प्रायद्वीपीय पठार के महत्त्व
भारतीय प्रायद्वीप उल्टे त्रिभुज की आकृति में अवस्थित है, जिसका आधार अरावली से लेकर शिलोंग पठार के मध्य तथा शीर्ष कन्याकुमारी अंतरीप के रूप में अवस्थित है। यह प्राचीनतम भू-खंड गोंडवाना लैंड का अंग है।प्रायद्वीपीय भारत का पठार अनेक दृष्टिकोण से महत्त्व रखता है, जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
पठार की प्राचीन क्रिस्टलीय चट्टानें विभिन्न प्रकार के खनिजों का स्रोत हैं इनमें लोहा, तांबा, सीसा, जस्ता, मैंगनीज, बॉक्साइट, क्रोमियम, अभ्रक, सोना आदि के समृद्ध भंडार हैं।
बेसाल्टिक लावा प्रवाह के अपक्षय के कारण बनने वाली काली मिट्टी कपास की खेती के लिए आदर्श है। नीलगिरि पहाड़ियों की ढलानों का उपयोग रोपण कृषि के लिए किया जाता है जहाँ कॉफी, चाय, रबर, तम्बाकू, तिलहन और कई प्रजातियाँ उगाई जाती हैं।
पठारी क्षेत्र के घने वन सागौन, शीशम, चंदन, बांस और कई अन्य वन आधारित जैसे लकड़ी प्रदान करते हैं। वन कई जानवरों जैसे बाघ, हाथी, हिरण, भालू, तेंदुए और विभिन्न प्रकार के पक्षियों और सरीसृपों के आवास हैं।
विस्तृत पठारी क्षेत्र एक बड़े जलसंभर का निर्माण करता है जहाँ से अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों का उद्गम हुआ है, जोकि उपजाऊ घाटियों में सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती हैं। जलविद्युत के लिए भी नर्मदा, नागार्जुन सागर, कावेरी, इडुक्की जैसी परियोजनाओं के माध्यम से नदियों उपयोग किया जा रहा है।
पठार के अनके क्षेत्रों में मानव समुदाय या आदिवासी रहते हैं, जैसे गोंड, भील, संथाल, तोड़ आदि। पठार की विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमाला भारत के उत्तरी और दक्षिणी भागों के बीच एक सांस्कृतिक अवरोध बनाती है।
पठार पर्यटन दृष्टि से भी महत्त्व रखता है, क्योंकि इसमें अमरकंटक, महाबलेश्वर, एवं नासिक जैसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल एवं भीमबेटका गुफाएं, अजंता और एलोरा गुफाएं और ऊटी, कोडैकनाल, माउंट आबू, खंडाला और पचमढ़ी जैसे विभिन्न हिल स्टेशन अवस्थित हैं।
इसके अलावा यह पठार जलवायु अवरोधक के रूप में भी कार्य करता है, जिससे भारत में वर्षा होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है, की भारत का प्रायद्वीपीय पठार विविध आयामों में महत्त्वपूर्ण है, इसके महत्त्व के आधार पर इस पठार को चट्टानों का संग्रहालय तथा छोटा नागपुर पठार को भारत का खनिज भण्डार भी कहा जाता है।