ा में स्टार्च की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती हैं
- मक्क़ा की संकर किस्म ‘गंगा सफ़ेद-2’ Sugercane Downey Mildew रोग के प्रति सहनशील हैं
- मक्क़ा एक पूर्वर्ती (Protoandrus) पौधा हैं जिसमे प्राराग पहले बनते हैं और बिजंड बाद में होतें है
- मक्क़ा में प्रिथक्क़रण (Isolation) दुरी 200 मीटर रखते हैं
- मक्क़ा में सीडलिंग अवस्था बुवाई के 7 दिन बाद होती हैं
- मक्क़ा का पौधा ‘Monoecious’ प्रकार का है
- इस फसल में परागन की क्रिया 7 दिन में सम्पूर्ण होती हैं
- मक्क़ा में पर-परागन (Cross Pollination) होता हैं
- मक्क़ा में फुल एकलिंगी (Unisexual) होती हैं
- मक्क़ा का दाना एक ‘केरिओप्सिस’ (Caryopsis) प्रकार का फल हैं
- मक्क़ा C4 प्रकार का पौधा हैं
- मक्क़ा में तेसलिंग (Tesseling) अवस्था को पुष्पावस्था (Flowering) भी कहते हैं
- भारत में मक्क़ा की संकर किस्मे ‘VL-54’ 1961 में विवेकानन्द प्रयोगशाला अल्मोड़ा द्वारा विकसित की गई थी
- मक्क़ा की गंगा-2, तरुण, जवाहर, किसान इत्यादि ब्राउन स्ट्राइप डाउनी मिल्डयू रोग रोधी किस्मे हैं
- डक्क़न, जवाहर, किसान गेरुई रोग रोघी किस्मे हैं
- डक्कन, रंजीत, किसान व जवाहर मौजेक रोग रोधी किस्मे हैं
- मक्का की किस्मों से सम्बधित कुछ मत्वपूर्ण तथ्य
- ‘हिमालय-123’ किस्म हिमालय की पहाड़ियों में खेती करने के लिए 1967 में विकसित की गई थी
- जवाहर, किसान, सोना तथा विक्रम 1967 में निकली गई थी
- मक्का की प्रोटिना, शक्ति, एवं रत्ना अधिक लाइसिन युक्त कंपोजिट किस्मे हैं
- ‘अम्बर’ किस्मे 1967 में निकली गई
- आजाद उत्तम एवं शरदमणि किस्मे चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविधालय कानपूर से विकसित की गई हैं
- कंचन किस्म का विकास सन 1982 में पंतनगर कृषि विश्वविधालय द्वारा किया गया हैं
- शरदमणि लक्ष्मी एवं धवल किस्मे रबी की बुवाई के लिए उपयुक्त हैं
- जायद मौसम में मक्का की जल्दी पकने वाली (85-90 दिन) किस्मे उगाना चाहिए क्योंकि गर्म हवा (लू) के कारन सिल्क व परागकणों के सूखने का दर रहता हैं | जिसके कारन भुट्टो में दाना नहीं पड़ता