भारतीय निर्वाचन आयोग
संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन आयोग का उल्लेख है। प्रकृति :- निर्वाचन आयोग एक स्थाई व स्वतंत्र निकाय है जिसका गठन भारत के संविधान द्वारा देश में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के उद्देश्य से किया गया था।
संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार संसद, राज्य विधानमंडल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचन के लिए संचालन निर्देशन व नियंत्रण की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है।
चुनाव आयोग एक अखिल भारतीय संस्था है क्योंकि यह केंद्र और राज्य सरकार दोनों के लिए समान है।
निर्वाचन आयोग की संरचना:-
संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयोग के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान है।
निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्त से मिलकर बना होता है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सलाह पर प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकता है जिसे वह निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए आवश्यक समझे।
निर्वाचन आयुक्त व प्रादेशिक आयुक्त की सेवा की शर्तें व पदावधि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
1950 से 15 अक्टूबर 1989 तक निर्वाचन आयोग के एक सदस्यीय निकाय के रूप में कार्य किया, जिसमें केवल मुख्य निर्वाचन आयोग अधिकारी होता था।
मत देने की न्यूनतम आयु 21 से 18 वर्ष करने के बाद 16 अक्टूबर 1989 को राष्ट्रपति ने आयोग के कार्यभार को कम करने के लिए दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त किया।
इसके बाद से अब तक आयोग बहुसदस्यीय संस्था के तौर पर काम कर रहा है जिसमें तीन निर्वाचन आयुक्त हैं।
हालांकि 1990 में दो निर्वाचन आयुक्त के पद समाप्त कर दिया गया और स्थिति एक बार पहले की तरह हो गई। एक बार फिर अक्टूबर 1993 में दो निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त किया गया।
शक्तियाँ:-
मुख्य निर्वाचन आयुक्त व दो अन्य निर्वाचन आयुक्त के पास समान शक्तियां होती हैं।
उनके वेतन-भत्ते व दूसरे अनुलाभ भी एक समान होते हैं जो सर्वोच्च न्यायालय की न्यायधीश के समान होते हैं। जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त व दो अन्य निर्वाचन आयुक्त के बीच में मतभेद होता है तो आयोग बहुमत के आधार पर निर्णय करता है।
कार्यकाल:-
6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो पहले हो।
वे किसी भी समय त्यागपत्र दे सकता है या उन्हें कार्यकाल समाप्त होने के पहले भी हटाया जा सकता है।