न्यायपालिका के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत
पृथक्करणीयता का सिद्धांत (Doctrine of Separability):- यदि राज्य द्वारा निर्मित विधियों एवं मूल अधिकारों के मध्य विरोध उत्पन्न हो, तो विधि के केवल उस भाग को अवैध घोषित किया जाएगा, जो भाग मूल अधिकारों का विरोधी हो और शेष भाग को वैध घोषित किया जाएगा। अतः न्यायपालिका द्वारा विधि के वैध और अवैध के मध्य अलगाव को ही पृथक्करणीयता का सिद्धांत कहा जाता है।
आच्छादन का सिद्धांत (Doctrine of Eclipse):- यदि मूल अधिकारों एवं पूर्व संवैधानिक विधियों के मध्य गतिरोध हो, तो मूल अधिकार, पूर्व संवैधानिक विधियों को आच्छादित कर लेते हैं। अतः पूर्व सांविधानिक विधियां समाप्त नहीं होतीं, बल्कि आच्छादित हो जाती हैं। इसलिए व्यवहार में इनका प्रभाव समाप्त हो जाता है।
भविष्यलक्षी विधि का सिद्धांत (Prospective Overruling):- भविष्यलक्षी विधि का सिद्धांत गोलकनाथ वाद में दिया गया तथा इस वाद में दिए गए निर्णय भविष्य में लागू होंगे। अतः इस निर्णय के पहले जिन मौलिक अधिकारों में संशोधन हो चुका है, या जो संशोधन हो चुके हैं, वे अवैध नहीं माने जाएंगे।