भारत में मंत्रियों की नियुक्ति
भारतीय संविधान में मंत्रिपरिषद् का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद-74(1) में यह स्पष्ट कहा गया है कि राष्ट्रपति को सलाह एवं सहायता देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका मुखिया प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह एवं सहायता के आधार पर कार्य करेगा । अनुच्छेद – 78 (3) में यह उल्लिखित है कि यदि किसी मंत्री के द्वारा किसी मुद्दे पर विचार किया गया है, तो प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा कि उस मुद्दे को विचार के लिए समूचे मंत्रिपरिषद् के समक्ष रखा जाए । संविधान में 44वें संविधान संशोधन के बाद मंत्रिमंडल शब्द का उल्लेख किया गया, जबकि इसके पहले संविधान में मंत्रिपरिषद् का उल्लेख किया गया था। मंत्रियों की नियुक्ति संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
मंत्री के रूप में नियुक्ति के लिए किसी भी सदन का सदस्य होना आवश्यक है, यद्यपि 6 महीने तक बिना सांसद हुए कोई भी व्यक्ति मंत्री का पद धारण कर सकता है। इसका अभिप्राय है कि वह व्यक्ति मंत्री के रूप में शपथ ले सकता है, जो 6 महीने की अवधि सांसद बन सके। उच्चतम न्यायालय ने तेज प्रकाश सिंह वाद (वर्ष 2001) में यह स्पष्ट कहा कि यदि कोई व्यक्ति 6 महीने के अंदर सांसद न बन सके, तो उसे पुनः मंत्री के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा। मूल संविधान में मंत्रिपरिषद् का आकार निर्धारित नहीं था। 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा यह निश्चित कर दिया गया कि मंत्रिपरिषद् का आकार संसद की कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होगा।