धर्मनिरपेक्षता की भारतीय संकल्पना, धर्मनिरपेक्षतावाद के पाश्चात्य मॉडल
धर्मनिरपेक्षता धर्म के प्रति तटस्थता या उदासीनता को व्यक्त करता है। यह राज्य तथा धर्म के मध्य वैधानिक या कानूनी पृथकता, सर्व धर्म समभाव तथा शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की विचारधारा पर आधारित है। जो एक बहु-धार्मिक समाज में सामाजिक व धार्मिक सद्भाव को प्रेरित करने वाली विचारधारा है।
धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल:-
धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी विचारधारा एक राजनीतिक विचारधारा है, जो राज्य तथा धर्म के मध्य कानूनी पृथकता पर आधारित है। पाश्चात्य विचारधारा धर्म के प्रति उदासीन, निष्क्रिय तथा थोड़ी नकारात्मक प्रतीत होती है। यह धर्म को निषेचित करने तथा व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित करने पर अधिक बल देता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में धर्मनिरपेक्षता में निम्नलिखित बातें शामिल हैं।
राज्य का अपना कोई धर्म नहीं। राज्य तथा धर्म के मध्य कानूनी पृथकता। राज्य द्वारा नागरिकों के मध्य किसी भी स्तर पर धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं। राज्य प्रायोजित शैक्षणिक संस्थानों में धर्म आधारित शिक्षा नहीं।
धर्मनिरपेक्षता के भारतीय मॉडल:-
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल पश्चिम की तुलना में अधिक सकारात्मक तथा सर्व धर्म समावेशी है। यह धर्म को निषेधित करने की बात नहीं करता है। इसमें निम्न पहलुओं पर अधिक बल दिया गया है।
सर्वधर्म समभाव अर्थात सभी धर्म के प्रति समान सम्मान की भावना। शांतिपूर्ण सह अस्तित्व अर्थात विभिन्न धार्मिक समुदायों पंथों के अनुयायियों के मध्य शांतिपूर्ण तरीके से साथ-साथ रहना। धार्मिक वर्चस्व का निषेध अर्थात इसमें अंतर्धार्मिक वर्चस्व को निषिद्ध किया गया है। उपरोक्त विशेषताओं के साथ-साथ भारतीय धर्मनिरपेक्षता में पश्चिम की राजनीतिक विचारधारा भी शामिल है।
यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के कार्यान्वयन को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, और इसकी प्रभावशीलता और स्थिरता के संबंध में बहस और आलोचनाएं हुई हैं। विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों ने विभिन्न तरीकों से धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या और अभ्यास किया है, जिससे धर्म और राज्य के बीच उचित सीमाओं पर चल रही चर्चा और संघर्ष को बढ़ावा मिला है।