निर्वाचन आयोग की नई भूमिका
वर्तमान में बदलती परिस्थितियों के परिदृश्य में भारतीय चुनाव आयोग की भूमिका प्रभावी हुई है। वर्ष-1990 के बाद एक ओर विधायिका एवं कार्यपालिका का ह्रास हुआ, तो दूसरी ओर चुनाव आयोग एवं न्यायपालिका की भूमिका में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई। वर्ष 1990 के उपरांत निर्वाचन आयोग का उभार भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रभावी संस्था के रूप में हुआ। वर्ष-1990 के बाद संघ में भी अल्पमत और गठबंधन सरकारों का दौर आरंभ हुआ। भारतीय राजनीति में वर्ष-1996 से 1999 के महज 3 वर्षों में तीन लोक सभा चुनाव आयोजित हुए। इसलिए निर्वाचन आयोग की भूमिका प्रभावी बनकर उभरी और यह अब 5 वर्षों में केवल एक बार दिखने वाली संस्था नहीं थी। राज्य विधान सभा चुनाव हर वर्ष होने लगे, इसलिए निर्वाचन आयोग की भूमिका प्रभावी हुई है। चुनाव में धर्म एवं जाति का खुला प्रयोग होने लगा, जिससे ऐसी परिस्थिति में निष्पक्ष निर्वाचन आयोजित करना एक बड़ी चुनौती बन गया है।