November 15, 2024
भारतीय संस्कृति का समांगिकरण और इनके वैश्वीकरण से सम्बंधित विशेषताएं

भारतीय संस्कृति का समांगिकरण और इनके वैश्वीकरण से सम्बंधित विशेषताएं

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भारतीय संस्कृति का समांगिकरण और इनके वैश्वीकरण से सम्बंधित विशेषताएं

राष्ट्रों के मध्य पारस्परिक निर्भरता, जुड़ाव तथा एकीकरण को व्यक्त करने वाली अवधारणा वैश्वीकरण/भूमंडलीकरण कहलाती है।

भारतीय संस्कृति का समांगिकरण:-

भारत विविधताओं से भरा हुआ उपमहाद्वीप है। विगत कुछ दशकों से भारत की संस्कृति वैश्वीकरण के अत्यधिक चकाचौंध के प्रभाव के कारण लुप्त होती जा रही है। बदलते परिवेश में वैश्वीकरण की पहुंच ने भारतीय संस्कृति को एक सांस्कृतिक समांगिकरण के रूप में बदला है।

वैश्विकरण ने हमारे सामाजिक सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनितिक स्थितिओं पर गहरा छाप छोड़ा है। उदाहरण: भाषा – अंग्रेजी, उत्सव – हैप्पी न्यू ईयर, परिधान – जींस, खानपान पिज़्ज़ा / बर्गर, कला – रीमिक्स, जीवनशैली – बिमारियों से भरा हुआ।

इसमें कोई शक नहीं कि वैश्वीकरण के कारण भारत में सांस्कृतिक सजातीयकरण या समांगीकरण की प्रक्रिया का विस्तार हुआ है लेकिन यदि गौर किया जाए तो भारत में अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए एक नए संदर्भ में भारतीय संस्कृति का पुनरुत्थान भी देखा जा रहा है।

वैश्वीकरण से सम्बंधित भारतीय सांस्कृति की विशिष्ताएँ:-

सूचना, संचार की एवं यातायात के त्वरित साधनों के कारण सिकुड़ता विश्व। बहुराष्ट्रीय / परराष्ट्रीय निगमों की प्रभावी उपस्थिति। उपभोक्तावादी, भौतिकतावादी, व्यक्तिवादी संस्कृति एवं मुल्यों का अधिक विकास। मॉल संस्कृति का अधिक विकास । दिखावे की संस्कृति का अधिक विकास। वैश्विक संस्कृति की उपस्थिति। नगरीकरण, औद्योगीकरण जैसी प्रक्रियाओं का तीव्र विकास।

सामाजिक संस्थाओं के सामाजिक महत्व में निजता, स्वतंत्रता की विचारधारा के कारण गिरावट। धर्म, जाति, प्रजाति के महत्व में कमी। तकनीकी नवाचार। अकेले जीवन यापन की प्रवृति। नैतिकता की कमी। आपसी सहयोग की भावना में कमी आना। कृषि के अतिरिक्त उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों की प्रभावी उपस्थिति। संविदा आधारित विवाह का अधिक प्रचलन ।

वैश्वीकरण का संस्कृति पर प्रभाव अत्याधिक पड़ा है। हमारी भाषा उत्सव, परिधान, खानपान, संगीत, कला, जीवनशैली सभी कुछ कॉम्बो पैक के रूप मे पैकेज बनाते हुए विश्व भर की संस्कृति मे बदल रहे हैं। हालांकि पूरी तरह से बदलवा तो नहीं आया है, लेकिन काफी हद तक हम पर बाजार की उपभोगवादी प्रभाव अध्यारोपित हो रही है। इन्हीं सांस्कृतिक समांगिकरण से बचने के लिये कुछ लोग, संगठनों और सरकार द्वारा मुहिम चलाई जा रही है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मेक इन इंडिया है, अगर हम देखे तो भारत मे बनी चीजें भारत को विश्व स्तर पर अपनी पहचान दिलाती है। भारत की सांस्कृति की जड़े बहुत पुरानी हैं। यह हमेशा से मजबूत है और मजबूत रहेगी।

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