भारतीय संघीय शासन की प्रकृति
भारतीय संघीय शासन में संघीय शासन की सभी विशेषताएं पाई जाती हैं, जिनमें शक्ति का विभाजन लिखित एवं सर्वोच्च संविधान तथा स्वतंत्र न्यायपालिका है, परंतु विधायी कार्यपालिकीय एवं वित्तीय शक्तियों के विभाजन में संघ सरकार का पलड़ा भारी है। अतः संघ शासन में केंद्रीयकरण के प्रभावी तत्व विद्यमान हैं। विधायी क्षेत्रों में संघ सरकार के द्वारा राज्य सूची के विषय पर विधि का निर्माण किया जा सकता है। कार्यपालिकीय क्षेत्रों में संघ सरकार राज्यों को निर्देश देता है तथा वित्तीय क्षेत्रों में राज्य, संघ के अनुदान पर निर्भर होते हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि संघ एवं राज्य एक-दूसरे के समकक्ष नहीं हैं, बल्कि राज्य, संघ पर निर्भर हैं। इसलिए आलोचकों ने भारतीय संघीय व्यवस्था को अर्द्ध-संघात्मक कहा है। इसके अतिरिक्त संविधान में आपातकालीन प्रावधान संघ एवं राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन को स्थगित कर देते हैं और संघीय व्यवस्था एकात्मक रुप में कार्य करने लगती है। इसी आधार पर आलोचकों ने कहा कि भारतीय शासन मूलतः एकात्मक है, जिसमें कुछ संघात्मक लक्षण भी विद्यमान हैं।
यह सत्य है कि भारतीय संघीय व्यवस्था में संघ ज्यादा शक्तिशाली है तथा संघ में केंद्रीयकरण की प्रवृत्तियां विद्यमान हैं, परंतु संघीय शासन में संघ एवं राज्यों के बीच सहयोग के महत्वपूर्ण बिंदु भी उल्लिखित हैं। इसीलिए भारतीय संघ को सहकारी संघीय व्यवस्था कहा जाता है। संघीय शासन का मूल्यांकन संविधान के अध्ययन के द्वारा पूर्णतः संभव नहीं है, बल्कि संघीय शासन के वास्तविक कार्यकरण को देखना आवश्यक है। भारत में राज्यों के मुख्यमंत्री स्वतंत्र एवं पृथक् शक्तियों का प्रयोग करते हैं और वे अपनी शक्तियों के प्रयोग के लिए संघ सरकार पर निर्भर नहीं हैं। इसलिए संघीय शासन प्रकार्यात्मक और राजनीतिक अवधारणा है इसे केवल विधि के अध्ययन के द्वारा नहीं समझा जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने संविधान की व्याख्या करते हुए कहा है कि संघीय शासन संविधान का आधारभूत लक्षण है। इसलिए भारतीय संघ को अर्द्ध-संघात्मक कहना तार्किक नहीं है, बल्कि भारतीय संघ में संघ सरकार शक्तिशाली है तथा संघीय व्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण लक्षण विद्यमान हैं और आपातकालीन शक्तियों के आधार पर संघीय शासन का मूल्यांकन करना पूर्णतः उचित नहीं है।
भारतीय संविधान में सहकारी संघीय व्यवस्था को अपनाया गया। संविधान में संघ एवं राज्यों की शक्तियों के मध्य विभाजन के साथ सहयोग व समन्वय पर भी महत्वपूर्ण बल दिया गया। भारतीय संघीय शासन की प्रकृति केवल संविधान के अध्ययन के द्वारा समझना कठिन है, बल्कि इसके लिए संघीय व्यवस्था के व्यावहारिक कार्यकरण को भी समझना महत्वपूर्ण है। व्यावहारिक रूप में संघीय प्रणाली का अध्ययन दलीय प्रणाली में परिवर्तन साथ परिवर्तित हुआ।