प्रधानमंत्री का कर्त्तव्य
संविधान में प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति के प्रति कर्त्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं-
प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य होगा कि वह संघ के प्रशासन और विधान से संबंधित मंत्रिपरिषद् के सभी निर्णयों को राष्ट्रपति को संप्रेषित करे, (अनुच्छेद-78 (1))।
संघ के प्रशासन और विधान से संबंधित ऐसी सूचनाओं को प्रदान करे, जिसकी राष्ट्रपति मांग करे, (अनुच्छेद-78(2))।
यदि किसी मुद्दे पर एक मंत्री ने विचार न किया हो, तो राष्ट्रपति ऐसे मुद्दों को मंत्रिपरिषद् के समक्ष रखवा सकता है, (अनुच्छेद-78(3))।
राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के मध्य दूसरा बड़ा विवाद प्रधानमंत्री के कर्त्तव्य से जुड़ा हुआ था। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह तथा प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच इस संबंध में सबसे बड़ा विवाद उत्पन्न हुआ, जिसमें संवैधानिक संकट के उत्पन्न होने की आशंका व्यक्त की गयी थी। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का आरोप था कि प्रधानमंत्री उन्हें संघ शासन से संबंधित प्रशासन एवं विधायन की सूचना नहीं दे रहे हैं। अतः प्रधानमंत्री अपने संवैधानिक कर्त्तव्यों का उल्लंघन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को कोई सूचना देने के लिए बाध्य नहीं है, बल्कि प्रधानमंत्री जिन सूचनाओं को उचित समझेंगे, वही सूचनाएं राष्ट्रपति को संप्रेषित करेंगे। प्रधानमंत्री के अनुसार, कार्यपालिका की वास्तविक शक्तियां प्रधानमंत्री में निहित हैं। इसलिए सूचना को देने का निर्धारण भी प्रधानमंत्री करेगा।
प्रधानमंत्री के अनुसार, वह गोपनीयता की शपथ भी लेता है, जबकि राष्ट्रपति गोपनीयता की शपथ नहीं लेता। इसलिए सूचना देने की शक्ति प्रधानमंत्री में निहित है। वर्ष-1990 के बाद भारतीय शासन में गठबंधन सरकारों का दौर आरंभ हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री की शक्तियां कमजोर हुईं। परिणामस्वरूप राष्ट्रपति ने प्रभावी शक्तियों का प्रयोग किया। भारतीय राष्ट्रपति का निर्वाचन अखिल भारतीय रूप में होता है तथा वह संविधान की रक्षा का शपथ लेता है। इसलिए व्यावहारिक रूप में वह प्रभाव का प्रयोग करने में सक्षम होता है। वर्तमान राष्ट्रपति के निर्वाचन में किसी एक दल का प्रभाव नहीं है, बल्कि राष्ट्रपति का निर्वाचन विभिन्न दलों के बीच आम सहमति के आधार पर हो रहा है तथा वर्तमान में राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के बीच सहयोगपूर्ण संबंध बने हुए हैं।