धार्मिक अधिकार एवं जीवन के अधिकार
उच्चतम न्यायालय के द्वारा अधिकारों की व्याख्या करते हुए यह स्वीकार किया गया है कि मूल अधिकारों में भी कुछ अधिकार अन्य अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। न्यायालय के समक्ष जीवन के अधिकार एवं धार्मिक अधिकारों के बीच टकराव को हल करने के मुद्दे भी उपस्थित हुए। जैन धर्मावलंबियों के द्वारा अपनाई गई संथारा की प्रथा के अंतर्गत् धर्मावलंबी स्वैच्छिक रूप में अपने प्राण का परित्याग कर देते हैं, जिसे जीवन के अधिकारों का हनन माना गया। क्योंकि भारतीय जनसंहिता में आत्महत्या को दंडनीय अपराध माना गया है। परंतु जैन धर्मावलंबी संथारा को आत्महत्या नहीं मानते, अपितु एक धार्मिक एवं आध्यात्मिक अनुभूति के रूप में चित्रित करते हैं। इसके बावजूद धार्मिक एवं जीवन के विकारों के बीच टकराव की स्थिति में जीवन के विकारों को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने धार्मिक विकारों की व्याख्या करते हुए कहा है कि धर्म में दो प्रकार तत्व होते हैं।
1. धर्म के मूल तत्व (Essential Features)
2.धर्म के गौंण तत्व (Non- Essential Features)
यद्यपि यह विवाद का विषय है कि संथारा धर्म का मूल तत्व है अथवा गौंण भागा। परंतु न्यायालयों ने अपने अनेक निर्णयों में यह स्पष्ट कहा है कि धार्मिक स्थानों में लाउडस्पीकर का प्रयोग तथा पशुओं की बलि धार्मिक अधिकारों का गौंण भाग है। दीपावली के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध के लिए न्यायालय में याचिका दायर किया गया, क्योंकि शुद्ध पर्यावरण जीवन के अधिकार का भाग है। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने पटाखे बजाने पर प्रतिबंध नहीं लगाया, परंतु पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध आरोपित कर दिया।