भारत में जातिवाद और जातीय संगठन
विभिन्न जातीय संगठन भी परोक्ष रूप से जातिवाद को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ये संगठन जातिवाद को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करते हैं। हरित क्रांति के बाद पिछड़ी जातियों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के कारण उनके अन्दर स्वहित चेतना जातीय संगठन बना लिए । धीरे-धीरे अधिकांश जातियों ने भी ऐसा करना शुरू किया। इन संगठनों का उद्देश्य अपनी जाति को एकीकृत करना, समाज में अपनी जाति के प्रभाव को बढ़ाकर दबाव समूह के रूप में विकसित करना है। जातीय संगठन जाति सम्मेलन आयोजित करवाते हैं स्वजाति से संबंधित पत्रिका, लेख का प्रकाशन करतें हैं। इनके कार्य व्यवहार जाति निष्ठा को बढ़ावा देते हैं तथा जातिवाद के लिए आधार तैयार करते हैं ।