भारत में जाति संघर्ष में सामाजिक गतिशीलता की सम्भावना के कारन
आधुनिक मूल्यों के प्रसार ने लोकतांत्रिक, राजनीतिक व्यवस्था एवं योग्यता आधारित आर्थिक व्यवस्था में सामाजिक-आर्थिक रूप से निम्न पायदान पर अवस्थित जातियों को इस बात का एहसास दिलाया कि वे समाज में अपनी सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक प्रस्थिति में उर्ध्वाधर गतिशीलता लाकर अपनी प्रस्थिति में सुधार ला सकते हैं। चूंकि उच्च जातियां उनके इस उद्देश्य में सबसे बड़ी बाधक थीं फलतः दोनों के बीच संघर्ष स्वाभाविक हो गया।