भारत में जातिवाद के स्वरूप
भारत मे जातिवाद के स्वरूप को तीन स्तरों में बांट कर देखा जा सकता है। 1. प्रशासन में 2. राजनीति में 3. समाज में
भारत में जातिवाद प्रशासनिक या अधिकारिक स्तर पर व्यापक रूप में मौजूद है। उच्च पदों पर पहुँचनें पर प्रतिष्ठित अधिकारियों की नियुक्ति के संबंधो में, अथवा प्रोन्नति के मामले में स्वजाति को वरीयता देने लगते हैं। कुछ अधिकारी पद ग्रहण करते समय ही तय कर लेते हैं कि वे अपनी जाति के सदस्यों को अधिक महत्व देंगे । यह प्रवृत्ति कार्यालयों अथवा शिक्षण संस्थाओं में भी विराजमान है।
जातिवाद का सर्वाधिक व्यापक एवं विघटनकारी स्वरूप राजनीति में दिखाई देता है। कुछ जातियाँ सामूहिक रूप से संगठित होकर राजनीतिक प्रणाली को प्रभावित कर रही हैं। राजनीतिक दल भी संख्या बल के आधार पर विभिन्न जाति के सदस्य को विशिष्ट क्षेत्र से चुनाव में उम्मीदवार बनाते हैं तथा वह उम्मीदवार चुनाव जीतने पर विशिष्ट जाति का ख्याल रखता है। इसके अलावा शीर्ष पद पर बैठे राजनीतिक नेता अपने जातियों के सदस्यों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करते हैं और अन्य जातियों के प्रति भेदभाव करते हैं।
समाजिक स्तर पर जातिवाद भारत में बहुत पहले से विराजमान हैं। इसके तहत विभिन्न जाति के सदस्य केवल अपने समूह मे विवाह करते हैं। खान-पान का संबंध रखते हैं, इसके अतिरिक्त स्वजाति के सदस्यों से अपने सुख दुःख की भागीदारी करते हैं और उनसे मिलकर शांति एवं प्रसन्नता अनुभव करते हैं। साथ ही साथ वे समाज के अन्य जाति या सदस्यों को अपने से निम्न समझते हैं तथा स्वजाति केन्द्रीयता की भावना रखते हैं।