भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के स्वरूप

भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के स्वरूप

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भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के स्वरूप

आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के प्रति भारतीय समाज में तीन तरह की प्रतिक्रियाएँ दृष्टिगत होती हैं

1. परंपरा द्वारा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का विरोध

2. आधुनिकीकरण द्वारा परंपरा का विस्थापन

3. भारतीय परंपरा का आधुनिकीकरण

परंपरा द्वारा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का विरोध

प्रथम प्रकार की प्रतिक्रिया घोर परंपरावादी और कट्टरपंथियों की थी जो भारतीय परंपरा में निहित तत्त्वों एवं आदर्शों को श्रेष्ठ मानते थे और इससे अलग हर विदेशी तत्त्व एवं आदर्श को संदेह की दृष्टि से देखते थे और त्याज्य मानते थे। इनके अनुसार आज के युग की सभी उपलब्धियाँ परंपरागत भारत में (वैदिक काल या रामायण व महाभारत काल में) घटित हो चुकी थी। इसलिए ये पुनः अपनी परंपरा को स्थापित करना और अपने अतीत के गौरव को वापस लाना चाहते थे। आधुनिकीकरण के प्रति इनकी प्रतिक्रिया विरोध के रूप में प्रकट हुई और इन्होंने हर आधुनिक चीज को विदेशी कहकर उसका विरोध किया और सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रों में परंपरा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया।

आधुनिकीकरण द्वारा परंपरा का विस्थापन

आधुनिकीकरण के प्रति दूसरी प्रतिक्रिया उन लोगों की थी जिन्हें तत्कालीन समय में आधुनिकतावादी कहा जाता था। ये परंपरा में निहित सभी तत्त्वों व आदर्शों को पुरातनपंथी पोंगापंथी व अंधविश्वास कहकर उनका माजक उड़ाते थे व अंग्रेजों के साथ आए प्रत्येक विदेशी चीज को श्रेष्ठ मानते थे। इनके अनुसार भारतीय समाज का कल्याण इसी में है कि यह शीघ्रता से पश्चिमी समाज की भाँति हो जाए। आधुनिकीकरण के प्रति इनकी प्रतिक्रिया परंपरा के सभी तत्त्वों का त्याग और आधुनिकता के सभी तत्त्वों एवं आदर्शों की पूर्ण स्वीकृति के रूप में हुई। इन लोगों ने आधुनिकता के मूल्य प्रतिमान, जीवनशैली तथा विश्वदृष्टि सभी को पूर्ण रूपेण स्वीकार किया व इसका समर्थन किया।

भारतीय परंपरा का आधुनिकीकरण

आधुनिकीकरण के प्रति तीसरी प्रतिक्रिया समन्वयवादियों की थी जो परंपरा और आधुनिकता के मध्य समन्वय के पक्षधर थे। इनका मानना था कि आधुनिकता के संदर्भ में परंपरा पर फिर से विचार करना चाहिए। परंपरा में जो तत्त्व एवं आदर्श रखने योग्य हैं उसे बनाए रखना चाहिए और जो वर्तमान समय में प्रासंगिक या उपयोगी नहीं हैं उनका त्याग करना चाहिए। इसी तरह, आधुनिकता के तत्त्वों एवं आदर्शों में से जो तत्त्व वर्तमान भारतीय समाज एवं संस्कृति के लिए प्रासंगिक, उपयोगी एवं विवेकपूर्ण हैं उसे स्वीकार करना चाहिए और जो नहीं हैं उसे छोड़ देना चाहिए।

दूसरे शब्दों में, परंपरा एवं आधुनिकता के समन्वय से ही भारतीय समाज का कल्याण एवं विकास संभव है इसलिए इस तीसरी विचारधारा के समर्थकों ने परंपरा के साथ आधुनिकता को संशोधित रूप में स्वीकार किया और भारत में भारतीय समाज व संस्कृति के साथ सामंजस्य बैठाते हुए आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को संशोधित रूप में अग्रसारित किया। उपरोक्त तीनों प्रतिक्रियाओं में से तीसरी प्रतिक्रिया सर्वाधिक तर्कसंगत एवं व्यवहारिक रूप से सफल रही है अर्थात् भारत में परंपरा का बिना विखंडन किए आधुनिकीकरण संभव है और दोनों में परस्पर विरोध ना होकर दोनों का सह अस्तित्व संभव दिखाई पड़ रहा है। संतान के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति का प्रयोग तथा जन्म के शुभ अवसर पर पारंपरिक कर्मकांड (छठी आदि), आधुनिक तकनीक से कृषि कार्य तथा मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, वैशाखी का त्यौहार, परिवार नियोजन की स्वीकृति और संतान को ईश्वरीय इच्छा के रूप में मानना, औद्योगीकरण एवं यंत्रीकरण तथा विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर यंत्रों की पूजा, जीवन के अनेक क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा अनेक क्षेत्रों में अंधविश्वास को मान्यता (जैसे- बिल्ली द्वारा रास्ता काटना, शुभ-अशुभ की मान्यता आदि) ऐसे उदाहरण हैं जो उपरोक्त कथन की पुष्टि करते हैं।

अतः निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि आधुनिकीकरण और भारतीय परंपरा में एक अटूट क्रम विद्यमान रहा और कुछेक अंतर्विरोधों के बावजूद दोनों ने एक-दूसरे को संपोषित किया है। इस प्रक्रिया ने निश्चित रूप से भारतीय समाज को आधुनिक समाज की ओर अग्रसारित किया है। परन्तु यह परंपरा को पूर्णतः विस्थापित करके नहीं हुआ है, बल्कि परंपरा का आधुनिकीकरण हुआ है और भविष्य में अनुकूलनकारी परिवर्तन की इस प्रक्रिया की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी, कि आधुनिकीकरण एवं परंपरा के मध्य उत्पन्न तनाव का समाधान कैसे किया जाता है क्योंकि जहाँ समाधान सही नहीं रहा है, वहाँ आधुनिकीकरण की इस प्रक्रिया ने कई तरह के विखंडन को उत्पन्न दिया है। (जैसे- इंडोनेशिया, वर्मा, आदि देशों में) और जहाँ यह समाधान सही तरीके से हुआ है, वहाँ आधुनिकीकरण सफल रहा है। जैसे- जापान में 

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