भारत में जाति-व्यवस्था के गुण
भारतीय सामाजिक व्यवस्था के एक अनिवार्य अंग के रूप में जाति व्यवस्था में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं।
1. जाति व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति को स्थिर सामाजिक पर्यावरण प्रदान करती है। इसी आधार पर कहा जाता है कि “जाति व्यवस्था सामाजिक सुरक्षा का वह आधार है जहां व्यक्ति को रोजगार, आवास और विवाह से सम्बन्धित सुरक्षा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति के परिवर्तनशील स्वभाव के कारण सम्भव नहीं हो पाती।”
2. जाति-व्यवस्था एक ही जाति के सदस्यों में सद्भावना एवं सहयोग की भावना विकसित करती है। निर्धन एवं जरूरत मंदों की सहायता करती है। साथ ही जजमानी प्रथा (Jajmani System) द्वारा सभी जातीय समूहों की परस्पर निर्भरता में वृद्धि करती है।
3. यह व्यक्ति के आर्थिक व्यवसाय का निर्धारण करती है। प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट व्यवसाय होता है जिससे बच्चों के प्रशिक्षण के अवसर के साथ ही उनका भविष्य भी निश्चित हो जाता है।
4. अन्तर्जातीय विवाहों पर प्रतिबन्ध लगाकर इसने उच्च जातियों की प्रजातीय शुद्धता (Species Purity) को सुरक्षित बनाए रखा है। इसने सांस्कृतिक शुद्धता (Cultural Purity) पर बल देकर स्वच्छता की आदतों का विकास किया है।
5. चूँकि जाति व्यवस्था व्यक्ति को भोजन, संस्कार और विवाह सम्बन्धी जातिगत नियमों के पालन का आदेश देती है, अतः राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर उसके विचार व बौद्धिक क्षमता उसकी जातीय प्रथाओं द्वारा प्रभावित हो जाते हैं।
6. वर्ग- संघर्ष की वृद्धि किए बिना यह वर्ग चेतना का विकास करती है। विभिन्न सांस्कृतिक स्तरों के लोगों को एक ही समाज में संगठित करने का यह सर्वोत्तम प्रयास था जिसने देश को संघर्षरत प्रजातीय समूहों (Ethnic Groups) में विभक्त होने से बचाया है।
7. यह सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक विभिन्न कार्यों-शिक्षा, शासन, घरेलू सेवा आदि का प्रबन्ध, धार्मिक विश्वास, ‘कर्म सिद्धान्त में विश्वास’, की संपुष्टि करता है, जिससे कार्यों के विषम विभाजन को भी संसार का दैवीय विधान समझकर स्वीकार कर लिया जाता है।
8. जाति व्यवस्था में जातीय प्रथाएँ, विश्वास, कौशल, व्यवहार एवं व्यापारिक रहस्यों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करती हैं। इस प्रकार संस्कृति की निरंतरता बनी रहती है।
9. इसने सामाजिक जीवन को राजनीतिक जीवन से पृथक् रखकर अपनी स्वतंत्रता को राजनीतिक प्रभावों से मुक्त रखा है।