November 15, 2024
भारतीय समाज में धर्म 

भारतीय समाज में धर्म 

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भारतीय समाज में धर्म 

धर्म हिन्दू सामाजिक संगठन का केन्द्रीय आधार है, जिसको परिभाषित करते हुए कहा गया है कि धर्म चारों वर्णों एवं आश्रमों षार्थों के संबंध में पालन करने के सदस्यों द्वारा जीवन के चार योग्य मनुष्य का संपूर्ण कर्तव्य है। अर्थात् हिंदू धर्म को जीवन के कर्तव्य (कर्म) के रूप में देखा गया है तथा वर्ण-धर्म, आश्रम – धर्म, कुल- धर्म, राज-धर्म, स्व-धर्म आदि के रूप में वर्गीकृत कर व्यक्ति के स्वयं के प्रति और संपूर्ण समाज के प्रति कर्तव्यों को निर्धारित किया गया है और सामाजिक जीवन के सभी पक्षों को धर्म के साथ सम्बद्ध कर व्यक्ति को समाज के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु निर्देशित किया गया है। इसे निम्न बिंदुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है:-

1. भारतीय मान्यता के अनुसार इस विश्व और ब्रह्माण्ड का सृष्टिकर्ता केवल एक ईश्वर है। मनु के अनुसार इस प्रकार यह संपूर्ण जड़ तथा चेतन जगत् सर्वशक्तिमान परमात्मा की अभिव्यक्ति है और मानव जीवन के लिए धर्म तथा कर्म-क्षेत्र है। इसी संसार में अपने धर्मानुसार आचरण के द्वारा ही जीवन के परम लक्ष्य अर्थात् ‘परम सत्य’ की ओर बढ़ा जा सकता है।

2. उत्सव, पर्व और त्यौहार सामाजिक जीवन के महत्त्वपूर्ण अंग हैं और इन पर भी हमें धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। नवरात्र, दशहरा, नागपंचमी, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी, तीज, करवाचौथ आदि हिन्दुओं के महत्त्वपूर्ण व्रत हैं और इनमें से प्रत्येक में किसी न किसी देवी-देवता को पूजने का विधान है।

3. भारतीय जीवन के सभी प्रमुख कर्तव्य धर्म आधारित हैं। हिन्दू जीवन दर्शन के अनुसार शास्त्र विहित कर्म ही धर्म हैं। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, त्याग आदि सार्वभौम कर्त्तव्य हैं और इन सबका आधार धर्म ही है। जीवन के आधारभूत कर्तव्य-कर्मों में यज्ञ का स्थान महत्त्वपूर्ण है।

4. व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक शुद्धि या सुधार के लिए किए जाने वाले अनुष्ठानों को ही संस्कार कहते हैं जिसके माध्यम से ही एक व्यक्ति समाज का पूर्ण विकसित सदस्य बन सकता है। जीवन पथ के ये सभी संस्कार किसी न किसी रूप में धर्म से संबंधित व धर्म पर आधारित होते हैं।

5. सफल जीवन के लिए शिक्षा एक आवश्यक शर्त है और भारत में बच्चे के जीवन में यह विद्यारम्भ भी धार्मिक आधार पर ही होता है। हिन्दुओं में इस संस्कार के अवसर पर विधिवत पट्टी पूजन किया जाता है। आज भी ग्रामीण समुदायों में कुछ लोग लिखना-पढ़ना इस उद्देश्य से सीखना चाहते हैं कि वे धार्मिक पुस्तकों को पढ़ सकें।

6. भारत में व्यक्ति का पारिवारिक जीवन भी धर्म पर आधारित है। पारिवारिक जीवन में प्रवेश पाने के लिए विवाह अनिवार्य है और हिन्दुओं में तो विवाह स्वयं ही एक धार्मिक संस्कार है। हिन्दुओं में पत्नी को धर्म-पत्नी व पति को पति-देवता कहा जाता है। पत्नी विहीन पुरुष धार्मिक कर्तव्यों को करने का अधिकारी नहीं होता।

7. भारत में आर्थिक जीवन का भी धार्मिक आधार है। हिन्दुओं में लक्ष्मी को धन की देवी माना जाता है और यह विश्वास किया जाता है कि धनी या निर्धन होना पूर्णतया इसी देवी माँ की कृपा पर निर्भर करता है। निर्धनता को एक ईश्वरीय अभिशाप माना गया है और धर्म विरुद्ध तरीकों से धन कमाने को पाप माना जाता है।

8. प्राचीन भारत में राजनीतिक जीवन के कर्तव्यों का पालन भी धार्मिक आधार पर होता था। प्रत्येक राजा के दरबार में एक राजपुरोहित या राजगुरु होता था जिसकी आज्ञा का पालन राजा भी करता था। परंपरागत रूप में राजनीतिक जीवन के धार्मिक आधार का एक और प्रमाण ‘राजधर्म’ की अवधारणा में देखा जा सकता है जो राजा के कर्तव्यों को बताता है। आधुनिक प्रजातंत्रात्मक राज्य तक में जनता के प्रतिनिधि (संसद् तथा विधानसभा के सदस्य ) ईश्वर के नाम पर ही अपने पद तथा गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

9. भारत में जीवन का अंत हो जाने अर्थात् मृत्यु के बाद भी ‘जीवन’ (अगर हम उसे जीवन मानें ) धर्म पर आधारित है। व्यक्ति के मर जाने पर जो अंतिम संस्कार किया जाता है वह भी धर्म पर ही आधारित होता है। हिन्दुओं में मर रहे व्यक्ति को भगवान का नाम लेने को कहा जाता है, उसकी देह की अस्थियों या जली हुई राख को गंगा अथवा अन्य किसी पवित्र नदी में बहा दिया जाता है, तेरहवीं के दिन हवन आदि किया जाता है। 

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