भारतीय मृदा के प्रकार तथा विशेषतायें
मृदा एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है जिसकी प्रकृति एवं उर्वरता, शस्य उत्पादकता एवं कृषि उत्पादन को निर्धारित करती है। गहरी उर्वर मृदा से संपन्न क्षेत्र में अधिक कृषि उत्पादन होता है जो घनी जनसंख्या का पोषण करता है, जबकि मृदा का छिछला आवरण विपन्न कृषि अर्थव्यवस्था को जन्म देता है।
कृषिगत महत्ता के दृष्टिकोण से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) द्वारा भारतीय मृदाओं को कुल आठ वर्गों में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें जलोढ़, काली, पीली, लवणीय, लेटेराइट, पर्वतीय, मरूस्थलीय तथा पीट मृदा शामिल है। भारतीय मृदा की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं।
भारत में अनेक प्रकार की मृदाएँ पाईं जाती हैं जिसके कारण उनके भौतिक गुणों, रासायनिक संघटन, उत्पादकता स्तर आदि में काफी भिन्नता पाई जाती है। भारत में अधिकांशतः पुरानी और परिपक्व मृदाएँ पाईं जाती हैं जिनमें नाइट्रोजन, खनिज लवणों और जैव पदार्थों की कमी पाई जाती है।
मैदानों और घाटियों में मृदा की मोटी परत पाई जाती है, पहाड़ों और पठारों पर इनका छिछला आवरण पाया जाता है। भारतीय मृदाएँ भारी मृदा अपरदन की समस्या से ग्रस्त है। उष्ण कटिबंधीय जलवायु और मौसमी वर्षा के कारण इन मृदाओं का आर्द्रता स्तर बनाए रखने के लिये सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
देश के कुछ क्षेत्र लवणता और क्षारीयता की समस्या से ग्रस्त है जिससे उपजाऊ मिट्टियों का ह्रास हो रहा है। भारतीय मृदा में नाइट्रोजन एवं ह्यूमस का अभाव पाया जाता है। इस प्रकार उपर्युक्त बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट है कि भारत एक मृदा वैविध्य वाला देश है, जिसमें विशेषताओं की दृष्टि से अनेक प्रकार के मृदा समूह विद्यमान है।