भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाओं के अंतर्संबंधों की चर्चा कीजिए
अपक्षय एक स्वस्थानिक भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह पर मौजूद चट्टानें में टूटफूट होती है जिससे विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
भौतिक अपक्षय में चट्टानों के रूप तो बदलते हैं परंतु गुणों में कोई परिवर्तन नहीं आता। यह अनुप्रयुक्त बलों जैसे गुरुत्वाकर्षण बल, तापक्रम, दबाव आदि पर निर्भर होतीं है। जिससे चट्टानों में संकुचन, विस्तारण के कारण शैलों में सतत श्रान्ति के फलस्वरूप चट्टानें कमजोर होकर विदीर्णीत होने लगती हैं।
रासायनिक अपक्षय में चट्टानें अपनी मौलिक गुणों को खो कर नवीन गुणों वाली हो जाती हैं। इसमें रासायनिक क्रियाओं जैसे – ऑक्सीकरण, कार्बनीकरण, जलयोजन आदि द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है एवं ऊष्मा के साथ जल और वायु की विद्यमानता सभी रासायनिक प्रक्रियाओं को तीव्र गति देने के लिए आवश्यक होती है।
वास्तव में, अपक्षय की भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रियाएँ भिन्न-भिन्न हैं, फिर भी ये दोनों प्रक्रियाएँ एक-दूसरे क प्रभावित करने के कारण स्वतन्त्र नहीं हैं। जैसे- जल एक महत्त्वपूर्ण रासायनिक अपक्षय कारक है किन्तु जब तक इसे ताप या दाब के कारण ऊष्मा प्राप्त नहीं होगा तब तक यह किसी चट्टान से कोई अभिक्रिया नहीं करेगा।
अतः यह कहा जा सकता है की दोनों प्रक्रियाओं में अंतर तो है किन्तु कई क्षेत्रों में ये अन्तर्सम्बन्धित भी हैं। ये दोनों मिलकर अपक्षय प्रक्रियाओं को त्वरित बना देती है।