भारत में जातिवाद और जजमानी प्रथा की समाप्ति
जजमानी व्यवस्था समाज में परंपरागत श्रम विभाजन की व्यवस्था थी जिसके तहत विभिन्न जातियों के सामाजिक आर्थिक संबंध होते थे। इस संबंध के कारण आपस में द्वन्द्व या ईर्ष्या भाव उत्पन्न नहीं होता था । इस अन्तर्निभरता के कारण जातिवादी भावना के अवसर कम थे किन्तु जजमानी व्यवस्था के टूटने एवं जातीय व्यवसायों के समाप्त होने से जातियाँ स्वतंत्र एवं वैयक्तिक ढंग से अपना विकास करने लगी । विकास की प्रक्रिया के तहत इन जातियों में प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न हुई तथा स्वजाति हित सर्वोपरि हो गया।