बैंक राष्ट्रीयकरण के कारणों तथा परिणामों की चर्चा कीजिए
वर्ष 1969 तक भारतीय स्टेट बैंक को छोड़कर सभी बैंक निजी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बैंकों के योगदान की आवश्यकता को देखते हुए, 14 निजी बैंकों का वर्ष 1969 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसी क्रम में वर्ष 1980 में 6 और निजी क्षेत्र के बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया।
तत्कालीन परिस्थितियों में बैंक राष्ट्रीयकरण के निम्नलिखित कारण:-
अर्थव्यवस्था के भीतर कई प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में ऋण की पहुंच और प्रवाह से संबंधित कई समस्याएं थीं। 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले, सरकार ने “सामाजिक नियंत्रण” के माध्यम से आर्थिक समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया था।
यह क्रेडिट के व्यापक प्रसार और उभरते प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में क्रेडिट प्रवाह में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था। बैंक मुख्य रूप से सट्टा वाली वित्तीय गतिविधियों के कारण विफल हो रहे थे। कृषि संकट के बाद, बैंक कृषि को ऋण नहीं दे रहे थे । उद्योगों को पर्याप्त ऋण नहीं मिल पा रहा था। इससे, इस दौरान कृषि और उद्योगों पर संकट आ गया था, वे उत्पादन के बजाए व्यापार के लिए ऋण देने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे थे।
बैंकों का राष्ट्रीयकरण स्वतंत्र भारत के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक था। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के निम्नलिखित परिणाम देखने को मिले:-
इस कदम के परिणामस्वरूप बैंक जमा और वित्तीय बचत में बड़ी वृद्धि हुई थी। उस दौरान बढ़ते राजकोषीय घाटे ने बैंकों को, अपने वित्त पोषण का कैप्टिव स्रोत बना दिया था। इस कदम का दीर्घकालिक प्रभाव लघु उद्योगों और कृषि का बेहतर प्रदर्शन है। इससे ग्रामीण भारत में बैंकों की पैठ भी बढ़ी है।
लगातार राजनीतिक हस्तक्षेपों ने बैंकों की लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। सरकार बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से विकासात्मक एजेंडे में अपने लक्ष्य को काफी हद तक पूरा करने में सफल रही है।
इन सबके बाद भी, भारत में अभी भी कई लोगों की औपचारिक ऋण तक पहुंच नहीं थी और आबादी का एक बड़ा हिस्सा बैंकिंग नेट से बाहर रहा। प्रधान मंत्री जनधन योजना के तहत सभी का बैंक खाता खुलवाने की योजना, वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में बड़ा प्रयास था।
वर्तमान में बैंकों का एकीकरण करके बड़े बैंकों की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है जिससे बैंकों को लागत प्रभावी, लाभप्रद तथा देश की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक बनाया जा सके।