परिणामी ज्येष्ठता क्या हैं ?
वीरपाल सिंह चौहान वाद में न्यायालय ने यह कहा कि आरक्षण से प्रोन्नति प्राप्त करने वाले अधिकारी वरिष्ठता का फायदा नहीं प्राप्त कर सकते, अर्थात् अपने समकक्षों तथा ज्येष्ठ अधिकारियों से उन्हें वरिष्ठ नहीं माना जाएगा तथा ज्येष्ठता के निर्धारण का आधार प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि होगी, न कि प्रोन्नति की। उपरोक्त प्रावधानों को रद्द करने हेतु संसद ने 85वां संविधान संशोधन, 2001 पारित किया तथा अनुच्छेद-16 (4) (क) में संशोधन कर यह व्यवस्था दी गई कि प्रोन्नति में आरक्षण के साथ वरिष्ठता का लाभ अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्गों को दिया जा सकता है, जिसे ‘परिणामी वरिष्ठता का सिद्धांत’ कहा जाता है, जिसके अनुसार, एक साथ सेवा में प्रवेश करने वाले सामान्य वर्ग एवं अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय के व्यक्तियों को प्रोन्नति देने में अनुसूचित जाति व जनजाति के उम्मीदवार को पहले प्रोन्नति दी जाएगी तथा इसके बाद अन्य प्रोन्नति में भी उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी। बार-बार प्रोन्नति में मिलने वाले लाभ को ही ‘परिणामी ज्येष्ठता’ का विचार कहा गया है। अतः अनुसूचित जाति व जनजाति का उम्मीदवार एक बार ज्येष्ठ होने पर लगातार ज्येष्ठता का लाभ प्राप्त करेगा और अनारक्षित समुदाय का व्यक्ति अपने साथ भर्ती होने वाले बैच उम्मीदवार का जूनियर हो जाएगा।