पंचायती राज एवं नौकरशाही
सामुदायिक विकास योजना की असफलता का मूल कारण जन सहभागिता का अभाव माना गया था। इसलिए पंचायती राज का प्रयोग करते हुए 73वें व 74वें संविधान संशोधन, 1993 से पंचायतों के प्रत्येक स्तर पर जनप्रतिनिधियों को प्राथमिकता प्रदान की गई, जिसमें ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधान को विकास का दायित्व सौंपा गया, जबकि ग्राम विकास अधिकारी व लेखपाल, ग्राम प्रधान की सहायता करेंगे। खण्ड स्तर पंचायती राज के कार्यक्रमों को लागू करने का मुख्य स्तर है, क्योंकि प्रत्येक जनपद कई खण्डों में विभक्त होता है। 73वें संविधान संशोधन के बाद सभी स्तरों के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान किया गया, परंतु खण्ड स्तर के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष होता है, जिसका चुनाव खण्ड स्तर के निर्वाचित सदस्य करते हैं तथा खण्ड स्तर पर स्थानीय सांसद एवं विधायक भी पंचायत समिति के पदेन सदस्य होते हैं।
ग्रामीण विकास के संदर्भ में जिला ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA) की भूमिका केंद्रीय है, जिसका चेयरमैन सामान्यतः जिलाधिकारी या मुख्य विकास अधिकारी होता था, परंतु पंचायती राज संबंधी 73वें संविधान संशोधन के पश्चात् जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के स्थान पर जिला नियोजन समिति के गठन का प्रस्ताव किया गया, जिसका चेयरमैन जिला परिषद् का अध्यक्ष होगा। अतः वर्तमान में जनपद के विकास का मूल दायित्व जनप्रतिनिधियों को सौंपा गया है।