भारत में औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान आधुनिकीकरण की शुरूआत
भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना 17वीं शताब्दी में हुई और इसके साथ ही भारतीय समाज का संपर्क आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के साथ व्यापक रूप से संभव हुआ । फलतः भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का प्रारंभ औपनिवेशिक शासन के प्रमुख प्रभावों में से एक था। अंग्रेजों द्वारा भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना के लिए और फिर उसे बनाए रखने के लिए कुछ नई तकनीक एवं संरचनाओं को भारतीय समाज पर लागू किया गया और इसी के साथ भारत में आधुनिकीकरण का प्रवेश संभव हुआ ।
अंग्रेजों द्वारा अपने लाभ हेतु उत्पादन में नई मशीनी तकनीक का प्रयोग करके औद्योगीकरण की नींव रखी गई तथा व्यक्ति की योग्यता को महत्त्व प्रदान किया गया, व्यापार की नई बाजार प्रणाली को लागू किया गया, अपने व्यापार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु तथा प्रशासन को दुरूस्त करने हेतु यातायात एवं संचार के आधुनिक साधनों का विकास किया गया, नगरीकरण की प्रक्रिया को तीव्र किया गया और इस तरह भारत में आर्थिक क्षेत्र के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। फलतः भारतीय समाज में संरचनात्मक एवं प्रकार्यात्मक विभेदीकरण संभव हुआ, वर्ग स्तरीकरण का विकास संभव हुआ, कई नवीन वर्गों तथा संस्थाओं का प्रादुर्भाव हुआ, प्रवास के दर में वृद्धि हुई, समाज में अर्जित प्रस्थिति को महत्त्व प्राप्त हुआ, व्यक्तिवादिता का विकास हुआ जिसके कारण परंपरागत संरचनाओं में आधुनिकीकरण की दिशा में परिवर्तन प्रारंभ हो गया।
पश्चिमी सभ्यता समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, व्यक्तिवादिता, विवेकशीलता, मानववाद के दृष्टिकोण पर आधारित थी। औपनिवेशिक शासनकाल में प्रारंभ की गई औपचारिक आधुनिक शिक्षा व्यवस्था ने, जो धर्मनिरपेक्ष, तार्किक एवं वैज्ञानिक थी, न केवल योग्यता एवं प्रदत्त प्रस्थिति को महत्त्व प्रदान किया बल्कि स्वतंत्रता, समानता, सामाजिक न्याय, वैज्ञानिक विश्व-दृष्टि, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को प्रसारित करके हमारे जीवन के सभी पक्षों को इस दिशा में प्रभावित किया और भारतीय समाज में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अग्रसारित किया फलतः भारतीय समाज में धर्म के प्रभाव में कमी आई सोपानिकता कमजोर हुई निम्न जातीय समूहों एवं स्त्रियों की प्रस्थिति में सुधार प्रारंभ हुआ तथा सामूहिकता की जगह व्यक्तिवादिता की प्रवृत्ति विकसित होने लगी जिसने नातेदारी व्यवस्था, परिवार, विवाह आदि में नवीन परिवर्तनों और प्रस्थिति उन्नयन हेतु विभिन्न व्यक्तियों व समूहों के बीच प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष का बीजारोपण किया।
औपनिवेशिक शासनकाल में नवीन शिक्षा व्यवस्था की शुरूआत प्रारंभ में मुंबई, कलकत्ता एवं मद्रास विश्वविद्यालय की स्थापना के रूप में भारत के तीन क्षेत्रों में हुई जिसने मुख्यतः दो तरह के परिवर्तनों को संभव बनाया।
1. इन शिक्षण संस्थानों में आधुनिक शिक्षा प्राप्त नवीन मध्यम वर्ग का उदय हुआ जो विवेकशीलता के सिद्धांत पर बल देता था और जिसने भारतीय समाज में आधुनिकीकरण को नेतृत्व प्रदान किया।
2. सांस्कृतिक सुधारवादी आंदोलन जैसे ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज आदि का प्रारंभ हुआ। इसने सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में बदलाव एवं समन्वय की प्रक्रिया को क्रियाशील किया इससे परंपरागत कुरीतियों एवं मान्यताओं के उन्मूलन की दिशा में परिवर्तन संभव हो सका।
अंग्रेजों द्वारा वयस्क मताधिकार, संगठित व प्रशिक्षित पृथक न्याय व्यवस्था, औपचारिक एवं लिखित कानून व्यवस्था, आधुनिक सैन्य संगठन, नौकरशाही व्यवस्था पर आधारित सिविल सेवा का अखिल भारतीय स्वरूप आदि की शुरूआत की गई और इस दिशा में बहुत सारे कानूनों का निर्माण किया गया जिससे राजनीतिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में आधुनिकीकरण की शुरूआत हुई। परिणामस्वरूप, शक्ति संरचना में शक्ति की प्राप्ति हेतु प्रतिस्पर्धा तेज हुई, शक्ति संरचना का परंपरागत एवं आनुवांशिक स्वरूप कमजोर हुआ और लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार हुई ।
यहाँ ध्यान देने योग्य प्रमुख बात यह है कि औपनिवेशिक काल में निश्चित रूप से भारत में आधुनिक संरचना और संस्कृति की पृष्ठभूमि तैयार हुई जो पूरे भारत वर्ष में प्रभावशाली रही। फिर भी, इस दौर में स्थानीय या लघु संरचनाएँ, जिनमें परिवार, जाति एवं ग्राम शामिल हैं, विशेष प्रभावित नहीं हुए। क्योंकि, अग्रेंजों की प्रारंभिक नीति इन क्षेत्रों में न्यूनतम हस्तक्षेप की बनी रही। भारतीय परंपरा के आधुनिकीकरण की इस प्रक्रिया के विकास की पूर्णत: अभिव्यक्ति स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् संभव हो सकी जब बृहद् संरचनाओं, लघु संरचनाओं एवं लघु तथा बृहद् परंपराओं के मध्य आधुनिकीकरण में असंगति को काफी हद तक समाप्त कर दिया गया, जो अंग्रेजी शासनकाल के दौरान विद्यमान थी।